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Books - देखन में छोटे लगें घाव करें गम्भीर (चतुर्थ भाग)

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वे-जिन्होंने मोह को जीत लिया था

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गुरु गोविंद सिंह उन दिनों चमकौर के किले में रहकर मुगलों से युद्ध कर रहे थे। मुखवाल से जाते समय उनकी माता और दो छोटे लड़के फतह सिंह और जोरावर सिंह बिछुड़ गए थे। लेकिन गुरु गोविंद सिंह को कार्य-व्यस्तता के कारण उनको खोजने का समय न मिल पाया था। वे अपने बड़े लड़कों अजीत सिंह और जुझार सिंह के साथ चमकौर के किले में रहकर आगे की योजनाएं बनाने और उन्हें कार्यान्वित करने में व्यस्त थे। तभी एक दिन कुछ दूत उनके पास संदेश लेकर आए। वे मुखवाल और आनंदगढ़ की तरफ से ही आए थे।गुरु गोविंद सिंह ने दूतों का स्वागत किया और हंसकर पूछा—‘‘बताओ भाई! हमें छोड़कर गए सिक्खों और बिछुड़ी हुई माता तथा दोनों छोटे कुमारों का कोई समाचार है। और अगर शत्रुओं का भी कोई समाचार हो तो बतलाओ।’’दूतों ने कहा—‘‘गुरुजी! जो सिक्ख मुखवाल से आपका साथ छोड़कर चले गए थे, गांव पहुंचने पर उनके परिवार वालों तक ने उन्हें धिक्कार कर विश्वासघाती कहा। उनको अपनी गलती अनुभव हुई और अब वे सब आपसे क्षमा मांगने के लिए इधर चल पड़े हैं।’’ गुरु गोविंद सिंह ने हर्षपूर्वक कहा—‘‘यह तो बड़ा शुभ समाचार है। सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो भूला नहीं कहा जा सकता। और आगे के समाचार बतलाओ।’’दूतों ने आगे कहा—‘‘महाराज! यह जानकर कि आप चमकौर में विराजमान हैं, मुगलों की एक बड़ी भारी सेना चमकौर पर आक्रमण करने आ रही है।’’ गुरु गोविंद सिंह ने कहा—‘‘यह तो और भी अच्छा समाचार है। धर्म युद्ध तो तब तक चलता ही रहना चाहिए जब तक अधर्म का नाश न हो जाए। आगे बतलाओ माता और कुमारों का क्या समाचार है? क्या कुमारों और माता ने शत्रुओं की शरण ले ली अथवा प्राणों के मोह में धर्म मार्ग से विचलित हो गए ?’’ दूत तत्काल बोल उठा—‘‘महाराज ऐसा न कहें! कुमारों ने धर्म के नाम पर बलिदान दे दिया है।’’ कहकर दूत रोने लगे। गुरु गोविंद सिंह ने उत्सुकता पूर्वक कहा—‘‘अरे भाई! तुम ऐसा शुभ समाचार सुनाते वक्त इस प्रकार रो रहे। हो। यह तो ठीक नहीं। शुभ समाचार तो हंसते हुए उत्साहपूर्वक सुनाना चाहिए। जल्दी बताओ उन सिंह संतानों ने कहां और किस प्रकार धर्म पर अपना बलिदान दे दिया?’’दूतों ने बतलाया—‘‘गुरुजी! मुखवाल से बिछुड़ कर माता और दोनों कुमार गंगू रसोइये के साथ उसके घर चले गए। किन्तु गंगू ने माता जी के गहनों के लालच में विश्वासघात करके कुमारों को गिरफ्तार कराकर सरहिंद के नवाब के हवाले कर दिया। सरहिंद के नवाब ने उनसे कहा—‘‘बच्चों, अगर तुम मुसलमान हो जाओ तो तुम्हारी जान बख्श दी जायेगी, शाहजादियों से तुम्हारी शादी करा दी जाएगी और एक बहुत बड़ी जागीर इनाम में दे दी जाएगी।’’ किन्तु वे दोनों कुमार न तो मौत से डरे और न लालच में आए। उन्होंने नवाब से साफ-साफ कह दिया कि धर्म की महत्ता एक प्राण क्या करोड़ों प्राणों से भी अधिक है। और धर्म क्या बिकने वाली चीज है जो आप लोभ देकर खरीदना चाहते हैं। आप बेशक हमारे प्राण ले लीजिए लेकिन हम अपना धर्म नहीं छोड़ सकते। इस पर नवाब ने अपने सरदारों को बच्चों को मार डालने का हुक्म दिया। लेकिन वे तैयार न हुए।तब नवाब ने उन बच्चों को किले की दीवार में जिंदा चुनवा दिया। लेकिन वे दोनों कुमार अंत तक हंसते और धर्म की जय बोलते रहे। माता ने यह समाचार सुना तो छत से कूदकर प्राण दे दिए।’’गुरु गोविंद सिंह खुशी से उछल पड़े और बोले—‘‘फतह सिंह और जोरावर सिंह सच्चे वीर थे। हम सबको उनसे शिक्षा लेनी चाहिए। इसी प्रकार निर्भय बलिदान देकर ही धर्म की रक्षा की जाती है। धन्य हो वीरों! तुमने धर्म की साख बढ़ा दी।’’(यु. नि. यो. जनवरी 1971 से संकलित)
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