
गायत्री परिवार के समाचार
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विशद् गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति के समय देश भर में 108 यज्ञों के आयोजन का संकल्प किया गया था, प्रसन्नता की बात है वह आगामी गुरु पूर्णिमा-आषाढ़ सुदी 15 को पूर्ण होने जा रहा है। धार्मिक भावनाओं की लहरें बढ़ रही हैं और शुभ कर्मों के लिए लोगों में उत्साह पैदा हो रहा है। विभिन्न स्थानों के गायत्री प्रेमी अपने-अपने यहाँ मथुरा के यज्ञ के आधार पर अनेक व्यक्तियों को भागीदार बनाने के प्रयत्न में लगे हुए हैं और उनके द्वारा बड़ी संख्या में गायत्री जप का आयोजन हो रहा है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन स्थान-स्थान पर सामूहिक हवन होंगे। 24 करोड़ जप और 24 लक्ष आहुतियों का अनुमान किया गया था- पर अब ऐसा लगता है कि इससे कहीं अधिक होगा।
प्रायः सभी यज्ञों में हमें आमन्त्रित किया गया है, परन्तु चूँकि उन दिनों इन सभी 108 यज्ञों का संरक्षण और रही हुई त्रुटियों का दोष परिमार्जन का बहुत भारी उत्तरदायित्व होने के कारण हमारा मथुरा एक स्थान पर ही रहना आवश्यक है। इसलिए इस अवसर पर कहीं भी जा सकना सम्भव नहीं। इस विवशता के लिए सभी से क्षमा प्राप्त हो जाने की आशा है। जिनके निमन्त्रण हैं उनके यहाँ इसी वर्ष किसी अन्य अवसर पर आने का प्रयत्न करेंगे। गायत्री परिवार के सदस्यों के घर परिवार को देख लेने, उस क्षेत्र के धर्म-प्रेमियों में गायत्री उपासना के लिए उत्साह पैदा करने तथा साँस्कृतिक पुनरुत्थान योजना को व्यापक बनाने के उद्देश्य से एक देश व्यापी दौरा करने का विचार अवश्य है। हर महीने इसके लिए एक सप्ताह निकालते रहने का विचार है। जहाँ के परिजनों का अधिक उत्साह एवं आग्रह होगा वहाँ के प्रोग्राम को प्राथमिकता दी जायगी।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर होने वाले यज्ञों में ‘ब्रह्म-भोज’ के रूप में ज्ञानदान के ब्रह्मदान की प्रधानता रहनी चाहिए। जितना व्यय भोजन कराने में करना हो उतने पैसे का सस्ता गायत्री साहित्य मँगाकर वितरण करने या आधे-चौथाई मूल्य में बेचने का आयोजन करना चाहिए। इस प्रकार किया हुआ ज्ञान दान का ब्रह्म-भोज किसी को एक समय पूड़ी-पकौड़ी खिला देने से अधिक महत्वपूर्ण है। प्रत्येक यज्ञ में इस प्रकार का ‘ब्रह्म-दान’ आवश्यक है।
शुभ कार्यों में सहयोग देना, सत्पुरुषों की सद्भावनाओं का सम्मान करना, उन्हें उत्साह देना, अभिनन्दन करना तथा कृतज्ञता प्रकट करना हमारा परम पुनीत कर्तव्य है। विशद् गायत्री महायज्ञ में संरक्षक तथा भागीदार बनने वाले, पूर्णाहुति में पधारने वाले, आर्थिक शारीरिक या भावनात्मक सहयोग देकर उस महान् आयोजन को सफल बनाने वालों के लिए गत अंक में कृतज्ञता प्रकट कर चुके हैं। अब विशद् गायत्री महायज्ञ के उन सब सहयोगियों तथा आगामी गुरु पूर्णिमा के अवसर पर विभिन्न स्थानों पर होने वाले 108 यज्ञों में भाग लेने वाले सज्जनों को कृतज्ञतापूर्ण अभिनन्दन करने के लिए सुन्दर ‘अभिनन्दन-पत्र’ छपवाये गये हैं। पर उन्हें डाक से अलग-अलग भेज सकना कठिन एवं बहुत व्यय साध्य है। इसलिए उत्साही परिजनों से प्रार्थना है कि अपने क्षेत्र के इन सहयोगी सज्जनों के नाम एवं संख्या भेजकर उसके लिए इकट्ठे ही अभिनन्दन-पत्र यहाँ से मँगालें और सहयोगी सज्जनों तक पहुँचाने का कार्य स्वयं करें।
पाँच पैसे वाली आठ अत्यन्त सस्ती पुस्तकों का सैट इस कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त है। गायत्री ज्ञान अंक अब समाप्त हो गया है। इसलिए यज्ञों के ब्रह्म-भोज के रूप में इन सस्ती पुस्तकों का वितरण उचित है, जो हवन न कर सकें वे भी गुरु पूर्णिमा के पुनीत पर्व पर ब्रह्मदान एवं ब्रह्म-भोज के लिए यह पुस्तकें मँगा सकते हैं। स्मरण रहे 6) से कम मूल्य की पुस्तकों पर डाक व्यय भी देना होता है इसलिए उससे अधिक की ही पुस्तकें मँगानी चाहिए।
गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ सुदी 15) को जहाँ-जहाँ सामूहिक हवन होंगे वहाँ की प्रारम्भिक सूचनायें अभी हमें प्राप्त हो रही हैं। पर संभव है उनमें कोई परिवर्तन हो जाय इसलिए सभी यज्ञ संयोजकों को चाहिए कि अपने आयोजन की निश्चित सूचना आषाढ़ बदी अमावस्या को यज्ञ से 15 दिन पूर्व फिर दे दें, ताकि यज्ञ में रही हुई त्रुटियों का दोष परिमार्जन तथा विघ्नों से रक्षा के लिए संरक्षण यहाँ होता रहे। सामूहिक यज्ञ समाप्त होते ही उनका पूरा विवरण, आहुतियों की संख्या तथा उसमें भाग लेने वालों तथा सहयोग देने वालों के नाम, पते भेज देने चाहिए ताकि उनके लिए धन्यवाद तथा अभिनन्दन के सुन्दर प्रमाण-पत्र यहाँ से भेजे जा सकें। उसी सूची के साथ-साथ गत विशद् गायत्री महायज्ञ के अपने निकटवर्ती भागीदारों तथा संरक्षकों के नाम की लिस्ट भेजकर उनके लिए भी धन्यवाद-पत्र यहाँ से मँगा लेने चाहिए।
हर्ष की बात है कि विशद् गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति के बाद देश के कोने-कोने में गायत्री महायज्ञों के सामूहिक आयोजन एवं साँस्कृतिक सम्मेलनों की शृंखला तेजी से फैल रही है। गत मास झालरा पाटन में सवा लक्ष आहुतियों का एक विशाल यज्ञ हुआ था। इस मास गायत्री जयन्ती के अवसर पर सुकेत, कनवास, आंवा, जुल्मी, सुसनेर, जोधपुर आदि अनेकों स्थानों पर यज्ञ हुए, इनमें से पाँच स्थानों में तो हमारा स्वयं का पहुँचना भी संभव हो सका। अब गुरु पूर्णिमा पर छोटे और बड़े 108 से भी अधिक यज्ञ एक ही दिन में पूरे हो जाएंगे। गत वर्ष विशद् गायत्री महायज्ञ के अंतर्गत जिस प्रकार 125 करोड़ जप और 125 लाख आहुतियों का हवन हुआ था, उसी प्रकार मथुरा में तो नहीं, पर देशव्यापी गायत्री परिवार के विभिन्न क्षेत्रों में कुल मिलाकर इतना ही हवन और इतना ही जप हो जाने की आशा है। रामगंज मंडी में 24 लक्ष आहुतियों का हवन 101 हवन कुण्डों में होने वाला है। 11 कुण्डों में 10 दिन तक हवन चलाकर 24 लक्ष आहुतियाँ करने का झालावाड़ निवासियों ने भी निश्चय किया है। इन दो यज्ञों का हवन ही 48 लाख हो जाता है। 125 लाख पूरा होने में ऐसे ही केवल तीन बड़े यज्ञ और हो जाने की आवश्यकता है, सो प्राप्त सूचनाओं के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि रामगंज मंडी वालों ने राजस्थान प्रान्तीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन करके जो पथ प्रदर्शन किया है उसके अनुसार उत्तर भारत के प्रायः सभी प्रान्त इस सम्बन्ध में एक दूसरे से पीछे न रहने का प्रयत्न करेंगे और 125 लाख ही नहीं 240 लाख आहुतियों तक की संख्या पहुँचा देंगे। राजस्थान ने जो साहस किया है उसे अन्य प्रान्त वालों ने एक चुनौती माना है और कोई भी अपनी हेटी कराने तथा पीछे रहने को तैयार नहीं है। सभी प्रान्तों में 101 कुण्डों के बड़े यज्ञों की हलचलें तथा तैयारियाँ आरम्भ हो रही हैं।
गायत्री तपोभूमि में अखण्ड गायत्री जप, घृत दीप की अखण्ड ज्योति, अखण्ड जलधारा का गायत्री अभिषेक भी चालू करने का प्रबन्ध किया जा रहा है। जेष्ठ सुदी 10 को गायत्री जयन्ती के दिन तपोभूमि में समारोहपूर्वक उत्सव मनाया गया तथा यह तीनों ही कार्य-क्रम चलाये गये। गुरु पूर्णिमा तक यह प्रयोग परीक्षात्मक चलेगा। इसके बाद इन तीनों आयोजनों को स्थायी कर देने का विचार है। नैष्ठिक गायत्री उपासक जो स्थिर चित्त से इन तीनों साधनाओं को संभालने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले सकें इस योजना के लिए आवश्यक हैं, जो महिलायें तथा पुरुष इन अखंड साधनाओं में तन्मय होकर अपनी आत्मा में अखंड प्रकाश का अनुभव करना चाहें, उनका तपोभूमि स्वागत करेगी उनके भोजन आदि की सुविधा भी यहाँ मौजूद है।
गायत्री तपोभूमि में जो साँस्कृतिक शिक्षण शिविर पूर्णाहुति के बाद आरम्भ हुआ था वह गायत्री जयंती के दिन को आनन्दपूर्वक समाप्त हुआ। 40 छात्रों ने यज्ञादि की शास्त्रीय शिक्षा सफलतापूर्वक पूर्ण की।