• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • क्या मृत्यु ही जीवन का अंत है?
    • चेतनसत्ता का अस्तित्व मृत्यु के बाद भी
    • मरण के उपरांत पुनर्जन्म सुनिश्चित
    • संस्कारों की महत्ता
    • निरंतर गतिशील जीवन-प्रवाह
    • नियंता की कर्मफल व्यवस्था
    • पूर्वजन्म के संचित संस्कार, विलक्षण प्रतिभा के उपहार
    • मरण—सृजन का उल्लास भरा पर्व
    • एक सचाई, जिसे नकारा नहीं जा सकता
    • पुनर्जन्म सिद्धांत को भली भाँति समझा जाए
    • प्रमाण-ही-प्रमाण, अनेकों प्रमाण
    • मरने वाला फिर भी जन्मेगा
    • एक सचाई, जिसे नकारा नहीं जा सकता
    • स्वर्ग, नरक एवं कर्मफल
    • जन्म-जन्मांतर के संस्कार
    • कल का फल आज
    • संस्कार और अमुक्त वासना
    • मृत्यु उतनी भयानक नहीं, जितनी हम सोचते हैं
    • मरण के समय की अनुभूतियां
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • क्या मृत्यु ही जीवन का अंत है?
    • चेतनसत्ता का अस्तित्व मृत्यु के बाद भी
    • मरण के उपरांत पुनर्जन्म सुनिश्चित
    • संस्कारों की महत्ता
    • निरंतर गतिशील जीवन-प्रवाह
    • नियंता की कर्मफल व्यवस्था
    • पूर्वजन्म के संचित संस्कार, विलक्षण प्रतिभा के उपहार
    • मरण—सृजन का उल्लास भरा पर्व
    • एक सचाई, जिसे नकारा नहीं जा सकता
    • पुनर्जन्म सिद्धांत को भली भाँति समझा जाए
    • प्रमाण-ही-प्रमाण, अनेकों प्रमाण
    • मरने वाला फिर भी जन्मेगा
    • एक सचाई, जिसे नकारा नहीं जा सकता
    • स्वर्ग, नरक एवं कर्मफल
    • जन्म-जन्मांतर के संस्कार
    • कल का फल आज
    • संस्कार और अमुक्त वासना
    • मृत्यु उतनी भयानक नहीं, जितनी हम सोचते हैं
    • मरण के समय की अनुभूतियां
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - मरणोत्तर जीवन एवं उसकी सचाई

