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Books - देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर (चतुर्थ भाग)

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आत्मशक्ति का अद्भुत परिणाम

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First 14 16 Last
मेवाड़ सदा मुगल शासकों की आंखों में कांटा बनकर चुभता रहा। जो भी दिल्ली के सिंहासन पर बैठा उसने मेवाड़ विजय करना चाहा। मेवाड़ उनके लिए एक चुनौती बनकर सदा अजेय रहा। यदि उसकी भूमि पर एकाध बार किसी ने कब्जा कर भी लिया तो क्या, पर वे महाराणा को झुका न सके। इसका श्रेय वहां के वीरों को है। ऐसा ही एक वीर था कल्ला राठौड़ जिसने मृत्यु के सामने भी झुकना नहीं सीखा था। उससे भी वह लड़ता रहा था।अकबर ने अपनी विशाल वाहिनी के साथ चित्तौड़ दुर्ग पर आक्रमण किया। दुर्ग के चारों ओर तोपें लगा दी गईं। बड़ा भयंकर आक्रमण किया। चित्तौड़ दुर्ग भी अपनी सानी का दुनिया में एक ही था। अकबर कितने ही समय तक घेरा डाले रहा पर वह दुर्ग पर अधिकार न कर सका।महाराणा उदयसिंह पहले ही दुर्ग का भार जयमल सिसोदिया को सौंपकर निकल गए थे। उन्हें यह आशंका थी कि दुर्ग में बंद हो जाने से हम अधिक समय तक रसद नहीं जुटा पायेंगे और फिर बाहर निकलना ही पड़ेगा।जयमल एक दिन रात्रि को हाथ में मशाल लिए किले के टूटे बुर्ज की मरम्मत करवा रहे थे। अकबर के सैनिकों ने पहचान लिया कि यही सेनापति जयमल हैं। अकबर के निशानेबाज बंदूकची ने गोली मारी। वह जयमल की जांघ में लग गई।कई महीने से लगातार किले की रक्षा करते-करते कई वीर वीरगति पा चुके थे। सेनापति को भी जांघ में गोली लग गई। रसद भी समाप्त होने जा रही थी। अब अधिक दिनों तक दुर्ग की रक्षा संभव नहीं थी। फिर भी लोग साहसपूर्वक डटे रहे।एक-एक करके दुर्ग के छः दरवाजे तो मुगल सेना ने तोड़ दिए। अब केवल एक द्वार बचा था। जिन वीरों को स्वाधीनता प्राणों से भी प्रिय थीं, जिन वीरांगनाओं को अपने शील तथा स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए प्राणोत्सर्ग करने के लिए क्षण भर भी हिचकिचाहट नहीं होती थी, उनके लिए जिस प्रकार जीवन प्रिय तथा सुखद था वैसी ही मृत्यु भी प्रिय थी। आत्मा की अमरता में विश्वास करने वाले भारतीय जीवन दर्शन ने उन्हें यह शक्ति प्रदान की थी कि वे गौरव-गरिमा के साथ जीना तथा उसी गरिमा के साथ मरना भी जानते थे। कुल ललनाओं ने अपने वीर पतियों के मस्तक पर तिलक किया। उनको आरती उतारी तथा हंसते-हंसते उन्हें वीरगति पाने हेतु बिदा किया। स्वयं विशाल चिता जलाकर उसमें कूद पड़ीं। यह जौहर इनके लिए विवाह संस्कार जैसा ही हर्षोल्लास का अवसर होता था। राजपूत वीरों ने केसरिया वस्त्र धारण कर लिए और घोड़े पर चढ़कर आमने-सामने लड़ मरने को प्रस्तुत हुए।जयमल के जांघ का घाव ऐसा था कि वह घोड़े पर नहीं बैठ सकते थे। सेनापति आगे न रहे यह उन्हें स्वीकार न था। कल्ला राठौड़ नाम के एक बलिष्ठ योद्धा ने उन्हें अपने कंधों पर बिठा लिया। केसरिया बाना पहनकर जब ये मृत्यु वरण को निकले तो इनके सामने केवल मरना था और सैकड़ों को मारकर मरना था। नगाड़े बज उठे, चारणों ने वीर रस की कविता गाई, वीरों का उत्साह छलक पड़ा। दरवाजा खोलकर किसान जैसे खेत काटता है वैसे मुगल सेना को मुट्ठी भर राजपूत काटने लगे। बिजलियों की तरह तलवार जो चली तो रुंड-मुंड कटकर गिरने लगे। कल्ला राठौड़ का सिर किसी ने पहले दरवाजे पर ही काट लिया। पर शरीर की चिंता प्राणों को और मन को कहां थी। बिना सिर के ही वह जयमल को उठाकर लड़ते हुए चार दरवाजे पार कर गया तब कहीं जाकर नीचे गिरा। मुगल सेना गाजर-मूली की तरह कट चुकी थी। आखिरकार अकबर जीता पर उसको यह जीत बहुत महंगी पड़ी थी। उसके हजारों सैनिक मारे जा चुके थे। कल्ला का स्मारक आज भी उस वीरवर की यशोगाथा गा रहा है।(यु. नि. यो. जुलाई 1972 से संकलित)
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