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Magazine - Year 1984 - Version 2

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धरती की टोह लेने वाली ब्रह्माण्डीय शक्तियाँ

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अब यह एक कपोल कल्पना मात्र नहीं रही कि मानव का उद्भव इस धरित्री पर नहीं हुआ अपितु जीव जगत की यह विशिष्ट सत्ता परोक्ष जगत अवस्थित किसी अन्य लोक से यहाँ आई है। जैव विकास सम्बन्धी अनुसंधानों से ये पूर्वाग्रह मिटते जा रहे हैं क्योंकि अनेकानेक ऐसे प्रमाण मिले हैं, जिनसे शोधकर्ताओं के इस दावे को बल मिलता है कि अन्यान्य ग्रहों में भी जीवन है। सम्भव है मनुष्य का आगमन ऐसे ही किसी ग्रह से यहाँ हुआ हो एवं यहाँ उसने सभ्यता का विस्तार कर यह दुनिया विनिर्मित कर ली हो। प्रख्यात लेखक एरिक वॉन डैनिकेन ने जो पुरातत्वविद् भी हैं, अपना सारा जीवन ही इस मान्यता को दृढ़ बनाने के निमित्त खपा दिया कि मानव देवपुत्र है। उनका कथन है कि बहुत समय पूर्व किसी अति विकसित अन्तरिक्षीय ग्रह गोलक से देवमानव पृथ्वी पर आए और अपनी विकसित तकनीक द्वारा उन्होंने पृथ्वी को रहने योग्य बनाया। “चेरिअट्स आफ गॉड्स,” “गॉडस् ऑफ गॉड्स”, “इन सर्च ऑफ दी एन्शीएण्ट गॉड्स” जैसी बेस्ट सेलर पुस्तकों के सृजेता इस जर्मन मनीषी का मत है पृथ्वी से इतर अन्यान्य ग्रहों में निश्चित ही कोई अति विकसित सभ्यता निवास करती है। अपने कथन की पुष्टि हेतु उन्होंने वैदिक विज्ञान की विकसित तकनीक का इतिहास, आर्यों का पृथ्वी पर अवतरण तथा तात्कालीन सतयुगी परिस्थितियों का भी वेदों के माध्यम से हवाला दिया है।

साइन्स डाइजेस्ट (जुलाई 82) में प्रकाशित एक शोध प्रबन्ध में डा. नेल्सन विगनर ने यह प्रामाणित करने की कोशिश की है कि भले ही पृथ्वी स्थित वैज्ञानिक इस विराट् अन्तरिक्ष में सभ्य विकसित ग्रहों द्वारा सम्प्रेषित सन्देशों को “डिकोड” कर पाने (मूल अर्थ समझ पाने) में सफल न हो पाए हों, अन्तरिक्ष में जीवन अवश्य है। इसके लिए उन्होंने आज से बीस वर्ष पूर्व सुझाव दिया था कि हमारे वैज्ञानिकों को भी प्रकाश से अधिक सम्प्रेषण गति वाले सन्देश भेजना चाहिए। यूफॉलॉजी में रुचि रखने वाले डा. मिल्टन बेर्ली जो खगोल भौतिकीविद् हैं, इस सुझाव से सहमत हुए व उन्होंने 1966 में रेडियो तरंगों द्वारा सम्प्रेषण कार्य आरम्भ कर दिया। डा. नेल्सन का मत है कि गत 6 वर्षों में राडार पर देखी जाने वाली उड़न तश्तरियों की संख्या, में तथा बाहर से आने वाले रेडियो संकेतों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। उनके अनुसार सम्भवतः ये घटनाक्रम उन सन्देशों के प्रत्युत्तर में है जो यहाँ से भेजे गए थे। अब तक बीस से भी अधिक तारों, जिन पर जीवन होने की सम्भावना वैज्ञानिकों को प्रतीत होती है, तथा पृथ्वी से भेजे सन्देश पहुँच चुके हैं। यह परिकल्पना सत्य प्रतीत होती है कि अन्यान्य ग्रह वासी उत्सुकता वश खोज खबर लेने अपने सन्देश ही नहीं, सन्देश वाहक भी भेज रहे हैं ताकि पृथ्वी वासियों से संपर्क शृंखला जारी रहे। पारस्परिक आदान-प्रदान की उनकी अभिरुचि को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि न केवल राडार पर उन्हें देखा गया अपितु मनुष्यों पर भी उन्होंने घात लगायी है। कई ऐसे घटनाक्रम प्रकाश में आए हैं जिनमें कुछ व्यक्ति या समूहों द्वारा उन्हें प्रत्यक्ष आँखों से देखा गया है।

