जन्मशताब्दी समारोह स्थल में जहाँ स्मारक नहीं, संस्कार पूजे गए
आयोजन से पूर्व युगऋषिद्वय की पावन स्मारक का हुआ विशेष पूजन कार्यक्रम
हरिद्वार 16 दिसंबर।
कुछ क्षण ऐसे होते हैं जो इतिहास नहीं बनते, बल्कि इतिहास को दिशा देते हैं। अखिल विश्व गायत्री परिवार, शांतिकुंज द्वारा आयोजित होने जा रहे वंदनीया माता भगवती देवी शर्मा एवं अखण्ड दीप के शताब्दी समारोह से पूर्व सम्पन्न हुआ ‘सजल श्रद्धा-प्रखर प्रज्ञा’ का विशेष पूजन ऐसा ही एक क्षण था। पूजा किसी स्मारक की नहीं थी, यह उस चेतना का पूजन था जिसने एक युग को दिशा दी, उस तपस्या का वंदन था जिसने करोड़ों जीवनों में आलोक जगाया और उस संकल्प के प्रति नतमस्तक होने का क्षण था जो आज भी भारत की आत्मा को जाग्रत कर रहा है।
रामकृष्ण मिशन के संत स्वामी दयामूत्र्यानंद जी एवं श्री अरविन्द आश्रम के प्रमुख संत स्वामी ब्रह्मदेव जी की पावन उपस्थिति ने इस आयोजन को एक व्यापक आध्यात्मिक विस्तार प्रदान किया। यह दृश्य मानो मौन स्वर में यह उद्घोष कर रहा था कि सत्य की धाराएँ भिन्न हो सकती हैं, पर उनका स्रोत एक ही है। संतों के सानिध्य में जब युगऋषिद्वय के स्मारक पर वैदिक मंत्रों का सस्वर गान हुआ, तो वह केवल शब्दों की ध्वनि नहीं रही, वह परंपराओं के बीच सेतु बन गई, विचारधाराओं के बीच संवाद बन गई, और साधना की अखंड धारा बनकर बह चली।
हरिद्वार के जिलाधिकारी श्री मयूर दीक्षित, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री प्रमेन्द्र डोभाल सहित प्रशासन और पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी जब साधकों के साथ एक ही पंक्ति में खड़े दिखाई दिए, तो यह स्पष्ट हो गया कि यह आयोजन व्यवस्था का नहीं, विश्वास का है। यहाँ पद पीछे छूट गए और मानव पहले आया। यहाँ अधिकार नहीं, उत्तरदायित्व ने स्थान लिया। यहाँ सत्ता नहीं, संवेदना ने नेतृत्व किया।
जन्मशताब्दी समारोह के दलनायक डॉ. चिन्मय पण्ड्या की गरिमामयी उपस्थिति इस भाव को और अधिक प्रखर कर रही थी कि यह आयोजन केवल वर्तमान का उत्सव नहीं, बल्कि भविष्य की संरचना है, एक ऐसा भविष्य जहाँ अध्यात्म जीवन से पलायन नहीं, जीवन का केंद्र होगा। इस अवसर पर संतद्वय ने कहा कि युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य और माता भगवती देवी शर्मा का जीवन किसी संप्रदाय की सीमा में नहीं बंधा, बल्कि वह उस सार्वभौमिक चेतना का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ सेवा ही साधना है और साधना ही समाज-निर्माण का आधार।
इस दौरान डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि यह एक अलौकिक पायदान में पहुंच गयी है। युगऋषिद्वय ने जो दीप जलाया है, वह सम्पूर्ण मानवता के लिए था। जन्मशताब्दी समारोह उसी अखंड दीप की लौ को अगली शताब्दी तक पहुँचाने का संकल्प है। परिसर में लहराते वासंती ध्वज भी मानो बोल रहे थे, आशीर्वाद की भाषा में, प्रेरणा की तरंगों में और आशा के रंग में। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वे अपने हाथ उठाकर कह रहे हों, चलो, आगे बढ़ो। यह मार्ग तुम्हारा है। यह युग तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है। जब गुरु चरणन मन भाये जैसे भक्तिगीत गूँजे, तो वह केवल संगीत नहीं था। वह स्मृति बन गया, तपस्या की स्मृति, त्याग की स्मृति, और उस मौन साधना की स्मृति जिसने बिना शोर किए एक युग का निर्माण कर दिया। इस अवसर पर देश के कोने कोने से आये सैकडों परिजन उपस्थित रहे।
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