
मरण के उपरांत पुनर्जन्म सुनिश्चित
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मरण के उपरांत कुछ समय पश्चात मनुष्य का नया जन्म होता है, इस संबंध में अब उपलब्ध तथ्यों का इतना बाहुल्य है कि संदेह एवं अविश्वास की बहुत कम गुंजाइश रह गई है।
पुनर्जन्म के संबंध में नास्तिकवादियों के अतिरिक्त ईसाई, मुस्लिम धर्मों की पुरातन मान्यताएं भी बाधक थीं। ये दोनों धर्म आत्मा का अस्तित्व बने रहने की बात तो कहते हैं, पर साथ ही यह भी बताते हैं कि महाप्रलय के उपरांत जब नई सृष्टि का सृजन होगा, तभी नया जन्म मिलेगा। इस मान्यता में लंबी अवधि का प्रतिपादन होने से पुनर्जन्म के प्रति कोई आकर्षण नहीं रह जाता और भले-बुरे कर्मों को भुगतने के लिए कुछ ही दिनों बाद नया जन्म लेना पड़ेगा यह मान्यता न हरने पर उस एकांत अवधि के प्रति निराशा जैसा चिंतन उभरने लगता है।
पुनर्जन्म की मान्यता जीवन को अनवरत रूप से गतिशील रहने का विश्वास दिलाती है और प्रगति-प्रयासों को तनिक-सा विराम लेने के उपरांत फिर से गतिशील बनने का उत्साह उत्पन्न करती है। यह परिणति की बात हुई। जहां तक जीवन के मरण-उपरांत के बाद भी बने रहने का प्रश्न है, वहां तक पुनर्जन्म के प्रमाणों से इस तथ्य की भली भांति पुष्टि हो जाती है। इतना विश्वास लोकमानस में सुदृढ़ रह सके, तो उसकी परिणति बिना वृद्धावस्था एवं मरण की बात सोचकर निराश हुए उपयोगी उत्कर्ष क्रम को उत्साहपूर्वक जारी रखा जा सकता है। साथ ही दुष्कृत्यों से विनिर्मित हुए कुसंस्कारों का प्रतिफल अगले जन्म में भुगतने की बात को भी बहुत बड़ा बल मिल सकता है।
कभी पुनर्जन्म धर्म एवं दर्शन का विषय था। ये दोनों ही क्षेत्र श्रद्धा प्रधान हैं। तर्क-प्रमाण जुटाने की आवश्यकता अनुभव की जाए, तो धर्मप्रेमियों का ही समाधान हो सकता है। जिनमें तथ्यान्वेषी जिज्ञासाएं हैं, उनको बिना आधार-प्रमाण पाए संतोष होता ही नहीं। अध्यात्मतत्त्वज्ञान की आधारशिला समझी जाने वाली पुनर्जन्म मान्यता को अब वैज्ञानिक अनुसंधान का विषय स्वीकार कर लिया है। उस संदर्भ में जो प्रत्यक्ष प्रमाण मिले हैं, उनसे पुरातन असमंजस की स्थिति धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। प्रत्यक्ष-प्रच्छन्न नास्तिकवाद को इन प्रस्तुत प्रमाणों के सम्मुख अपने पूर्वाग्रहों को छोड़ना या शिथिल करना पड़ रहा है। पुनर्जन्म की मान्यता जीवनक्रम में नीतिमत्ता एवं भविष्य की आशा बनाए रहने की दृष्टि से नितांत आवश्यक है।
डॉ0 इवान स्टीवेंसन (डायरेक्टर ऑफ डिपार्टमेंट ऑफ साइकियाट्री, वर्जीनिया—यू0एस0ए0) पूर्वजन्म संबंधी शोध करने वाले व्यक्तिओं के अगुआ माने जाते हैं इस विषय पर कई शोधग्रंथ लिखे हैं।
अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी समुद्र के किनारे रहने वाले रेड इंडियनों के पूर्वज हजारों वर्ष पूर्व एशिया से आकर वहां बसे हैं। इन लोगों में से एक व्यक्ति ने अपनी मृत्यु से पूर्व भावी जन्म ग्रहण का भविष्य कथन कर दिया। बाद में उसका अगला जन्म ठीक उसी आधार पर हुआ पाया गया। घटना इस प्रकार है—