23 अगस्त 1983 को स्टाक होम से प्रकाशित “ऑकलैण्ड स्टार” नामक पत्र में स्वीडन के कैप्टन लेनर्ट बर्ग स्टोर्म की उड़न तश्तरी सम्बन्धी एक आँखों देखी घटना प्रकाशित हुई थी। उन्होंने 17 दिसम्बर 1982 की सन्ध्या 5 बजे एक विचित्र दृश्य देखा। पृथ्वी की ओर गतिशील एक चपटा सा यान तेज चमचमाते प्रकाश के साथ उनके सामने से गुजरा व लगभग 3 किलोमीटर दूर जंगल में जाकर रुक गया। प्रारम्भ में उन्होंने इसे मिलिटरी ट्रांसपोर्ट हैलिकाप्टर समझा। किन्तु ध्वनि रहित इस यान को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए। जब इसमें से दो छोटे-छोटे यान निकलकर उनके समीप से गुजरे व कुछ दूर जाकर रुक गए। थोड़ी देर वहीं रहकर दोनों यान मूल यान से जुड़कर दूर आकाश में उड़ गए। कैप्टन का कहना है कि “मेरी आंखें 25 वर्ष का सेना का अनुभव होने के कारण धोखा नहीं खा सकती। यह स्पष्टतः दूरस्थ आकाशगंगा से आयी हुई एक उड़न तश्तरी है जो सम्भवतः जीवन के चिन्ह तलाशने यहाँ आई थी।”

अन्यान्य वैज्ञानिक जो पृथ्वी से इतर जीवन में दिलचस्पी रखते हैं अपना मत व्यक्त करते हुए कहते हैं कि पृथ्वी पर गिरे उल्का पिण्डों का विश्लेषण करने पर अन्यत्र जीवन की सम्भावना प्रबल प्रतीत होती है। डा. कैल्विन तथा उनके सहयोगियों ने उल्का पिण्डों में ऐसे फॉसिल्स (जीवाष्मों) तथा न्यूकलीयर अम्लों को पाया है जो पार्थिव जीवन के अंश नहीं हो सकते। यह एक संयोग ही है कि जहाँ-जहाँ उड़न तश्तरियाँ पायी गयी हैं, उस स्थान से लिये गए नमूनों का विश्लेषण करने पर रेडियो धर्मिता के साथ-साथ न्यूक्लियर अम्लों को प्राचुर्य भी पाया गया है।

अमेरिका की नेशनल एरोनॉटिक्स एण्ड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) संस्था ने पृथ्वी से इतर सभ्यता की खोज की दिशा में काफी कदम उठाए हैं। यूफॉलाजी नामक एक विद्या ही इस क्षेत्र में विकसित हो गयी है। यहाँ कार्यरत एक वैज्ञानिक का कथन है कि पृथ्वी पर कहीं कालपात्र के छिपे होने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता। इससे पुरातन सभ्यता के रहस्यों को उजागर कर पाना भी सम्भव हो सकेगा। सम्भवतः इस काल पात्र की खोज में ही ये अन्तरिक्ष यान आते हैं। चूँकि अधिकतम उड़न तश्तरियाँ इंग्लैण्ड के पश्चिमी तट, अमेरिका के पूर्वी किनारे एवं मध्य पूर्व एशिया में देखी गयी हैं, प्रतीत होता है कि अपनी विकसित तकनीक के बलबूते उन्होंने यह जान लिया है कि यह कालपात्र कहाँ छिपा है?