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


संस्कार और अमुक्त वासना

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last

पकाए मांस की पहली कटोरी जैसे ही बच्चे के सामने रखी गई, उसने भोजन करने का वह स्थान ही छोड़ दिया। फिर मां के लाख प्रयत्न करने पर भी बच्चे ने उस दिन भोजन नहीं किया। उसने दृढ़तापूर्वक बताया—‘‘मांस वैसे ही घृणित खाद्य है। पर वह जिस तरह जीवों का उत्पीड़न करके निकाला जाता है, उस कारण तो किसी भी दृष्टि से स्पृश्य नहीं रह जाता। उससे दुर्गुण बढ़ते हैं। मेरे लिए दूध और फल ही काफी हैं। फिर मेरे आगे मांस लाया गया, तो मैं तुम लोगों के साथ नहीं रहूंगा।’’
अमेरिका में जहां छोटी आयु से ही बच्चे को मांस खाना होता है, वहां बिना किसी पूर्व शिक्षा और ज्ञान के बच्चे का मांस के दुर्गुण के प्रति यह व्याख्यान आश्चर्यजनक ही था। मां ने यह बात लड़के के पिता से भी कही, पर पिता ठहरे वैज्ञानिक—सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक। उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया। सोचा लड़के जिद्दी प्रकृति के होते हैं, कोई बात हो गई होगी। बच्चा अपने आप पारिवारिक सांचे में ढल जाएगा। इस आत्म आश्वासन के साथ ही वे अपने काम में जुट गए।
जिस घटनाक्रम का विकास इन पंक्तियों में हो रहा है, वह कोई कहानी नहीं, वरन् एक ऐसी घटना हे, जिसने अमेरिका के लब्ध प्रतिष्ठित जीवशास्त्री डॉ0 ह्यूम वॉन एरिच जैसे वैज्ञानिक को भी चक्कर में डाल दिया। प्रथम अवसर था, जब उन्हें यह विश्वास करना पड़ा कि पुनर्जन्म सिद्धांत कोरी कल्पना नहीं। डॉ0 ह्यूम वॉन एरिच की जीन्स के अध्ययन में और भी प्रगति हुई होती, पर एक अप्रत्याशित घटना ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। अब तक के शोध के आधार पर उनका विश्वास था कि शरीर-रचना की तरह गुण और संस्कार भी आनुवंशिकी होते हैं अर्थात् उनमें कोई अतिवाहिकता नहीं होती, ये भी जीन्स के द्वारा माता-पिता अथवा ऊपर की ही किसी पीढ़ी से आए हुए होते हैं।
लेकिन यहां जो हुआ उसने तो इस सिद्धांत को ही काटकर रख दिया। यही लड़का जिसने एक दिन मांस को घृणित और पशु-प्रवृत्ति कहकर ठुकरा दिया था। आज पिता ह्यूम के सामने एक विचित्र भाषा में भाषण करने लगा। पहले तो पिता ने समझा कि लड़का अनर्गल प्रलाप कर रहा है। पर जब लड़का कई दिन तक उसी प्रकार टेढ़ी भाषा में बोलता रहा, तो उन्होंने भाषाविदों की सहायता ली। एक भाषाविद ने बताया कि लड़का शुद्ध संस्कृत में बोलता है। लड़के द्वारा बोले गए वाक्यांशों का टेपरिकॉर्डर कराकर उनका भाषांतर कराया गया, तो पता चला कि लड़के ने जो कुछ कहा वह अनर्गल प्रलाप न होकर प्रवाहमान भावाभिव्यक्ति थी। ऐसी अभिव्यंजना जो किसी बहुत ही शिक्षित और समझदार द्वारा की गई हो। ह्यूम एक बार चक्कर खा गए, बच्चे में यह प्रतिभा कहां से आ गई? यह विचार-क्षमता कहां से उत्पन्न हो गई?
उन्होंने अपने व पत्नी के सब संबंधियों से पत्र डालकर पूछा, कोई भी ऐसा न निकला जो संस्कृत भाषा जानता रहा हो। जिन कई पीढ़ियों तक उन्होंने पता लगाया, संस्कृत तो क्या हिंदी जानने वाला भी कोई नहीं हुआ था। ह्यूम स्वयं इटैलियन थे। उनकी धर्मपत्नी भी इटैलियन थीं, आजीविका की दृष्टि से वे अमेरिका में आकर बस गए थे। संस्कृत तो उनके वंशजों में कोई जानता ही नहीं था, फिर इस बालक में यह संस्कार कहां से आ गए? क्या सचमुच पुनर्जन्म होता है? क्या सचमुच चेतना का कोई स्वतंत्र अस्तित्व भी है? जो मृत्यु के बाद भी अमर रहता हो, इस तरह के अनेक प्रश्नों ने उनके मस्तिष्क में एक तूफान खड़ा कर दिया।
समाधान उनके लड़के ने कर दिया। उसने बताया—‘‘मैं पूर्व जन्म का एक भारतीय योगी हूं। मेरा संबंध ‘नाथ’ नामक एक संप्रदाय से था, जो उत्तरीय पर्वतीय अंचल में पाया जाता है।’’ अपने निवास के बारे में बच्चे ने बताया—‘‘मैं कांगड़ा के समीप कुटी बनाकर एकांत साधना किया करता था।’’
