
दर्शन झाँकी का बाल-विनोद बन्द करें
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जिस महान प्रयोजन के लिए सूक्ष्मीकरण की अति दुरूह योजना को गुरुदेव ने अपने हाथ में लिया है, वह केवल इन दिनों अपने जाल बिछा रहा है वरन् सन् 2000 तक कह विकट सम्भावनाओं से जूझ सकने के लिए आवश्यक एवं समर्थ शक्ति का उत्पादन भी कर रहा है। अपनी इस सृजन प्रक्रिया को अधिक बढ़ाने के लिए उन्होंने अपनी भट्टी दूने वेग से गरम करना आरम्भ कर दी है ताकि समयानुसार किसी अभाव का अनुभव न हो और बगलें न झाँकनी पड़ें। उनकी साधना का स्तर तथा अनुपात अब निर्धारित योजना की अपेक्षा कहीं अधिक तीव्र हो गया है, साथी ही कार्यक्रम अधिक व्यस्त भी। समस्याओं की उग्रता बढ़ रही है। समाधान की रक्षात्मक शक्ति उसकी तुलना में सन्तोषजनक मात्रा में उत्पादित नहीं हो पा रही। इसलिए थोड़ी राहत दे सकने वाली जिस सुविधा के मिलने की सम्भावना थी, वह अवसर अब मिल नहीं सकेगा।
गुरुदेव अब दर्शन देने की स्थिति में सम्भवतः किसी पर्व पर नहीं रहेंगे। माताजी को ही उनका प्रतिनिधि मानकर स्वजनों को अपनी भावना का समाधान एवं सन्तोष करना पड़ेगा।
माताजी के समय में भी अब कटौती की गई है। वे रात्रि की साधना तो गुरुदेव के साथ पूर्ववत् करेंगी ही, शाम को भी तीन साढ़े तीन बजे से उन्हें गुरुदेव के साथ उस क्रम में बैठना होगा। बाहर से आने वालों एवं दर्शनार्थियों-आश्रमवासियों के लिये वे भेंट-परामर्श हेतु शाम तीन बजे तक ही उपलब्ध रहेंगी। प्रातः से बारह बजे तक वे आश्रम व्यवस्था देखती और स्थायी कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करती रहेंगी।
यह क्रम कब तक चलेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। जितने समय तक जितने अधिक प्रचण्ड स्तर का सूक्ष्मीकरण और पाँच वीरभद्रों का अभीष्ट जिम्मेदारियाँ सम्भाल सकने योग्य स्वरूप निखरता है, तब तक तो वर्तमान तपश्चर्या के स्वरूप में कोई कमी होना तो दूर, उल्टे अधिकाधिक अभिवृद्धि होती ही रहेगी। माता जी को अपनी मिशन व्यवस्था में कमी करके गुरुजी के साथ अधिक समय देना पड़ेगा। काम बड़ा है। इतना बड़ा भूतकाल में पहले कभी कदाचित ही बन पड़ा हो। उसे गोवर्धन उठाने, समुद्र सेतु बनाने और दधीचि अस्त्र से इन्द्र वज्र के ढलने की उपमा दी जा सकती है।
पाठकों को विदित ही है कि गुरुदेव ने सब उत्तरदायित्वों से निवृत्त होकर गंगा के उद्गम गोमुख पर रहने के लिए बहुत पहले से ही भूमि की व्यवस्था कर ली है। काम निवृत्ति और शरीर की स्थिरता रहने पर वे गंगोत्री से आगे गोमुख चले जाएँगे।
अब दर्शन झाँकी की कामना किसी को भी नहीं संजोनी चाहिए। इस बाल बुद्धि का आग्रह उनकी तब साधना में विक्षेप करेगा। जो शान्ति कुंज आएँ, वे उनके संकल्प के बिखरे विराट् रूप का दर्शन करें। आश्रम के कण-कण में उनका व्यक्तित्व, तप, प्राण शक्ति तथा संकल्प बिखरा पड़ा है। वही दर्शनीय है। जो भावनापूर्वक शांतिकुंज-गायत्री तीर्थ का दर्शन करेंगे, उन्हें वही प्रेरणा सतत् मिलती रहेगी जो शरीरधारी गुरुदेव का दर्शन करके तथा प्रत्यक्ष आशीर्वाद मिलने से प्राप्त होती थी।
गुरुजी सर्वसाधारण से मिलने के लिए कब उपलब्ध होंगे, यह बिल्कुल अनिश्चित है माताजी से मिलने का समय 12 से 3 ही रहेगा। परिजनों आत्मीयों को प्रणाम दर्शन की अपेक्षा मिशन के कार्यों में भागीदार बनकर वास्तविक पुण्य और सच्चे आशीर्वाद के भागी बनना चाहिए।