पिछले दिनों स्टेन फोर्ड यूनिवर्सिटी एवं नासा के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा कम्प्यूटराइज्ड यन्त्र बनाया है जो एक बड़ी रेडियो फ्रीक्वेंसी को स्कैन कर सकता है। इस मल्टीचैनल इलेक्ट्रानिक स्कैन से अन्य ग्रहों से प्रसारित सन्देशों को पकड़ सकने में मदद मिल सकेगी। एक करोड़ चैनल वाले इस उपकरण को रेडियो स्पेक्ट्रम वर्तमान एक हर्ट्ज से एक हजार गुना से भी कम है। इतने प्रयास चलने पर भी उड़न तश्तरियों के आने व संकेतों के प्रसारण का क्रम जारी है। अभी तक यह ज्ञात नहीं हो पाया है कि कौन सा या कौन से ग्रह ये विशिष्ट यान पृथ्वी पर भेज रहे हैं।

नासा के वैज्ञानिक कुतुबमीनार व यहाँ की लाट, पेरु की प्रसिद्ध नाज्का लाइन तथा मिश्र के पिरामिडों को पुरातन काल के वैज्ञानिकों द्वारा प्रयुक्त अंतर्ग्रहीय सभ्यता से आदान-प्रदान का माध्यम मानते हैं। इन तीनों के ही रहस्यों को अभी सुलझाया नहीं जा सका है। उड़न तश्तरियाँ अभी ही आती हों, ऐसी बात नहीं। पहले भी आती रही होंगी व आदान-प्रदान का क्रम चलता रहता होगा। कहीं-कहीं ये आरोप लगाया गया है कि ये मानव विनिर्मित हैं। इसके प्रत्युत्तर में ‘नासा’ के वैज्ञानिक कहते हैं कि इन्हें सामान्य पृथ्वी वासियों ने ही नहीं, एरोनॉटिक्स के ऐसे विशेषज्ञों ने देखा है जो कभी धोखा नहीं खा सकते। इनका एकदम स्थिर हो जाना, कभी-कभी गोल घूमना, फिर घूमकर अदृश्य हो जाना, राडार की चैनल्स को ब्लॉक कर देना यह बताता है कि ये कदापि मानव विनिर्मित नहीं हैं। सेटी (सर्च फॉर एक्सट्राटेरेस्ट्रियल इन्टेलीजेन्स) के निदेशक जान बगिंघम का कहना है कि प्रबुद्ध जीवन समग्र अन्तरिक्ष में फैला पड़ा है एवं अन्यान्य ग्रहों से सतत् पृथ्वी की निगरानी की जा रही है।

किसी अपरिचित स्थान पर वहाँ की भाषा न जानने वाला जा पहुँचे तो सकपकाना स्वाभाविक है। ऐसी ही कुछ स्थिति सम्भवतः ग्रहों से आने वाले यानों की हुई है, जो कुछ व्यक्त तो करना चाहते हैं पर संपर्क माध्यम के अभाव में न कह सकने पर अपनी कौतुक लीला दिखाकर वापस लौट जाते हैं। इसे मात्र प्रकृति की लीला, उल्कापात, अदृश्य किरणों का दृश्य रूपांतरण मात्रा कहकर नहीं टाला जा सकता। घटना क्रमों की समीक्षा करने पर लगता है कि कहीं न कहीं कोई विधिवत् योजना इसके मूल में निहित होनी चाहिए।

इंग्लैण्ड की ज्योतिर्विज्ञान विद्या के निदेशक सर बर्नार्ड पावेल, जो रेडियो, टेलिस्कोप से निरन्तर किसी भूले भटके अंतरिक्षीय यान की टोह लगाते रहते हैं, का कहना है कि मात्र हमारी आकाश गंगा में लगभग पाँच प्रतिशत तारे ऐसे हैं जिन पर जीवन की सम्भावना है। ब्रह्माण्ड तो अत्यन्त विराट् है। पूरे ब्रह्माण्ड में हमारा सौर परिवार तो एक जुगनू के समान है। हमारी आकाश गंगा जैसी नौ खरब आकाश गंगायें और भी हैं जिनकी हमें कोई जानकारी नहीं। यदि हम इतना भर मान लें कि आकाश गंगा के पाँच नहीं, एक प्रतिशत में जीवन है तो 100 अरब तारों में से 1 अरब तारों के ग्रहों पर जीवन की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता। अन्यान्य आकाश गंगाओं की बात सोची जाय तो दिमाग चकरा ही जाएगा।