‘‘योग-साधना करते हुए मैं इच्छाओं के प्रवाह में बहता रहता। कभी भावनाएं निष्काम हो जातीं तो भक्ति का आनंद मिलता, पर दूसरे ही क्षण धूप-छांह की तरह परिस्थिति बदलती और कोई इच्छा आ खड़ी होती। एक दिन की बात है, दो अमेरिकन यात्री उस पहाड़ी पर चढ़ते हुए मेरी कुटी के पास तक आ गए थे। पूछने पर उन्होंने अमेरिका की रंगीनी के समाचार बताए। मैं बड़ा प्रभावित हुआ। मुझे लगा वहां जीवित स्वर्ग है। एकाएक इच्छा हुई कि अमेरिका जाऊं और वहां का आनंद लूं। मेरी यह इच्छा मुझे बलात अमेरिका के रंगीन जीवन की ओर खींचती रही। जब मेरी मृत्यु हुई, तब भी मन में वह इच्छा बनी रही।’’
डॉ0 ह्यूम अपने पुत्र की बाते सुनकर स्तब्ध अवाक् रह गए। पर वे इतनी शीघ्र इन बातों पर विश्वास करने वाले न थे। लड़के के बताए कांगड़ा, नाथ संप्रदाय, पहाड़ियों के नाम, उस क्षेत्र के रीति-रिवाज आदि के संबंध में उन्होंने विस्तृत खोज की तो उन्हें अक्षरशः सही पाया। लड़का कभी भारत गया नहीं। पुस्तकों में उसने भारतवर्ष का नाम भी नहीं पढ़ा, रीति-रिवाजों का तो कहना ही क्या, फिर ये बातें, उसके मस्तिष्क में कहां से आईं; वे यह कुछ न समझ सके।
बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिक, भाषाविद आए। सबने लड़के की बात-चीत टेप की, अलग-अलग अध्ययन किया, पर निष्कर्ष निकालते समय वे सब-के-सब माथे पर हाथ धरे सिर खुजलाते रह गए।
एक दिन लड़के ने कहा—‘‘पिताजी! अमेरिका दर्शन की मेरी आकांक्षा पूर्ण हो गई है। अब मुझे मेरी मातृभूमि पहुंचा दीजिए। मैं अमेरिका में नहीं रह सकता।’’
किसी तरह मां उसे लेकर भारत जाने को तैयार हुई। विदेश यात्रा के लिए उन्होंने आवेदन-पत्र भी भर दिया। किंतु एक दिन प्रातःकाल उठकर जब वे अपने पुत्र के निजी कक्ष में गईं, तो देखा कि मौन-मुद्रा में उस लड़के का पार्थिव शरीर पद्मासन लगाए बैठा है। उसके प्राण तो कहीं और जा चुके हैं।
वस्तुतः मरणोत्तर जीवन की मान्यता और संस्कारों का दूरगामी प्रभाव-परिणाम अध्यात्म-दर्शन का एक बड़ा आधार है। चिंतन की शैली, आकांक्षा और दिशा का प्रभाव न केवल इस जीवन में विविध हलचलों की केंद्रीय प्रेरणा के रूप में क्रियाशील रहता है, अपितु अगले जीवन में भी यह प्रभाव बना रहता है। व्यक्तित्व को विकसित एवं परिवर्तित कर सकने की वास्तविक शक्ति इन्हीं संस्कारों की प्रखरता में सन्निहित है। संस्कार किसी ग्रह-नक्षत्र की कृपा से नहीं बनते-बिगड़ते। मनुष्य अपने मनोबल, विवेक और पुरुषार्थ से ही उन्हें निखारता है। अतः सत्संस्कारों को ही जन्म-जन्मांतर तक साथ देने वाले अभिन्न मित्र समझकर उनकी संख्या और शक्ति बढ़ाने के लिए सजग रहने में ही बुद्धिमानी है। यात्रा का पाथेय और प्रगति के सुनिश्चित आधार सत्कर्म तथा संस्कार ही हैं।
बिना किसी प्रशिक्षण, अध्ययन के बचपन से ही प्रतिभासंपन्न व्यक्तियों के जीवनक्रम का अवलोकन करते हैं तो उनके असामान्य होने का प्रत्यक्ष कोई कारण हाथ नहीं लगता किंतु पुनर्जन्म के सिद्धांत को जोड़ देने भर से गुत्थी सुलझ जाती है। कर्मों का फल इसी जीवन में मिले, यह आवश्यक नहीं है। वह विशिष्ट प्रतिभा योग्यता अथवा अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियां साथ लिए दूसरे जीवन में प्रकट होता है। प्रचलित भाषा में इसे ही ‘भाग्य’ के नाम से संबोधित किया जाता है। जन्म से ही प्राप्त अनुकूलताओं या प्रतिकूलताओं का भी कोई प्रत्यक्ष कारण ढूंढ़ने पर नहीं मिलता है। इनकी व्याख्या कर्मफल एवं पुनर्जन्म के सिद्धांतों के आधार पर ही की जा सकती है। पुरुषार्थ के बलबूते अनुकूल परिस्थितियां योग्यता-क्षमता अर्जित कर लेना संभव है। एक सीमा तक प्रारब्धों को भी बदला जा सकता है। वातावरण एवं आनुवंशिकी का भी एक सीमा तक प्रभाव पड़ता है। इतने पर भी उपर्युक्त प्रमाण पुनर्जन्म के सिद्धांतों का ही प्रतिपादन करते हैं।
भले-बुरे कर्मों का प्रभाव न केवल इस जीवन तक वरन् अगले जीवन में भी संस्कारों के रूप में भी परिलक्षित होता है। अर्जित योग्यता एवं प्रतिभा भी सूक्ष्म संस्कारों के रूप में दूसरे जन्म में भी बनी रहती है। वह न केवल इस जीवन में वरन् दूसरे जीवन में भी विकास अथवा पतन का कारण बनती हैं। वैचारिक एवं वैज्ञानिक दृष्टियों से भी ज्ञान की महत्ता भली भांति प्रमाणिक है। इस तथ्य को समझने में पुनर्जन्म के सिद्धांत न केवल सहायक हैं, वरन् सद्प्रेरणाएं देने में भी पूर्णरूपेण सक्षम हैं।
First 14 16 Last


