
मरने वाला फिर भी जन्मेगा
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वह भ्रम अब क्रमशः छंटता जा रहा है, जिसमें मरणोत्तर जीवन एवं पुनर्जन्म से इनकार किया जाता था। ईसाई और मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार सृष्टि और प्रलय के मध्य मात्र एक बार जन्म होता है। दूसरे जन्म की बात प्रयत्न से न्याय हो जाने के बाद ही संभव होती है। सृष्टि और प्रलय के मध्य अरबों वर्ष का अंतर होना चाहिए। इतनी अवधि के बाद जन्म होना एक प्रकार से निराशाजनक ही माना जाएगा और यही कहा जाएगा कि अवसर उसके हाथ से प्रायः सदा के लिए चला गया।
दूसरा वर्ग प्रत्यक्षवादियों का है, जो आत्मा का अस्तित्व ही स्वीकार नहीं करते और कहते हैं, शरीर के साथ ही जीवन का आरंभ होता है और उसकी समाप्ति के साथ उस सत्ता का सदा-सर्वदा के लिए अंत हो जाता है। उसकी दृष्टि में जीवन ही जीव है। जीवन की समाप्ति के साथ ही जीव का आत्यंतिक अंत है।
इन प्रतिपादनों को पुनर्जन्म की घटनाएं चुनौती देती हैं और पूछती हैं कि पुनर्जन्म की स्थिति से संबंधित जो प्रामाणिक घटनाएं सामने आती रहती हैं फिर उनका कारण क्या है?
ऐसी घटनाएं संसार भर में घटित होती पाई गई हैं, जिसमें बच्चों ने अपने पूर्व जन्मों के विवरण न केवल सुनाए हैं, वरन् उन अपरिचित स्थानों पर पहुंचकर वस्तुओं एवं व्यक्तियों को पहचाना तथा घटित हुए घटनाओं का ऐसा विवरण बताया है, जिसके संबंध में कुछ संबद्ध लोगों के अतिरिक्त अन्यों को कुछ पता ही नहीं हो सकता था। ऐसी दशा में सिखा-पढ़ाकर कुछ कहला लेने का संदेह भी नहीं किया जा सकता।
बिहार के दरभंगा जिले के बेहरा नामक स्थान के निवासी श्री ब्रजकिशोर वर्मा एक होम्योपैथ डॉक्टर थे। उनके यहां एक कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम कुमकुम रखा गया। बचपन से ही वह अपनी दादी श्रीमती गंगावती वर्मा से अत्यधिक स्नेह रखती थी।
एक दिन दादी-अम्मा बच्चों को चूड़ा परोस रही थीं, तभी कुमकुम बोली—‘‘दादी अम्मा! आप ही की तरह मैं भी अपने बच्चों को चूड़ा परोसा करती थी। मैं सच कह रही हूं दादी अम्मा, मेरा घर दरभंगा में ही उर्दू बाजार में है।’’
घर के लोग प्रारंभ में उसकी बातों में काफी रस लेते थे। कुमकुम उनके हर प्रश्न का ऐसा उत्तर देती थी, मानो सचमुच वह किसी संपन्न घर की पुरखिन हो। लेकिन कुछ ही दिनों में उसके माता-पिता उससे परेशान हो गए। वे समझ नहीं पाते थे कि इस साढ़े तीन-चार वर्ष की बच्ची को कैसे समझाया जाए?
