251 कुण्डीय शक्ति संवर्धन गायत्री महायज्ञ में दीप महायज्ञ के अवसर पर आगमन एवं उद्बोधन
दो दिवसीय राजस्थान प्रवास के प्रथम चरण में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति आदरणीय डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने 26 दिसंबर की सांयकालीन बेला में राजस्थान के नदबई पहुँचकर 251 कुण्डीय शक्ति संवर्धन गायत्री महायज्ञ के अंतर्गत आयोजित दीप महायज्ञ में सहभागिता की।
इस अवसर पर उन्होंने उपस्थित समस्त श्रद्धालुओं का हृदयपूर्वक अभिवादन किया। अपने उद्बोधन में आदरणीय डॉ. पंड्या जी ने जन्म शताब्दी वर्ष के पावन उपलक्ष्य में यह संदेश दिया कि भारत और भारतीय संस्कृति की यह सशक्त पुकार है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को राष्ट्र-हित, समाज-हित और मानव-हित में समर्पित करे। उन्होंने स्पष्ट किया कि मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है—
“मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण”,
यही जीवन की सर्वोच्च साधना और उसकी वास्तविक सार्थकता है।
डॉ. पंड्या जी ने कहा कि वर्तमान समय एक युगांतरकारी काल है, जब नर में नारायण, मानव में माधव और मनुष्य में देवत्व के जागरण का आह्वान हो रहा है। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि मनुष्य का चरित्र ही उसकी वास्तविक पूँजी है और गायत्री परिवार का मूल उद्देश्य बाहरी परिस्थितियों को बदलने से पहले अपने भीतर परिवर्तन लाना है।
उन्होंने यह भी कहा कि जन्म शताब्दी वर्ष के इस पावन कालखंड में गुरुदेव माताजी के विचार और जीवन-दर्शन हमें आत्मचिंतन, आत्मपरिष्कार और युग निर्माण के संकल्प के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
उन्होंने उपस्थित सभी श्रद्धालुओं से आह्वान किया कि वे इस पावन दीप महायज्ञ में पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के साथ भाग लें, ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में आध्यात्मिक जागृति, आत्मिक सशक्तिकरण और युग निर्माण के संकल्प के साथ आगे बढ़ सके। इससे पूर्व वे नदबई के गायत्री शक्तिपीठ में पहुंचे और उन्होंने मां गायत्री का पूजन किया।
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