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Books - देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर (चतुर्थ भाग)

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कुरीति को तोड़ा हम्मीर ने

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‘‘यह केवल हठ की बात नहीं काका सा! आप यह क्यों नहीं सोचते कि हम भारतीयों के घरों में नारी की स्थिति पहले ही कैसी दयनीय है? राजकुमारी मंगलमुखी का वैधव्य यदि मेरे लिए अमंगल हो सकता है तो यह सारे भारतीयों के मस्तक पर भी कलंक क्यों न होना चाहिए? विधवाओं की सर्वाधिक संख्या इसी देश में है और इसके उत्तरदायी सामाजिक कारण भी पुरुषों द्वारा ही तैयार किए गए हैं। क्या अपने किए का प्रायश्चित पुरुषों को करना नहीं चाहिए?’’हम्मीर इतना कहते-कहते कुछ आवेश में आ गए थे पर अपने काका सा-अजयसिंह और अन्य सभासदों का वे पूर्ण सम्मान करते थे। इसलिए फिर अपनी वाणी को संयत और विनीत बनाते हुए बोले—‘‘काका सा! राजकुमारी के कोई संतान नहीं है, वे छोटी आयु में ही विधवा हो गईं। राज परिवार संन्यासी का सा जीवन जी नहीं सकता। फिर क्या यह राजकुमारी की कोमल भावनाओं पर आघात न होगा कि उन्हें इस खेलने-कूदने की आयु में रीति-रिवाजों के बंदी गृह में डाल दिया जाये? संबंध मुझे करना है और मैं उसके लिए तैयार हूं, आप लोग किसी अमंगल की बात अपने मन से निकाल दें।’’ ‘‘किन्तु हम्मीर! तुम नहीं जानते कि चित्तौड़ नरेश मालदेव ने हमारे साथ छल किया है। उसने जान-बूझकर विधवा कन्या का संबंध भेजा है। तुम्हारे जैसे वीर और प्रतिष्ठित राजकुमार के लिए विधवा से संबंध करना शोभा नहीं देता। हम्मीर! युद्ध ही करना है तो हम तैयार हैं पर हम इस पक्ष में कभी नहीं कि आपका संबंध एक ऐसी कन्या से हो जो पहले ही किसी को वरण कर अपवित्र हो चुकी है।’’ अजयसिंह ने दृढ़ शब्दों में कहा और सामंतों ने उनका अनुमोदन किया।पर हम्मीर उस धातु के बने नहीं थे जो किसी भी समय, कैसे भी मोड़े और झुकाये जा सकते। हम्मीर किसी सिद्धांत को देर से स्वीकार करते थे और एक बार उसमें सत्य और आदर्श की रक्षा देख लेते तो उसके लिए ऐसा हठ करते कि फिर सारा संसार एक तरफ हो जाता तो भी वचन से पीछे न हटते। ‘हम्मीर हठ’ उन दिनों जन-साधारण का दैनिक बोल बन गया था।हम्मीर देव ने कहा—‘‘काका सा! पुरुष जब चार-चार रानियां लाकर राजमहलों में डाल देता है तब भी अपवित्र नहीं होता। फिर नारी एक ऐसी अवस्था में जबकि उसे सहारे की आवश्यकता होती है और इस निमित्त उसका विवाह कर दिया जाता है, तो वही अपवित्र क्यों हो जायेगी। मान्यतायें मनुष्य ने बनाई हैं पर उनमें केवल वही बातें मान्य हो सकती हैं जिनका कुछ विवेकजन्य औचित्य भी हो। विधवाएं अपवित्र और अमंगल होती हैं—यह कोई तर्क नहीं, सत्य बात तो यह है, यदि वह निःसंतान हो तो सबसे पहले सहारे की अधिकारिणी भी वही है।’’हम्मीर के हठ के आगे किसी की एक न चली। वह लगन मंडप पर जा पहुंचे और संबंध कर ही लिया। सैनिक जो मेवाड़ में युद्ध करने गए थे, वह बराती बनकर लौटे। मंगलमुखी ने उस दिन पूर्ण श्रृंगार किया पर उसे ऐसा लग रहा था जैसे महाराणा हम्मीर उसके साथ छल तो नहीं कर रहे। समाज ने विधवा जीवन में जो आत्महीनता लाद दी है मंगलमुखी उससे वंचित नहीं थी। पर उसे शीघ्र ही मालूम हो गया कि हम्मीर ने यह संबंध हठ वश नहीं मानवीय करुणा और कृतज्ञता के रूप में ही किया था। उसने हम्मीर देव को शासन व्यवस्था में वह सहयोग प्रदान किया कि एक दिन बिना किसी द्वंद्व और रक्तपात के ही राजा हम्मीर देव मेवाड़ के शासक बन बैठे। पहले जो लोग कहा करते थे कि विधवा से विवाह हम्मीर के अमंगल का सूचक है वही पीछे कहने लगे—विधवा कभी अमंगल नहीं होती। उसे मानवीय सम्मान मिले तो वह किसी भी योग्य जीवन साथी के कर्तव्यों का पालन कर सकती है। विधवा विवाह का आज विरोध करने वाले इतिहास के इस उदाहरण से सबक क्यों नहीं लेते?(यु. नि. यो. दिसंबर 1988 से संकलित)
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