1949 में विलियम सीनियर अपने स्थानीय क्षेत्र में मछुओं का अगुआ था। उसने अपने पुत्र और पुत्रवधू से एक दिन कहा कि यदि पुनर्जन्म नाम की चीज सचमुच होती होगी, तो मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। मेरे शरीर पर इस समय जहां-तहां जो चिह्न विद्यमान हैं, वे यदि तुम्हारे पुत्र के शरीर पर भी यथावत दिखें तो समझना कि मैंने ही तुम्हारे गर्भ में अपना नया जन्म ग्रहण किया है। थोड़े ही दिनों बाद मछली मारने जाने पर नाव उलट जाने से समुद्र में डूबकर वह मर गया। इसके कुछ दिनों बाद उस मछुआरे की पुत्रवधू गर्भवती हुई और समय पूर्ण होने पर उसने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम विलियम जॉर्ज जूनियर रखा गया। जैसे-जैसे लड़का बड़ा होने लगा उसके गुण-कर्म-स्वभाव को देखते हुए उसके माता-पिता का यह विश्वास दृढ़तर होता गया कि उस लड़के की केवल आकृति ही नहीं, अपितु, प्रकृति भी अपने दादा से हूबहू मेल खाती थी। इसके कुछ और भी उदाहरण-प्रमाण इस प्रकार हैं—
विलियम जॉर्ज सीनियर को बास्केट बाल खेलते हुए पैर में चोट आ गई थी, जिसके कारण वह लंगड़ाकर चला करता था। विलियम जॉर्ज जूनियर बचपन से ही इसी प्रकार लंगड़ाकर चला करता था। इतना ही नहीं, भयप्रद स्थानों पर उसका दादा जिस तरह लोगों को आगाही देते हुए गुस्सा प्रदर्शित करता था, वही आदत इसकी भी थी। इतनी कम उम्र में ही वह मछली मारने में अपने दादा जैसी निपुणता प्रदर्शित करने लगा। अपने मित्र-संबंधी और परिचितों के बारे में भी वह अच्छी-खासी जानकारी रखता था। मरने से कुछ वर्ष पूर्व विलियम ने अपने बेटे को सोने की घड़ी दी थी। एक दिन विलियम जूनियर के साथ उसकी मां अपने जेवरों को देख रही थी। जैसे ही लड़के ने घड़ी देखी, उसने कहा—‘‘मेरी घड़ी लाओ। घंटों की लड़-झगड़ के बाद भी उस घड़ी पर उसकी ममता कम नहीं हुई। 19 वर्ष की अवस्था तक घड़ी के प्रति उसका आकर्षण बना रहा। इसके पश्चात् युवावस्था में प्रवेश करते ही पूर्वजन्म संबंधी सारे-के-सारे लगाव क्रमशः कम होते चले गए। इस लड़के पर इवान स्टीवेंसन ने किशोरावस्था में परीक्षण किया था। दोबारा युवावस्था में भी उसने प्रयोग करके सारे निष्कर्ष निकाले थे।
अपने अनुसंधान के आधार पर इवान स्टीवेंसन ने मृत्यु और पुनर्जन्म की मध्यावधि संबंधी कुछ निष्कर्ष निकाले हैं। उनमें से एक यह है कि भिन्न-भिन्न स्थानों पर यह अवधि भिन्न पाई गई है यथा—टर्की में नौ महीने, लंका में इक्कीस महीने, भारत में 45 महीने तथा अलास्का के विलजिट इंडियन्स में 48 महीने। जिनकी किसी हिंसक घटना अथवा आक्रमण से मृत्यु हुई होती है, उनका जन्म जल्दी होता है तथा वे आमतौर से अपना बदला चुकाने के लिए आते हैं। ऐसे प्रसंग से जन्म श्रीलंका और भारत में चालीस प्रतिशत तथा लेबनान और सीरिया में 80 प्रतिशत पाया गया है।
पुनर्जन्म में व्यक्ति का लिंग-परिवर्तन भी होता देखा गया है। ऐसे पूर्व देह के सामान्य लक्षण अधिकतर दो से चार वर्ष की उम्र में अधिक प्रकट होते हैं तथा 5 से 8 वर्ष की उम्र तक समाप्त हो जाते हैं।
डॉ0 इयान स्टीवेन्सन ने पुनर्जन्म के सिद्धांत का निष्कर्ष निकालने से पूर्व सोलह सौ लोगों के पूर्व जन्म का अध्ययन करके कुछ ठोस अवधारणाएं वैज्ञानिक जगत के समक्ष प्रस्तुत कीं। बचपन से विलक्षण प्रतिभाशाली व्यक्तियों के व्यक्तित्व का कारण पुनर्जन्म के सिद्धांत के द्वारा ही समझाया जा सकता है और इसके मूल में कर्म का अकाट्य सिद्धांत अविच्छिन्न अंग के रूप में जुड़ा हुआ है।
प्रो0 सी0जे0 डुकास (ब्राउन यूनिवर्सिटी) ने एक शोधपत्र प्रकाशित किया है, जिसका शीर्षक है—‘‘दि डॉक्ट्रिन ऑफ इन्कार्नेशन इन दि हिस्ट्री ऑफ थॉट।’’ इसमें प्रागैतिहासिक काल से लेकर आज तक की पुनर्जन्म संबंधी अनेक घटनाओं का वर्णन है। इसमें एडनर कैसी का भी उदाहरण दिया गया है। अमेरिका में पुनर्जन्म की बातों का प्रचलन एडगर कैसी के प्रयत्नों के फलस्वरूप स्थापित हुआ। एडगर कैसी ने यह दावा किया है कि मैं बाईबल के समय से लेकर वर्तमान समय की पुनर्जन्म संबंधी सारी घटनाओं को संकलित कर सकता हूं।