Other Version of this book



मरनोत्तर जीवन और उसकी सच्चाई
Type: SCAN
Language: EN
...

मरणोत्तर जीवन एवं उसकी सचाई
Type: TEXT
Language: HINDI
...

મૃત્યુ પછીનું જીવન અને એની સચ્ચાઈ
Type: SCAN
Language: GUJRATI
...


Releted Books



गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

युगगीता (भाग-४)
Type: TEXT
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • क्या मृत्यु ही जीवन का अंत है?
  • चेतनसत्ता का अस्तित्व मृत्यु के बाद भी
  • मरण के उपरांत पुनर्जन्म सुनिश्चित
  • संस्कारों की महत्ता
  • निरंतर गतिशील जीवन-प्रवाह
  • नियंता की कर्मफल व्यवस्था
  • पूर्वजन्म के संचित संस्कार, विलक्षण प्रतिभा के उपहार
  • मरण—सृजन का उल्लास भरा पर्व
  • एक सचाई, जिसे नकारा नहीं जा सकता
  • पुनर्जन्म सिद्धांत को भली भाँति समझा जाए
  • प्रमाण-ही-प्रमाण, अनेकों प्रमाण
  • मरने वाला फिर भी जन्मेगा
  • एक सचाई, जिसे नकारा नहीं जा सकता
  • स्वर्ग, नरक एवं कर्मफल
  • जन्म-जन्मांतर के संस्कार
  • कल का फल आज
  • संस्कार और अमुक्त वासना
  • मृत्यु उतनी भयानक नहीं, जितनी हम सोचते हैं
  • मरण के समय की अनुभूतियां
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj