
मृत्यु उतनी भयानक नहीं, जितनी हम सोचते हैं
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पुराने कपड़े उतरकर नए कपड़े पहनने में किसी को क्या कष्ट होता है? यह प्रश्न बड़ा हास्यास्पद लगता है। लगभग इसी तरह का प्रश्न मृत्यु के संबंध में पूछा जाए, तो उसका उत्तर गंभीरता से ही दिया जाता है। कारण कि लोगों की मान्यता है, मृत्यु एक दुःखदायी, कष्टप्रद और दारुण वेदना देने वाली प्रक्रिया है। मृत्यु कष्टप्रद और दुःखदायी प्रक्रिया लगती तो है, परंतु वास्तव में वह है नहीं। बचपन से किशोरावस्था में, कैशौर्य से यौवन में और यौवन से प्रौढ़-परिपक्व स्थिति में विकसित होने तक जो आनंद और उल्लास अनुभव होता है या कोई विशेष परिवर्तन होता दिखाई नहीं देता, इसलिए इस विकास की स्थिति में किसी को कष्ट अनुभव नहीं होता। मृत्यु इसलिए कष्टप्रद अनुभव होती या प्रतीत होती है कि मरने वाला व्यक्ति दारुण वेदना भोग रहा है कि उसके साथ ही ऐहिक जीवन का अंत हो जाता है और जिसके जीवन का अंत हो जाता है, वह लौटकर बता नहीं सकता कि उसे कैसा अनुभव हुआ?
मृत्यु के संबंध में अज्ञान ही मनुष्य को उसके प्रति तरह-तरह की धारणाओं को जन्म देता है, मृत्यु वास्तव में है क्या? यह घटा घटते समय लोगों को कैसा अनुभव होता है। वैज्ञानिकों के लिए यह भी शोध का एक विषय रहा है। इसके लिए कई वैज्ञानिकों ने उन व्यक्तियों के अनुभव एकत्रित किए हैं, जो मरने के बाद जीवित हो उठे या डॉक्टरों ने जिन्हें मृत घोषित कर दिया था, परंतु वास्तव में वे जीवित थे और पुनः स्वस्थ होकर सामान्य जीवनक्रम व्यतीत करने लगे।
इस तरह का अनुसंधान करने वालों में अमेरिकी वैज्ञानिक डॉ0 कुवेलर रॉस का नाम अग्रणी है। उन्होंने तीन सौ से अधिक व्यक्तियों से भेंट की। ये सभी लोग ऐसे थे जो मरने के बाद पुनः जीवित हो उठे थे। इन व्यक्तियों ने अपने अनुभव जिस रूप में व्यक्त किए, उनसे सिद्ध होता है कि मृत्यु कोई दुःखदायी घटना नहीं है। मरने के पूर्व तक लगता अवश्य है कि कोई बहुत बड़ी यंत्रणादायी घटना घटने जा रही है, किंतु वास्तव में ऐसा कुछ नहीं होता। एक महिला ने जो अचानक बीमार पड़ गई थी और इसी बीमारी में वह मृत्यु तक पहुंच गई थी, अपना अनुभव बताते हुए कहा—‘‘अचानक बीमार पड़ जाने के बाद मुझे लगने लगा कि मैं मरने ही वाली हूं। अस्पताल में मेरे साथ जो मरीज थे, उनके सभी रोग मेरे ऊपर इकट्ठे हुए जा रहे हैं और मैं किसी की सहायता चाहती थी, जो मुझे इस मानसिक यंत्रणा से निकाल सके या इससे छुटकारा दिला सके। मैं सहायता के लिए किसी को पुकारना चाहती ही थी कि मुझे किसी शांत, गंभीर और उत्साह बढ़ाने वाला स्वर सुनाई दिया, जो कहा रहा था, साहस करो। आगे बढ़ो।’’
‘‘जैसे ही मैंने साहस बटोरा, मेरा सारा दर्द दूर हो गया। तभी मेरे सामने एक प्रकाशपूर्ण आकृति आई। उसके साथ उसी जैसा आलोक लिए कमल का फूल दिखाई दिया। मुझे अनुभव हुआ कि मेरा सांस रोग और रोग की पीड़ा तिरोहित हो गए हैं। उस समय मुझे भी अपना पूरा शरीर प्रकाशपुंज-सा दिखाई दे रहा था कि मैं बहुत हलकी हो गई हूं। उस समय बिस्तर पर पड़े अपने शरीर को मैं अच्छी तरह देख सकती थी। थोड़ी देर बाद मैं अपने शरीर में वापस आ गई। मेरी चेतना जब वापस लौटी, तो संबंधियों से मुझे ज्ञात हुआ कि चिकित्सकों ने मुझे मृत घोषित कर दिया था।’’
एक और महिला ने मृत्यु का अनुभव इस प्रकार बताया-‘‘बीमारी की हालत में अचानक मेरी हृदय गति रुक गई। तब मेरे चिकित्सक ने अपने सहयोगी डॉक्टर से कहा, डॉक्टर यह तो मर गई। मैं कहना चाहती थी कि मैं मरी नहीं हूं, परंतु चाहकर भी मेरे होठ खुल नहीं रहे थे। डॉक्टरों ने आदेश दिया कि मेरे शव को अस्पताल के वार्ड से बाहर निकाला जाए। मैं यह सब देख और सुन रही थी, परंतु कुछ कह नहीं सकती थी।’’
जिन लोगों की अचानक या किसी दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, उन्हें कैसा अनुभव होता है? इस संबंध में भी रोचक और दिलचस्प बातें जानने को मिलीं। एक व्यक्ति ने, जिसकी मृत्यु सिर में चोट लगने से हो गई थी तथा जो मरने के बाद पुनः जीवित हो उठा था, कहा—‘‘थोड़ी देर के लिए मेरा सारा दर्द दूर हो गया और मेरी पीड़ा पूरी तरह समाप्त हो गई। मैं बड़े ही सुख का अनुभव कर रहा था। अचानक एक झटका-सा लगा और मुझे अपने शरीर में कष्ट अनुभव होने लगा।’’ एक महिला, जिसकी मृत्यु अत्यधिक रक्त-स्राव के कारण हो गई थी, ने पुनः जीवित होने के बाद बताया—‘‘मैं अत्यंत मधुर और दिव्य संगीत सुन रही थी और मेरा सारा दुःख दूर हो गया था।’’
कुछ लोगों को तो मृत्यु में इतना अधिक आनंद का अनुभव होता है कि उनके अनुसार जीवन में वे इतने अधिक आनंदित कभी नहीं हुए। घटना लंदन की अलर्सगेट स्ट्रीट की है। वहां के एक मकान में आग लग गई और फायर ब्रिगेड के कर्मचारी आग बुझाने के काम में लगे। इन कर्मचारियों में जेम्स बर्टन नाम का एक कर्मचारी भी था। आग के बीच में घुसकर जब वह आग बुझाने का प्रयास कर रहा था, एक जलता हुआ शहतीर उसके ऊपर आ गिरा। वह आठ घंटे तक उस मलबे के नीचे दबा रहा। निकाले जाने के बाद लंबे समय तक चिकित्सा करने पर वह ठीक हुआ। उसने अपना अनुभव बताते हुए कहा, ‘‘एक क्षण के लिए मुझे अपनी पत्नी की याद अवश्य आई थी, लेकिन उसके बाद मैं किसी अज्ञात दिशा से आने वाली मधुर संगीत लहरियों को सुनते-सुनते जैसे खो-सा गया। मैं अपने शरीर को चाहकर भी हिला-डुला नहीं सकता था, लेकिन मैं सोच जरूर सकता था और अनुभव भी करता था। मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था, जैसे कि फूलों की सेज पर सोया हुआ होऊं तथा स्वर्ग में रह रहा हूं।’’
