
सकाम यज्ञों के कुछ विधि-संकेत
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पलाशीभिरवाप्नोति समदभिर्ब्रह्म वचंसम।
पलाश कुसुमैर्हुत्वा सर्वमिष्टेमवाप्नुयात्॥
पलाश की समिधाओं से हवन करने पर ब्रह्म तेज की अभिवृद्धि होती है और पलाश के कुसुमों से हवन करने पर सभी इष्टों की सिद्धि होती है।
यवानां लक्ष होमेन घृतात्तायें हुताशने।
सर्व काम समृद्धात्मा परां सिद्धिमवाप्नुयात्॥
यवों में घी मिलाकर एक लाख बार अग्नि में आहुति देने से सब कर्मों की सिद्धि होती है तथा परा सिद्धि प्राप्त होती है।
सर्वदा होम जप्याद्यैः पाठाद्यैश्च रणे जयः।
अष्टाविंशभुजा ध्येया असिखेटकवत्करौ॥
अग्नि. पु. अध्याय 134 श्लो. 2
हमेशा हवन, जप और पाठ आदि से युद्ध में जय होती है। यज्ञ करते समय, हाथों में खंग और खेटक धारण किये अट्ठाइस भुजाओं वाली दुर्गा देवी का ध्यान करना चाहिये।
श्रीकामः शान्तिकामो वा ग्रह यज्ञं समारभेत्।
वृष्टयायुः पुष्टिकामो वा तथैवाभिचरन्पुनः॥
आ. पु. अ. 164 श्लो. 1
लक्ष्मी की कामना करने वाला अथवा शान्ति की कामना करने वाला, ग्रहों का हवन करे। वृष्टि, आयु अथवा पुष्टि की कामना करने वाला उसी प्रकार नवग्रहों का हवन करें।
संसाध्येशानमन्त्रेण तिल होमो बशीकरः।
जयः पद्मैस्तु दूर्वाभिः शान्तिकामः पलाशजैः॥
पुष्टिःस्यात्काकपक्षेण मृतिर्द्वेषादिकं भवेत्।
ग्रहक्षुद्र भयापत्तिं सर्वमेव मनुर्भवेत्॥
अग्नि. पु. अ. 307 श्लोक 20, 21
सिद्ध किये हुए ईशान मन्त्र में तिलों का हवन करने से सब वश में होते हैं। कमलों के हवन से जय की प्राप्ति होती है। शक्ति की कामना वाला दूव का हवन करें। पलाश के फूलों का हवन करने से पुष्टि होती है। काक पक्ष से सब दोषादिकों का अन्त होता है। क्षुद्र ग्रह, भय, आपत्ति, मानो सब ही नष्ट हो जाती हैं।
श्रीगेहे विष्णुगेहे वा श्रियं पूजां धनं लभेत्।
आध्याक्तैस्तण्डुलैर्लक्षं जुहुयात्खदिरानले॥
राजा वश्योभवेद्वृद्धिः श्रीञ्चस्यादुत्तरोत्तरम्।
सर्षपाम्भोऽभिषेकेण नश्यते सकला ग्रहाः॥
अ. पु. अ. 307 श्लोक 3, 4
लक्ष्मी के मन्दिर में अथवा विष्णु के मन्दिर में लक्ष्मी जी के यज्ञ से पूजा करके धन को प्राप्त करें। घी से मिले हुए आँवलों से खैर की अग्नि में एक लाख हवन करने से राजा वश में होता है और उत्तरोत्तर लक्ष्मी की वृद्धि होती है।
सरसों और पानी के अभिषेक करने से सब ग्रह दोष नष्ट हो जाते हैं।
ब्रह्म वर्चस कामास्तु पयसा जुहुयात्तथा।
घृत प्लुतैस्तिलैर्ब्रहिं जुहुयात्सु समाहितः॥
ब्रह्म तेज की कामना करने वाला व्यक्ति सावधानी के साथ घृतयुक्त तिलों से और घी में हवन करे।
गायत्र्युत होमाञ्च सर्वपापै प्रमुच्यते।
पापात्मा शक्ष होमेन पातेकभ्यः प्रमुच्यते॥
एक लाख आहुतियों से गायत्री द्वारा हवन करने से पापी मनुष्य भी पापों से छूट जाता है।
इसी प्रकार के अगणित प्रयोग शास्त्रों में भरे पड़े हैं। यदि इनका पूरा विधान उपलब्ध हो सके, खोजा जा सके तो भारत-भूमि पुनः प्राचीन काल की तरह स्वर्ण भूमि बन सकती है। इस शोध कार्य की वैज्ञानिक अनुसन्धान प्रणाली के लिए अपने जीवन को खपा देने वाले सच्ची लगन के निष्ठावान् व्यक्तियों की आज भारी आवश्यकता है।
*समाप्त*