हमारी वसीयत और विरासत (भाग 120): चौथा और अंतिम निर्देशन
बात जो विवेचना स्तर की चल रही थी, सो समाप्त हो गई और सार-संकेत के रूप में जो करना था, सो कहा जाने लगा।
‘‘तुम्हें एक से पाँच बनना है। पाँच रामदूतों की तरह, पाँच पांडवों की तरह काम पाँच तरह से करने हैं, इसलिए इसी शरीर को पाँच बनाना है। एक पेड़ पर पाँच पक्षी रह सकते हैं। तुम अपने को पाँच बना लो। इसे ‘सूक्ष्मीकरण’ कहते हैं। पाँच शरीर सूक्ष्म रहेंगे; क्योंकि व्यापक क्षेत्र को सँभालना सूक्ष्मसत्ता से ही बन पड़ता है। जब तक पाँचों परिपक्व होकर अपने स्वतंत्र काम न सँभाल सकें, तब तक इसी शरीर से उनका परिपोषण करते रहो। इसमें एक वर्ष भी लग सकता है एवं अधिक समय भी। जब वे समर्थ हो जाएँ, तो उन्हें अपना काम करने हेतु मुक्त कर देना। समय आने पर तुम्हारे दृश्यमान स्थूलशरीर की छुट्टी हो जाएगी।’’
यह दिशा-निर्देशन हो गया। करना क्या है? कैसे करना है? इसका प्रसंग उन्होंने अपनी वाणी में समझा दिया। इसका विवरण बताने का आदेश नहीं है। जो कहा गया है, उसे कर रहे हैं। संक्षेप में इसे इतना ही समझना पर्याप्त होगा—
1— वायुमंडल का संशोधन,
2— वातावरण का परिष्कार,
3— नवयुग का निर्माण,
4— महाविनाश का निरस्तीकरण— समापन,
5— देवमानवों का उत्पादन— अभिवर्द्धन।
‘‘यह पाँचों काम किस प्रकार करने होंगे; इसके लिए अपनी सत्ता को पाँच भागों में कैसे विभाजित करना होगा; ‘भगीरथ’ और ‘दधीचि’ की भूमिका किस प्रकार निभानी होगी? इसके लिए अलौकिक क्रियाकलापों से विराम लेना होगा। बिखराव को समेटना पड़ेगा। यही है— सूक्ष्मीकरण।’’
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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