स्विट्जरलैंड के श्री हरमन काउंट एक बार सेंट बरनार्ड में बरफ के तूफान में भटक गए। खोज-बीन करने पर वे बेहोश अवस्था में मिले, जांच करने पर उनमें जीवन का कोई चिह्न नहीं पाया गया, लगा कि उसकी मृत्यु हो गई है। बड़े प्रयत्नों के बाद जब वे ठीक हो सके, तो होश में आने पर उन्होंने बताया कि मार्ग की तलाश में भटकते हुए वे इतने थक गए थे कि आगे कदम नहीं बढ़ रहे थे। फिर भी जिजीविषा उन्हें आगे धकेले जा रही थी। इसी तरह आगे बढ़ते-बढ़ते वे एक स्थान पर थककर चूर होकर गिर गए, फिर उन्हें होश नहीं रहा कि क्या हुआ? लेकिन उस स्थिति में भी वे अपने आप को सचेत और संवेदन क्षमता से परिपूर्ण अनुभव कर रहे थे तथा उन्हें बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी। इस आनंदमय स्थिति से बाहर आते समय उन्हें अवश्य कष्ट का अनुभव हुआ। डॉक्टरों के अनुसार वे बरफ में गिर जाने के काफी समय पूर्व मर चुके थे।
अर्नाल्ड सिग्रोट ओर उसके चार मित्रों ने जिनमें दो प्रेस रिपोर्टर थे तथा दो फोटोग्राफर, आल्पस पर्वत की चोटी पर चढ़ने का निश्चय किया। चोटी दो हजार फुट से अधिक ऊंची थी और उसके नीचे बहुत गहरा तथा संकरा खड्ड था। इस अभियान में अर्नाल्ड सिग्रोट सबसे आगे चल रहे थे। थक जाने पर थोड़ा सुस्ताने के लिए वे एक चोटी के किनारे बैठ गए, लेकिन दुर्भाग्यवश वह हिस्सा उनका वजन सह नहीं पाया और टूटकर गिर पड़ा, अर्नाल्ड भी उस टुकड़े के साथ नीचे लुढ़कने लगे।
जब उन्हें खड्ड से बाहर निकाला गया, तो वे अर्द्धमृतक की-सी स्थिति में थे। जीवन के कुछ ही चिह्न थे, इसलिए उन्हें बचाने की भरसक चेष्टा की गई और उपचार सफल रहा। वे बच गए या कि मृत्यु के मुख में प्रवेश कर वापस लौट आए। चिकित्सा के उपरांत ठीक होने पर उन्होंने अपना रोमांचक अनुभव इन शब्दों में व्यक्त किया, ‘‘मेरा मस्तिष्क बड़ी तेजी से काम कर रहा था। समय का मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं रहा गया था और रह-रहकर मुझे अपने पत्नी-बच्चों का ख्याल आ रहा था। इसके बाद मुझे अपने शरीर का कोई आभास नहीं रहा। मैं उसे लुढ़कते, छीलते और उसमें से खून को रिसते हुए ऐसे ही अनुभव कर रहा था जैसे मैं किसी दूसरे व्यक्ति का शरीर लुढ़कता हुआ देख रहा हूं।’’
मेरे साथी मुझे खोजते हुए आए। उनका अनुमान था कि मैं निश्चित रूप से मर चुका हूं। उन्होंने मेरे शरीर को एक गरम बिछावन पर लिटा दिया। मैं धीरे-धीरे सांस ले रहा था। सांस लेना भी कुछ देर के बाद बंद हो गया और मेरे शरीर में जीवन का कोई चिह्न शेष नहीं रहा, परंतु मैं होश में था और आनंद में था। मेरे एक परिचित डॉक्टर ने जीवन के प्रति निराशा व्यक्त की। मैं अपने परिवार के लोगों को रोते हुए देख रहा था। मैं चाहता था कि उन्हें बताऊं, मैं कितना आनंदित हूं और उनके चीखने-रोने से दुखी हो रहा हूं। उन्हें चुप कराने और रोने से मना करने के लिए मैंने चीख-चीखकर कहना चाहा, किंतु मेरी आवाज शायद उनके कानों तक नहीं पहुंच पा रही थी। फिर मैंने सोचा कि मैं अपने इस शरीर में प्रवेश कर जाऊं, तो ये लोग प्रसन्न होंगे। इतनी इच्छा करने मात्र से मैं वापस अपने शरीर में प्रविष्ट हो गया। हालांकि उस समय मुझे अपने शरीर पर लगी चोटों तथा आए घावों की पीड़ा अनुभव होने लगी थी, परंतु मैं प्रसन्न था कि अब वे लोग संतुष्ट हैं।