कर्मयोग का रहस्य (भाग 5)
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यदि किसी के शरीर के किसी अंग में घोर पीड़ा हो तो उसके उस अंग को धीरे−धीरे दबाओ और अपने हृदय से प्रार्थना भी करो कि हे भगवान इस मनुष्य का दुःख दूर कर इसको शान्ति में रहने दे और इसका स्वभाव अच्छा हो जावे।
यदि आप किसी मनुष्य या पशु का खून बहता हुआ देखो तो कपड़े के लिये इधर−उधर मत भागे फिरो, बल्कि अपनी धोती या कमीज में से, कुछ परवा नहीं कितना भी कीमती हो एक टुकड़ा फाड़ कर उसके पट्टी बाँध दो, यदि वह कीमती रेशमी कपड़ा भी है तो भी उसको फाड़ने में शंका मत करो, यह सच्चा कर्मयोग है। यह आपके हृदय को जाँचने के लिये काँटा है, आपमें से कितनों ने इस प्रकार की सेवा की है, यदि अभी तक आपने ऐसा नहीं किया है तो आज से शुरू कर दो।
जब आपका पड़ौसी या कोई निर्धन आदमी रोगग्रस्त हो तो उसके लिये अस्पताल से दवाई ला दो। सावधानी से उसकी सेवा करो, उसके कपड़े खाने के बर्तन और टट्टी−पेशाब के बर्तन साफ करो, यह अनुभव करो कि उस रोगी मनुष्य के रूप में आप ईश्वर की सेवा कर रहे हो। इस प्रकार आपका मन बहुत ऊँचा उठ जावेगा और दैवी प्रेरणा प्राप्त होगी, उससे हर्ष−दायक शब्द कहो, उसके पंगग के पास बैठो। उसके स्वस्थ होने के लिए प्रभु से प्रार्थना करो। इस प्रकार के कर्मों से आप में दया और प्रेम की वृद्धि होने में सहायता मिलेगी, इसमें घृणा, द्वेष और शत्रुता का नाश होगा और आप दैवत्व में बदल जाओगे।
श्री स्वामी शिवानन्द जी महाराज
अखण्ड ज्योति, मार्च 1955 पृष्ठ 8
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