Jeev Ke Char Prakar जीव के चार प्रकार

जीव चार प्रकार के कहे गए हैं – बद्ध, मुमुक्षु, मुक्त और नित्य। संसार मानो जाल है और जीव मछली। ईश्वर, यह संसार जिनकी माया है, मछुए हैं। जब मछुए के जाल में मछलियाँ पड़ती हैं, तब कुछ मछलियाँ जाल चीरकर भागने की अर्थात् मुक्त होने की कोशिश करती हैं। उन्हें मुमुक्षु जीव कहना चाहिए।
जो भागने की चेष्टा करती हैं, उनमें से सभी नहीं भाग सकतीं। दो-चार मछलियाँ ही धड़ाम से कूदकर भाग जाती हैं। तब लोग कहते हैं, वह बड़ी मछली निकल गयी। ऐसे ही दो-चार मनुष्य मुक्त जीव हैं। कुछ मछलियाँ स्वभावत: ऐसी सावधानी से रहती हैं कि कभी जाल-सहित इधर से उधर भागती हैं, और सीधे कीच में घुसकर देह छिपाना चाहती हैं। भागने की कोई चेष्टा नहीं, बल्कि कीच में और गड़ जाती हैं। ये ही बद्ध जीव हैं। बद्ध जीव संसार में अर्थात् कामिनी कांचन में फँसे हुए हैं, कलंकसागर में मग्न हैं, पर सोचते हैं कि बड़े आनन्द में हैं !
जो मुमुक्षु या मुक्त हैं, संसार उन्हें कूप जान पड़ता है, अच्छा नहीं लगता। इसीलिए कोई-कोई ज्ञान-लाभ, ईश्वरलाभ हो जाने पर शरीर छोड़ देते हैं, परन्तु इस तरह का शरीरत्याग बड़ी दूर की बात है।
‘‘बद्ध जीवों – संसारी जीवों को किसी तरह होश नहीं होता। कितना दुख पाते हैं, कितना धोखा खाते हैं, कितनी विपदाएँ झेलते हैं, फिर भी बुद्धि ठिकाने नहीं आती। ऊँट कटीली घास को बहुत चाव से खाता है। परन्तु जितना ही खाता है उतना ही मुँह से धर-धर खून गिरता है, फिर भी कँटीली घास को खाना नहीं छोड़ता! संसारी मनुष्यों को इतना शोकताप मिलता है, किन्तु कुछ दिन बीते कि सब भूल गए।
राम कृष्ण परमहंस
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