
कल का फल आज
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इस संदर्भ में यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी कोई बात नहीं है, जिससे यह समझा जाए कि जिन व्यक्तियों में जन्मजात रूप से कोई प्रतिभा मिली हुई दिखाई देती है, उन पर ईश्वर की कोई विशेष कृपा है और उसने पक्षपात करते हुए ये विशेषताएं वरदान स्वरूप दे डाली हैं। वस्तुतः ऐसा कुछ नहीं है। जिन व्यक्तियों में जन्मजात रूप से कोई प्रतिभा दिखाई देती है, वस्तुतः वह पिछले जन्म में किए गए प्रयासों, साधनाओं का ही परिपाक-परिणाम होती है। बहुधा ऐसे व्यक्ति पिछले जन्म में इस दिशा में अविराम श्रम करते हुए हार-थककर असफल हुए हैं और इस जनम में उन्हें पिछले जन्मों की साधना का सत्परिणाम प्राप्त हुआ है। जिस प्रकार बुरे कर्मों का फल इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में मिलता है, उसी प्रकार अच्छे कार्यों का परिणाम भी निश्चित है। वह भी इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में निश्चित रूप से मिलता है।
कर्मफल की निश्चितता का विश्वास भले ही तत्काल कोई परिणाम न भी दिलाए, तो भी निरुत्साहित नहीं करता और पुनर्जन्म तो एक ऐसा ध्रुव सत्य है, जो अब केवल मानने या विश्वास करने का ही विषय नहीं रह गया है, वरन् विज्ञान सिद्ध विषय बन चुका है। इस दृष्टि से असफलता के लिए भाग्य को दोष देकर हाथ पर-हाथ धरे बैठ जाने का कोई कारण नहीं है। प्रख्यात साहित्यकार और विचारक श्री इलाचंद्र जोशी ने जन्मजात प्रतिभासंपन्न दिखाई देने वाले व्यक्तियों के संबंध में लिखा है—‘‘विराट जीवन के जो असंख्य पहलू और अनगिनत रूप हमारी कल्पना में उतरते रहते हैं, उनका विकास एक छोटे-से जीवन की सीमित परिधि में कदापि संभव नहीं है, उसके लिए कई जन्म चाहिए। प्रत्येक प्रतिभाशाली व्यक्ति अपने भीतर इस महासत्य को अनुभव करता है।’
भगवान बुद्ध के संबंध में तो प्रख्यात है कि उन्होंने पिछले सौ जन्मों की यात्रा पूरी करने के बाद बुद्धत्व को प्राप्त किया था। इन पिछले सौ जन्मों में वे गाय-बैल से लेकर कूकर-शूकर आदि कई मानवेत्तर योनियों में रहे और इतनी लंबी साधना के बाद जाकर कहीं बुद्ध बन सके। ऋषि-मुनियों के संबंध में तो पूर्वजन्मों में अगणित बार असफल होने का विवरण मिलता है। संत ज्ञानेश्वर, तुलसीदास, शंकराचार्य, कबीर, मीरा, सूरदास, चंद्रगुप्त, चाणक्य, पाणिनी आदि के बारे में भी ऐसी कई गाथाएं प्रचलित हैं, जिनके अनुसार उन्हें पिछले जन्मों में विफलता का मुंह देखने को मिला था और उसके बाद जाकर कहीं सफलता मिली थी। आत्मिक उत्कर्ष के क्षेत्र में तो अनेक जन्मों में सिद्धि प्राप्त होने का उल्लेख शास्त्र ग्रंथों में कई स्थानों पर मिलता है। एक जन्म में असफल हो जाने के बाद साधक की क्या स्थिति होती है, यह दर्शाते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है—
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । यतते चे ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनंदन ।। पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि सः । जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते ।। प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः । अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ।। —गीता 6 । 43, 44, 45
‘‘हे कुरुनंदन अर्जुन! वह योगियों के कुल में जन्म लेकर पूर्वजन्म के संस्कार को प्राप्त करता है और उसके प्रभाव से वह उस दिशा में और अधिक प्रयत्न करता है। उसी पूर्व अभ्यास से अवश्य ही खिंचा आता है, क्योंकि योग का जिज्ञासु भी सकाम कर्मों के फल का अतिक्रमण कर जाता है। प्रयत्नपूर्वक अभ्यास करने वाला योगी तो पाप रहित और अनेक पूर्वजन्मों के संस्कारों की सहायता से सिद्ध होकर तत्काल परमगति को प्राप्त कर लेता है।’’
यही तथ्य प्रगति और उन्नति के अन्यान्य क्षेत्रों में भी लागू होता है। पश्चिमी देशों में तो अब शेक्सपीयर, गेटे और बर्नार्ड शॉ प्रभृति विद्वानों की प्रतिभा को एक जन्म की नहीं अनेक जन्मों की साधना और संस्कारों की पूंजी से उच्च स्थिति में पहुंचा माना जाता है। कुछ ऐसे उदाहरण सामने भी आए हैं, जिनमें ख्याति प्राप्त व्यक्तियों ने अपनी पूर्वजन्म की स्मृतियां बताईं और वे पूरी तरह सही निकलीं। इस आधार पर यह दावे के साथ कहा जाने लगा कि महान व्यक्तियों की महान उपलब्धियां अथवा जन्मजात प्रतिभाएं एक ही जीवन की देन नहीं होतीं और न ही प्रकृति या परमात्मा का पक्षपातपूर्ण अनुदान।