
आत्म-बोध के स्वर
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गुरु नानक अरब और मुस्लिम देशों में घूम-घूम कर मानवता और प्रेम का संदेश सुना रहे थे। अपने शिष्य के साथ वे मुल्तान नगर की सीमा पर पहुंचे। तभी एक हृष्ट-पुष्ट शुभ्र श्वेत वस्त्रधारी पुरुष उन दोनों के सामने आकर खड़ा हो गया और बोला—‘‘आप साहबान हमारे घर चलिए और हमारे मालिक के बनवाये आराम घर में डेरा डालिए। वहां आपको सभी प्रकार की सुविधा मिलेगी।’’ और वह गुरु नानक का सामान अपने नौकरों के सिर पर उठवाकर चल पड़ा।नगर के प्रवेश द्वार के पास ही एक सुंदर हवेली बनी हुई थी। बड़े-बड़े हवादार साफ-सुथरे कमरे। बढ़िया साज-सज्जा देखकर लगता था कि यह किसी बहुत बड़े रईस आदमी की इमारत होगी।हवेली में घुसते ही दालान में एक तख्त पर सफेद कपड़ों में एक सफेद दाढ़ी वाला बुड्ढा आदमी गद्दे पर मसनद के सहारे बैठा मिला। उसके हाथ में चमकीले और बड़े-बड़े मनकों की एक रंगीन माला थी जिसे फेरते हुए वह कुछ जाप कर रहा था। मरदाना यह सब देखकर चकित रह गया।गुरु नानक को पहुंचाने वाला आदमी उस बुड्ढे के पास जाकर जल्दी से फुसफुसाया—‘‘आज तो एक बूढ़े बाबा और उसके चेले के अलावा कोई अन्य शिकार नहीं मिला।’’ दरवाजे पर मरदाना और गुरु नानक को खड़ा देखकर बुड्ढे ने उसे आंखें दिखा कर चुप रहने का इशारा किया और तख्त से उतरकर उनके पास आया। उनके लिए सबसे अच्छे कमरे की व्यवस्था करने लगा।सफेद कपड़े और लंबी दाढ़ी वाले इस बाबा को ‘हाजी’ या ‘शेख’ भी कहते थे। यात्रियों को मीठी-मीठी बातों से बहलाकर और सुख-आराम की सभी सुविधाएं दिखाकर-फुसलाकर अपने यहां ठहराना, रात को उनकी हत्या कर देना और उन यात्रियों के पास जो कुछ भी सामान हो उसे हड़प लेना उसका काम था। गुरु और मरदाने ने उन दोनों की बातें सुन ली थीं। यद्यपि शेख और उसके नौकर ने न समझ में आने वाली भाषा में बातचीत की थी परंतु चेहरों के हाव-भाव देखकर मरदाना को कुछ आशंका हो गयी थी। इसलिए उसने गुरु से कमरे में प्रवेश करते ही निवेदन किया—‘‘बाबा! चुपचाप निकल चलें। अंधेरा है वरना न जाने क्या होगा।’’गुरू ने कहा—‘‘नहीं, जो कुछ होता है चुपचाप देखते चलो’’ और गुरू-शिष्य दोनों सोने के पूर्व की प्रार्थना करने लगे। नानक ने एक भजन शुरू किया। मरदाना साथ में रवाब पर संगत करने लगा। भजन हाजी के हृदय को मथने लगा क्योंकि उसमें उसके ही चरित्र का वर्णन था। उसके दुष्कृत्यों और धार्मिक ढोंगों का उल्लेख कर खुदा से डरने के लिए कहा जा रहा था।हाजी के अंतस् में भजन के भाव गहराई तक बैठकर उसे मथने लगे। उसे लगा कि जिन राहगीरों को मरवाकर उसने उनके मुर्दे गायब किए हैं वे सब उठ-उठकर उसे पकड़ने के लिए चले आ रहे हैं, उनसे बचना मुश्किल है।उधर नानक गाए जा रहे थे और मरदाना भी उसी तन्मयता से रवाब बजाए जा रहा था। अकस्मात् कमरे का दरवाजा खुला और ‘बाबा मुझे बचाइये’—कहता हुआ हाजी नानक के चरणों में लोटने लगा।गुरू उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरने लगे। हाजी ने अपने कुकृत्यों की पूरी कहानी सुनाई और इन पापों से उबरने की प्रार्थना की। नानक ने कहा—‘‘तुमने अपनी गलती समझ ली है। उसे सुधारने के लिए जितनी सम्पत्ति लूटी है वह सब समाज को लौटा दो।’’हाजी ने वह हवेली, धन-सम्पत्ति सब दान कर दी और नानक का अनन्य भक्त बनकर साथ रहने के लिए कहा। कृपालु गुरू ने उसे भी अपने चरणों में स्थान दिया।(यु. नि. यो. अप्रैल 1973 से संकलित)