इन प्रमाणों से पुनर्जन्म की वैज्ञानिकता तो अब तक सिद्ध नहीं हो पा रही है, किंतु पुनर्जन्म की पुष्टि करने वाले सशक्त उदाहरणों की संख्या और प्रामाणिकता दिनोदिन बढ़ती जा रही है। इससे ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि मनुष्य के लिए जो दो तत्त्व आज मान्यता प्राप्त हैं—(1) जेनेटिक हेरेडिटी (2) एनवायरनमेंटल इन्फ्लूएन्सेस, इनमें एक तीसरी बात और जुड़नी चाहिए और वह है—‘कर्म का सिद्धांत।’।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल जी0 जुंग एक बार अफ्रीका में कहीं जा रहे थे। यह उनकी वहां की पहली यात्रा थी। वहां पहाड़ी पर खड़े आदिम जाति के एक व्यक्ति को देखते ही उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे यह उनकी अपनी मातृभूमि है। उस काले व्यक्ति को देखते ही उन्हें ऐसा लगा कि जैसे वह उसी स्थान पर 5,000 वर्षों से खड़ा उनकी प्रतीक्षा कर रहा हो। उस गांव में प्रवेश करते ही उसके प्रत्येक स्थान के विषय में उन्हें ऐसा लगा,, मानो वहां के चप्पे-चप्पे से पूर्व परिचित हों। इस प्रकार की घटना के पीछे छिपे सिद्धांत को मनोविज्ञान में ‘डेजाबु’ नाम से जाना जाता है। जुंग इसकी व्याख्या ‘रिकॉग्नीशन ऑफ दि मेमोरी’ कहकर करते हैं।
विलियम चैपमैन ह्वाइट ने इस विषय पर लिखी अपनी पुस्तक में इस प्रकार की अनेक घटनाओं का वर्णन किया है। इसमें एक इस प्रकार है। श्री व श्रीमती ब्रेलोर्न अमेरिका से पहली बार मुंबई घूमने आए। उन लोगों ने बताया कि—‘‘मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं इस स्थान से चिर-परिचित हूं। एक रास्ते पर चलते हुए मैंने अपनी पत्नी से कहा कि अगले मोड़ पर एक विशाल चर्च होगा और उससे थोड़ी दूर आगे चलकर जब हम गली पार करेंगे, तो डिलाईल रोड आएगा। मेरी पत्नी ने मजाक में कहा—‘‘लगता है, आप यहां पहले कभी आए हुए हैं, इसीलिए आपको सभी रास्तों का पता है।’’ यह बात सुनते ही मैं चौक पड़ा कि—‘‘मुझे क्यों ऐसा लग रहा है कि मैं यहां के प्रत्येक स्थान से पूर्वपरिचित हूं? हम वहां प्रत्येक स्थान पर घूमते रहे और मुझे हमेशा ऐसा लगता रहा कि हर गली और प्रत्येक पुराना मकान मेरी अच्छी तरह देखा-भाला हुआ है। मलाबार हिल के पास पहुंचने पर श्री ब्रेलोर्न ने एक बड़े वटवृक्ष के पास खड़े सिपाही से पूछा कि—‘‘क्या इस स्थान पर कहीं कोई पुराना मकान था?’’ सिपाही ने बताया कि, मेरे पिता उस मकान में काम करते थे, इसलिए मुझे पता है कि वहां पर एक मकान था, लेकिन वह 90 वर्ष पूर्व तोड़ दिया गया। वह मकान किसी ब्रान परिवार का था। सिपाही का उत्तर सुनते ही श्री ब्रेलोर्न ने अपनी पत्नी को याद दिलाया कि उनने भी तो अपने पुत्र का नाम ब्रा ब्रेलोर्न ही रखा है। इस आश्चर्यजनक संगति को देखकर वे विस्मित रह गए। इस प्रसंग को उद्धृत करते हुए श्री ह्वाइट पुनर्जन्म को एक वास्तविकता मानते हैं।
बेंगलोर के मानसिक स्वास्थ्य तथा स्नायुतंत्र विज्ञान के राष्ट्रीय प्रतिष्ठान (निमहन्स) द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि परीक्षण किए गए 60 में से 45 मामलों में पुनर्जन्म के दावों पर पर्याप्त व ठोस प्रमाण मिले हैं। अध्ययन के दौरान प्रतिष्ठान के सामने 200 मामले आए, जिनमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब व मध्यप्रदेश के थे। लगभग आधे लोगों ने बताया कि पूर्वजन्म में उनकी अप्राकृतिक मृत्यु हुई थी। पुनर्जन्म की कथाएं सुनाने वाले सभी की आयु 10 वर्ष के भीतर थी। इनमें एक-तिहाई संख्या लड़कियों की थी।