
महत्वाकांक्षा पूर्त्यार्थ कर्तव्य की हत्या नहीं
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मगध के सिंहासन पर तब सम्राट् इंद्रगुप्त आसीन थे। महाकौशल से उनकी शत्रुता हो गई। महाकौशल की शक्ति और सैन्यबल उन दिनों यौवन पर था। वहां से किसी भी क्षण आक्रमण की पूरी आशंका थी। यह बात मगध के एक-एक नागरिक को मालूम थी। इसलिए कोई भी रात में बाहर न निकलता। सारी प्रजा युद्ध की आशंका से भयभीत थी।मगध के सैनिक पूरी तत्परता के साथ सीमा चौकियों की रक्षा कर रहे थे। पर आपातकालीन स्थिति हो तो किसी भी व्यक्ति को चुप नहीं बैठना चाहिए चाहे वह राजा हो या प्रजा। इंद्रगुप्त स्वयं इस आदर्श का पालन कर रहे थे। वे रात-रात भर जागकर प्रजा की रक्षा-व्यवस्था देखा करते थे।तब जब मगध के युवक और प्रौढ़जन भी भयवश अंधकार में बाहर नहीं निकलते थे, एक स्त्री घर से बाहर निकला करती। वह राज दरबार की मालिन थी। सम्राट् और साम्राज्ञी दोनों प्रातःकाल पीयूष वेला में भगवान् पाशुपत का पूजन किया करते थे, उसके लिए शुद्ध और ताजे पुष्पों की आवश्यकता होती थी। मालिन ने अपने इस कर्तव्यपालन में इन गाढ़े दिनों में भी भूल नहीं की। वह प्रतिदिन पूजा के पुष्प नियमित रूप से पहुंचाती रही। किसी को भी उंगली उठाने का अवसर नहीं मिला कि मालिन डरकर अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रही।प्रातःकाल होने में अभी देर थी। महाराज इंद्रगुप्त भ्रमण करते हुए उधर ही आ निकले जहां उस मालिन का निवास था। अंधकार में कुछ आकृतियां उधर घूमती दिखाई दीं। महाराज को संदेह हुआ। वह चुपचाप झुरमुट में खड़े होकर स्थिति का अध्ययन करने लगे।भवन के बाहर पदचाप सुनकर मालिन की निद्रा टूट गई। उसने समझा प्रातःकाल हो गई है। सो फूल चुनने की पेटिका उठाकर वह घर से बाहर आई। पर यहां तो स्थिति कुछ और ही थी। महाकौशल के चार गुप्तचरों ने उसे बाहर आते ही घेर लिया। किसी तरह उन्हें पता चल गया था कि मालिन नियमपूर्वक राज्य-भवन में प्रवेश करती है। अतः उसे वहां की सारी व्यवस्था का पता होगा ही। इसीलिए प्रातः होने से पूर्व ही यह दल वहां आ पहुंचा था।नारी के कोमल नहीं, कठोर शब्द निकले—‘‘कौन हो तुम? इतनी रात गए यहां क्या कर रहे हो।’’ ‘‘भद्रे! हम आपके अतिथि हैं। आपकी सेवा पाने का अधिकार लेकर आए हैं। यदि वह अधिकार उपलब्ध हो गया तो आप महाकौशल की सम्मानित महिलाओं में होंगी। धन, वैभव आपके चरणों पर ऐसे लोटेगा जैसे नगराज के चरणों में सिंधु का जल।’’ एक गुप्तचर ने धीमे स्वर में कहा।‘‘महाकौशल और मैं! मेरा महाकौशल से क्या संबंध? साफ-साफ कहो क्या चाहते हो?’’—मालिन ने पीछे हटते हुए दृढ़ स्वर में पूछा। ‘‘हम महाकौशल के सैनिक हैं। मगध राज्य का रहस्य ज्ञान करने के लिए आए हैं। इसकी जानकारी भर तुम्हें देनी है। उसके बदले महान् ऐश्वर्य की स्वामिनी बनोगी।’’और इससे पूर्व कि वह कुछ और कहे, मालिन ने तड़पकर कहा—‘‘बस बंद करो बकवास, आगे और कुछ कहा तो जबान काट लूंगी। इस देश के निवासी महत्वाकांक्षाओं के लिए कर्तव्यों की हत्या करना नहीं जानते। हम प्राण दे सकते हैं पर अपने कर्तव्यों से एक इंच भी डिग नहीं सकते।’’ गुप्तचर चिल्लाया—‘‘मूर्ख स्त्री! यदि ऐसा ही है तो इसका फल भी तू ही भुगतेगी।’’ फिर अपने साथियों की ओर देखकर उसने आज्ञा दी—‘‘पकड़ लो इसे, कस दो मुश्कें। जब लौह-शलाकाओं से छेदा जायगा तब कर्तव्यनिष्ठा याद आयेगी इसे।’’इससे पूर्व कि सैनिक उसे हाथ लगायें, महाराज इंद्रगुप्त झुरमुट से बाहर निकल आये। मगध और महाकौशल की पहली झड़प वहीं हुई। कर्तव्यनिष्ठ मालिन की रक्षा के लिए महाराज इंद्रगुप्त ने चारों सैनिकों को वहीं धराशायी कर दिया।(यु. नि. यो. अक्टूबर 1969 से संकलित)