एक दिन बेहरा में मेला लगा था। कुमकुम की मां ने उस दिन सोने के लाकेट वाली चेन और नई साड़ी पहनी। कुमकुम को भी नई फ्राक पहनाई गई। मां के गले की चेन देखकर उसने कहा—‘‘मेरी चेन तुम्हारी चेन से अधिक चमकीली थी। मैं भी गहने पहनूंगी, मैं अपनी तिजोरी से पैसा निकालूंगी और बहुओं से मिलने जाऊंगी।’’ इस प्रकार से हठ करते हुए वह रोने लगी। वह अकसर अपने पूर्वजन्म के बहू-बेटों से मिलने के लिए मचलने लगती थी।
आखिर डॉ0 ब्रजकिशोर वर्मा ने दरभंगा राज के एक स्पेशल अफसर और अपने अंतरंग मित्र मंडित हरिश्चंद्र मिश्र के सामने अपनी यह विषम समस्या रखी। उन्हें यह मामला अपनी पकड़ से बाहर होता प्रतीत हो रहा था।
पंडितजी ने सोचा, हो न हो यह मामला पुनर्जन्म का है। सो कुमकुम से स्वयं पूछने पर उन्हें ज्ञात हुआ कि उसके उर्दू बाजार वाले घर के सामने एक शिवजी का मंदिर था, जहां वह नित्य-नियमित रूप से पूजा करने जाया करती थी। उसकी बहू ने जहर खिलाकर उसकी जान ले ली। उन लोगों के यह पूछने पर कि वे उसके घर को कैसे पहचानेंगे? उसने बताया कि ‘‘मेरे घर के पीछे एक सिनेमाघर है।’’
डॉ0 वर्मा कुमकुम की सूचना और पं0 हरिश्चंद्र मिश्र की सहायता से कुमकुम के पूर्वजन्म के मकान को बिना किसी दिक्कत के खोजने में सफल हो गए। घर के मुखिया मिसरीलाल (कुमकुम के पूर्वजन्म का बड़ा बेटा) ने घर के बाजू में बने पोखर के बारे में बताया कि वह उसकी मां के जीवनकाल में ही तैयार किया गया था। पड़ोसियों ने यह भी बताया कि मिसरीलाल की मां ने एक पूंछ कटा सांप भी पाल रखा था, जिसे वह बड़ी हिफाजत से रखती थी। वह एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी और मंदिर में भगवान शंकर की पूजा किए बिना वह भोजन नहीं करती थी।
पारलौकिक विद्या के प्रसिद्ध विद्वान डॉ0 इवान स्टीवेंसन ने कुमकुम के पूर्वजन्म के विवरणों का अध्ययन कर उसे सही पाया। उस समय वे पुनर्जन्म की सत्यता की जांच के सिलसिले में विभिन्न देशों का भ्रमण करते हुए भारत आए थे। डॉ0 स्टीवेंसन ने बताया कि मृत्यु के समय व्यक्ति की जैसी बुद्धि होती है, वैसा ही अगला जन्म होता है।
‘आफ्टर डेथ’ नामक पुस्तक सन् 1897 में प्रकाशित हुई थी, तब से अब तक इसके लगभग बीस संस्करण कई भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इसमें जूलिया नामक लड़की का विवरण बड़े ही मार्मिक ढंग से लिखा गया है। जूलिया बहुत ही सुंदर एवं बहुत ही रंगीन स्वभाव की लड़की थी। उसके अनेक मित्र थे। मित्रों से वह कहा करती थी कि यदि मेरी मृत्यु हुई तो भी मिलती अवश्य रहूंगी। संयोगवश 12 दिसंबर 1891 में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी प्रेतात्मा अपने मित्रों से मिलने के लिए भटकने लगी। इस बात को उसके सभी मित्रों एवं अन्य अपरिचित व्यक्तियों ने स्वीकार किया और बताया कि जूलिया की आत्मा अपने मित्रों के लिए भटकती रहती है, वह उन्हें देखती है, पर स्वयं न देखे जाने या स्पर्शजन्य अनुभूति का आनंद न प्राप्त कर सकने के कारण वह उद्विग्न एवं खिन्न रहती है।
कुछ वर्ष पूर्व नागपुर के एक स्थानीय अस्पताल में श्रीमती उत्तरा हुद्दार को चर्म रोग की चिकित्सा के लिए भर्ती किया गया, लेकिन वहीं से उन्हें विचित्र दौरे आने शुरू हुए। पहले तो वे दस-पंद्रह मिनट तक ही उस अवस्था में रहती थीं, लेकिन बाद में वही स्थिति दस-पंद्रह दिनों तक के लिए रहने लगी। अंगरेजी और मराठी के अलावा कोई अन्य भाषा न तो वे और न उनके परिवार में ही कोई जानता था। लेकिन उक्त अवधि में वे धारा-प्रवाह बंगला बोलते हुए अपने को सप्तग्राम की निवासी ‘शारदा’ नामक महिला बताती थीं। यों तो ये दौरे उन्हें आकस्मिक रूप से ही आते थे, लेकिन एक बार जब उनके भाई कैमरे से उनकी तस्वीर लेने जा रहे थे, वह अचानक चीखते-चिल्लाते हुए भागने लगीं। पूछने पर उन्होंने बताया मेरा भाई गले में काला सांप लटकाए मुझे मारने आ रहा है। बड़ी मुश्किल से उन्हें पकड़ा जा सका।