किन्तु मानवी प्रयास जारी हैं। अन्यान्य ग्रहों पर जीवन के प्रमाण स्वरूप प्रकट होने वाले यानों से उन्होंने काफी निष्कर्ष निकाले हैं। अब तक लगभग 1600 से भी अधिक ऐसी घटनाओं की जानकारी मिली है जिनसे अन्यान्य ग्रहों पर जीवन का अस्तित्व सिद्ध होता है। आने वाले इन अन्तरिक्षीय यानों से किसी प्रकार की हानि मानव जाति को पहुँची हो, ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता। दूसरे “पृथ्वी पर जीवन कैसे आया’, इस गुत्थी को सुलझाने में वैज्ञानिकों को काफी मदद मिली है। “इकैरस” नामक जापानी पत्रिका में प्रकाशित हिरोमित्सू योकू एवं तैरो ओशिमा नामक दो वैज्ञानिकों ने लिखा है कि “बैक्टीरियोफाज एक्स 174 डी. एन. ए.” अन्तरिक्षीय सभ्यता का सन्देश वाहक है एवं यह भूमण्डल पर पाया जाता है, इससे निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पृथ्वी में जीवन का उद्भव अन्तरिक्ष से आयी विकसित सभ्यता द्वारा हुआ है। इन कणों के परीक्षण से ज्ञात होता है कि जटिल कार्बनिक अणु मानवेत्तर ग्रहों से यहाँ आए हैं, साथ ही जीवन भी।

जीवन के अस्तित्व का एक प्रधान प्रमाण है डी. एन. ए. का पाया जाना। जीव संरचना के इस मूल आधार के अन्तरिक्ष में होने, प्रमाण मिलने, उड़न तश्तरियों के आते-जाते रहने तथा उन स्थानों पर जहाँ वे ठहरी हों- डी. एन. ए. के कार्बनिक अणु व रेडियो धर्मी विकिरण के पाये जाने से अन्यान्य ग्रहों पर जीवन के प्रत्यक्ष प्रमाण मिलते हैं। डा. नार्लीकर जो एस्ट्रोफिजिक्स के जाने माने विद्वान हैं, लिखते हैं कि “अति मानवी सभ्यता को मानवी चिन्तन के ज्ञात आयामों से परे जाकर ढूँढ़ना देखना होगा। उनके अनुसार जिस प्रकार हम चिड़िया घर के पशु पक्षियों पर निगाह रखते हैं, ठीक उसी प्रकार अन्य ग्रहों के जीव पर हम अपनी निगाह जमाए हुए हैं। उनका इरादा पृथ्वी पर हमला बोलने का नहीं लगता। ये तो पृथ्वी वासी ही हैं जो आपसी टकराव हेतु आयुधों का भण्डार जमा किए बैठे हैं।

हमें अन्तरिक्षीय सभ्यता के विषय में सोचना भी चाहिए तो न केवल तकनीकी दृष्टि से, वरन् चिन्तन भावना की दृष्टि से भी सुविकसित देवमानवों के विषय में धारणा बनानी चाहिए। पुरातन काल में जैसे मनुष्य इस पृथ्वी पर अवतरित हुए थे, वैसे ही विकसित सभ्यता के सन्देशवाहक ये दूत भी टोह लगाने, संपर्क माध्यम बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इनसे भयभीत होने के स्थान पर हम स्वयं को देवोपम बनाने का प्रयास करें ताकि विकसित तकनीकी के बलबूते आगे कभी संपर्क बनाने- उनकी भाषा समझ पाने का पुरुषार्थ सफल हो सके तो वे हमें उस स्थिति से श्रेष्ठ ही पायें जिस स्थिति में करोड़ों वर्ष पूर्व हमें पृथ्वी पर छोड़ गए थे।

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