
प्रमाद का दुष्परिणाम
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सोलह बार मुहम्मद गौरी को हरा देने के बाद पृथ्वीराज को जैसे गर्व हो गया था। वह समझने लगे थे कि गौरी अब उन्हें परास्त नहीं कर सकता। विजय के गर्व में उन्होंने इस तथ्य को भुला दिया था कि गफलत में पड़ जाने पर विजय क्षण भर में ही पराजय में बदल सकती है। वे न केवल इस तथ्य के प्रति आंखें मूंदे थे वरन् उन्होंने ऐसी गतिविधियां भी अपनानी शुरू कर दी थीं जिससे लगता था कि वे अपने दायित्व के प्रति अब उतने गंभीर नहीं रह गए हैं।संयोगिता जैसी अनिंद्य सुंदरी से उनका विवाह हुआ था और वे अपनी प्रियतमा के रूप जाल में ऐसे खो गए थे कि न राज्य प्रबंध सूझता था और न ही सुरक्षा का कोई ध्यान था। अपनी दुनिया को पृथ्वीराज ने संयोगिता के कक्ष तक ही समेट लिया था। कब दिन उगता और कब शाम होती, पृथ्वीराज को इसका कोई पता नहीं चलता। संयोगिता की रूप माधुरी को देखते-देखते आंखें थक जातीं पर देखने की चाह न मिटती। कामिनी के स्पर्श सुख की चाह कभी नहीं मिटती है। वह बुझाने के प्रयास में आग में घी पड़ने की तरह और भी भड़क जाती है।फिर खबर मिली कि गौरी पुनः आक्रमण की तैयारी कर रहा है। गौरी की आंखों में तो भारत की उस अपार सम्पदा के सपने तैर रहे थे जो विजय के बाद उसे करतलगत होती मालूम पड़ती थी। जब भी दरबार में कोई भारत की श्री-समृद्धि की चर्चा करता तो उसके मुंह से आह निकल जाती थी और विचार आने लगते थे कि कब उसका सपना पूरा होगा। अपना स्वप्न पूरा करने के लिए गौरी दिन-रात उधेड़-बुन में लगा रहता था। सोलह बार आक्रमण करने और हर बार पराजित होने पर वह यह तो अच्छी तरह समझ चुका था कि भारतीय वीरों का पराक्रम वह आमने-सामने होकर नहीं झेल सकता है। संभवत: वह इसीलिए चाहता था कि कोई दूसरा रास्ता अपनाया जाय। यह दूसरा रास्ता खोजने में उसके जासूसों ने सफलता प्राप्त कर ली थी। विदित हुआ था कि कन्नौज का राजा पृथ्वीराज से जल-भुना बैठा है। उसको साथ लिया जाय तो वह विभीषण साबित हो सकता है।विश्वस्त साथियों को मध्यस्थ बनाकर गौरी ने जयचंद का सहयोग पाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। जब आक्रमण की पूरी तैयारियां हो गयीं और इस बात का पता पृथ्वीराज के मंत्री गुरुराय और राज्य कवि चंद को चला तो उन्होंने इसे पृथ्वीराज को सूचित करना आवश्यक समझा। चंद और गुरुराय जब आक्रमण की सूचना देने गए तब भी पृथ्वीराज अपने विलास में मग्न थे। बिना कुछ जाने ही पृथ्वीराज ने किसी से भी मिलने के लिए मना कर दिया। तो चंद ने यह संदेश भिजवाया—‘‘कग्गर अप्पहं राज कर, मुंह अप्पहं इह बत्त ।गौरी रतौ तुम धरनी, तुम गौरी रस रत्त ।।’’‘‘यह काम करने के लिए पूरा जीवन पड़ा है। गौरी तुम्हारी मातृभूमि को ताक रहा है और तुम गौरी (स्त्री) के रस में ही डूबे हुए हो।’’तब भी पृथ्वीराज ने कोई तत्परता नहीं दिखाई। संयोगिता को जब इस बात का पता चला तो उसने अपने पति को फटकारा और कहा—‘‘जब शत्रु तुम्हारी मातृभूमि पर आंख गड़ाये हुए है तब तुम यहां क्या कर रहे हो?’’सन्न रह गया पृथ्वीराज और फिर उस फटकार को सुनकर बाहर निकल आया। लेकिन अब तक बहुत देर हो चुकी थी। इस युद्ध में पृथ्वीराज गौरी से हार गया। काश, पृथ्वीराज सो नहीं जाता, राग-रंग में डूबा नहीं होता तो भारत का इतिहास आज कुछ और ही होता।(यु. नि. यो. मई 1974 से संकलित)