श्रीमती उत्तरा हुद्दार 37 वर्ष की आकर्षक, सौम्य व्यक्तित्व वाली सुशिक्षित गृहिणी थीं तथा नागपुर की एक स्थानीय यूनीवर्सिटी में मराठी की व्याख्याता थीं। उनका यह व्यवहार सभी को विचित्र लगा।
परिवार वाले किंकर्त्तव्यविमूढ़ थे। आखिर इस लाइलाज मर्ज से परेशान होकर उन्होंने ‘मनोचिकित्सकों’ की शरण ली। स्थानीय अस्पताल के डॉक्टरों ने इस केस को डॉ0 स्टीवेंसन को सौंप दिया। इस कार्य में डॉ0 स्टीवेंसन के साथ कलकत्ता (कोलकाता) के दो अन्य परामनोवैज्ञानिक डॉ0 आर0 के0 सिन्हा तथा प्रो0 विपिंद्र पाल भी कार्यरत थे। इन तीनों ने मिलकर उत्तरा हुद्दार की केस हिस्ट्री तैयार की। जब-जब दौरा पड़ता और उत्तरा अपनी पिछली कहानी दोहराती, डॉक्टर उसे टेपरिकॉर्डर कर लेते। उत्तरा के व्यवहार का मनोवैज्ञानिक अध्ययन भी किया गया।
अनेक प्रयोगों के बाद उत्तरा के पिछले जन्म अर्थात् शारदा के जीवन की कहानी का ‘लेआउट-सा’ तैयार हुआ। शारदा का जन्म सप्तग्राम (बंगाल) में लगभग 150 वर्ष पूर्व हुआ था। उसकी मां शायद बहुत ही पहले मर चुकी थी। इसलिए शारदा का पालन-पोषण उसकी मौसी ने किया था। उसके पिता बृजनाथ चट्टोपाध्याय एक प्रसिद्ध कंकाली मंदिर के प्रधान पुजारी थे। सोमनाथ और यतींद्रनाथ उनके दो छोटे भाई थे। शारदा के पति विश्वनाथ एक वनस्पति विशेषज्ञ थे।
शारदा मां बनने के दो अवसर खो चुकी थी। तीसरी बार प्रसवकाल से लगभग 3 माह पूर्व वह एक दिन आंगन में बैठी धान साफ कर रही थी। पास की झाड़ियों से निकलकर एक नाग ने उसे डस लिया। शोर सुनकर काफी इकट्ठे हो गए। शारदा के पति को भी सूचना दी गई, जो खुद भी किसी सर्प दर्शित व्यक्ति के इलाज के लिए पड़ोस के गांव में गए हुए थे। समाचार सुनते ही वे घोड़े पर दौड़े चले आए। शारदा अपने प्रलापों में भी कहा करती थी, देखो मेरे पति घोड़े पर चढ़े चले आ रहे हैं। लेकिन जब तक जहर काफी फैल चुका था। अतः शारदा बचाई नहीं जा सकी।
डॉ. स्टीवेंसन के अनुसार जिनकी मृत्यु किसी उत्तेजनात्मक आवेशग्रस्त मनःस्थिति में हुई हों, उनमें पिछले जन्म की स्मृति अधिक स्पष्ट रहती है। दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, प्रतिशोध, कातरता, मोहग्रस्तता, अतृप्ति का विक्षुब्ध घटनाक्रम प्राणी की चेतना पर गहरा प्रभाव डालता है और वे उद्वेग अगले जन्म में भी स्मृति-पटल पर उभरते रहते हैं। जिस व्यक्ति से अधिक प्यार या द्वेष रहा हो, उसका विशेष रूप से स्मरण बना रहता है।
डॉ. स्टीवेंसन के शोध रेकार्ड में एक पांच वर्षीय लड़की की घटना है, जो हिंदी भाषी परिवार में जनम लेकर भी बंगला गीत गाती और उसी शैली में नृत्य करती थी। जबकि कोई बंगाली उसके घर-परिवार के समीप नहीं था। इस जनम में वह जबलपुर में पैदा हुई, लेकिन उसकी पूर्वजन्म की स्मृतियां 95 प्रतिशत सही साबित हुईं।
इंग्लैंड के नार्थंबर लैंड के श्री पोलक की दो लड़कियां सड़क पर मोटर की चपेट में आकर मर गईं। बड़ी लड़की जोआना 11 वर्ष की थी तथा छोटी जैक्लीन 6 वर्ष की।
दुर्घटना के कुछ समय बाद श्रीमती पोलक गर्भवती हुईं तो उन्हें न जाने क्यों हमेशा यह महसूस होता था कि उनके गर्भ में वे ही जुड़वां बच्चे हैं। डॉक्टरी जांच कराने पर उनकी धारणा सही साबित हुई। बाद में दो लड़कियों का ही जन्म हुआ तथा उनमें एक का नाम गिलियन और दूसरी का जेनिफर रखा गया। ये अपने पूर्वजन्म के सभी चिह्नों को अपने शरीर पर धारण करके ही जन्मी थी। इन दोनों को अपनी मृत बहनों के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया था, लेकिन वे अपने पूर्वजन्म की घटनाओं की आपस में चर्चा करती हुई पाई गईं। समयानुसार उन्होंने अपने पूर्वजन्म के इतने प्रमाण प्रस्तुत किए कि लोगों को यह मानने को बाध्य होना पड़ा कि दुर्घटना में मरी बहनों ने भी इस बार एक साथ ही पुनर्जन्म लिया है।