मौन साधना के सिद्ध साधक- महर्षि रमण

मदुरै जिले के तिरुचुपि नामक एक देहान्त में उत्पन्न वैंकट रमण अपनी ही साधना से इस युग के महर्षि बन गये। आत्मज्ञान उन्होंने अपनी ही साधना से उपलब्ध किया। अठारह वर्ष की आयु में उनने अपना विद्यार्थी जीवन पूर्ण कर लिया। दक्षिण भारत में बोली जाने वाली चारों भाषाओं का उन्हें अच्छा ज्ञान था। साथ ही अंग्रेजी और संस्कृत का भी। यह भाषा ज्ञान उन्होंने किशोरावस्था में ही प्राप्त कर लिया था। अब आत्म-ज्ञान की बारी थी, जिसके लिए उनकी आत्मा निरन्तर बेचैन थी।
एक दिन जीवन और मृत्यु का मध्यवर्ती अन्तर समझने के लिए उन्होंने अपने मकान की छत पर ही एकाकी अभ्यास किया। शरीर को सर्वथा ढीला करके अनुभव करले लगे कि उनके प्राण निकल गये, काया सर्वथा निर्जीव पड़ी है। प्राण अलग है। प्राण के द्वारा शरीर की उलट-पलट कर देखने की अनुभूति वे देर तक करते रहे। शरीर और प्राण की भिन्नता का उन्हें गहरा अनुभव होता रहा इसके बाद वस्त्र की तरह उन्होंने शरीर को पहन लिया। यह अनुभव उन्हें आजन्म बना रहा।
आत्मानुभूति का आनन्द जीवन भर लेते रहने के लिए वे अरुणाचलम् चल दिये यह पर्वत दक्षिण भारत में पार्वती जी की तपस्थली माना जाता है। तप के लिए यह स्थान निकटवर्ती और परम पवित्र लगा। घर से बिना सूचना दिये यहाँ चले आये थे सो उन्होंने घर वालों के कष्ट का ध्यान रखते हुए एक पत्र भेज दिया। साथ ही सदा यहीं रहकर सदा तपश्चर्या करने का अभिप्राय भी। मौन उन्होंने अपना तप स्वरूप बनाया। घर के सब लोग उनका दर्शन कर गये। वापस लौटने का अभिप्राय भी कहते रहे पर उनने अस्वीकृति सिर हिलाकर ही प्रकट कर दी।
महर्षि मौन रहते थे पर उनके समीप आने वालों और प्रश्न पूछने वालों को मौन भाषा में ही उत्तर मिल जाते थे। उनकी दृष्टि नीची रहती थी। पर कभी किसी को आँख से आँख मिलाकर देखा तो इसका अर्थ होता था, उसकी दीक्षा हो गई। उन्हें ब्रह्मज्ञान का लाभ मिल गया। ऐसे ब्रह्मज्ञानी बड़भागी थोड़े से ही थे।
आरम्भिक दिनों में वे अरुणाचल के कतिपय अनुकूल स्थानों में निवास करते रहे। पीछे उन्होंने एक स्थान स्थायी रूप से चुन लिया। आरम्भ में उनकी साधना का कोई नियत स्थान और समय नहीं था। पीछे वे नियमबद्ध हो गये, ताकि दर्शनार्थी आगंतुकों को यहाँ वहाँ तलाश में न भटकना पड़े।
महर्षि रमण सिद्ध पुरुष थे। मौन ही उसकी भाषा थी। उनके सत्संग में सब को एक जैसे ही सन्देश मिलते थे मानों वे वाणी से दिया हुआ प्रचलन सुन कर उठे थे। सत्संग के स्थान में उस प्रदेश के निवासी कितने ही प्राणी नियत स्थान और नियत समय पर उनका सन्देश सुनने आया करते थे। बन्दर, तोते, साँप, कौए सभी को ऐसा अभ्यास हो गया कि आगन्तुकों की भीड़ से बिना डरे झिझके अपने नियत स्थान पर आ बैठते थे और मौन सत्संग समाप्त होते ही उड़कर अपने-अपने घोंसलों को चले जाया करते थे।
संस्कृत के कितने ही विद्वान उनकी सेवा में आये अपने-अपने समाधान लेकर वापस गये। उन्हीं लोगों ने रमण गीता आदि कतिपय संस्कृत पुस्तकें लिखीं जिनमें महर्षि की अनुभूतियों तथा शिक्षाओं का उल्लेख मिलता है।
वे सिद्ध पुरुष थे पर उनने जान-बूझकर कभी सिद्धियों का प्रदर्शन नहीं किया। भारत में योगियों की खोज करने वाले पाल ब्रंटन ने बड़े सम्मानपूर्वक उनकी कितनी ही अलौकिकताओं का उल्लेख किया है।
भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में जिन तपस्वियों का उल्लेख किया जाता है उनमें योगीराज अरविन्द, राम-कृष्ण परमहंस और महर्षि रमण के नाम प्रमुख हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति 1984 अगस्त पृष्ठ 61
Recent Post

"हमारी वसीयत और विरासत" (भाग 2)
इस जीवन यात्रा के गम्भीरता पूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता
हमारी जीवनगाथा सब जिज्ञासुओं के लिए एक प्रकाश-स्तंभ का काम कर सकती है। वह एक बुद्धिजीवी और यथार्थवादी द्वारा अपनाई ...
.jpg)
"हमारी वसीयत और विरासत" (भाग 1)
इस जीवन यात्रा के गम्भीरता पूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता
जिन्हें भले या बुरे क्षेत्रों में विशिष्ट व्यक्ति समझा जाता है, उनकी जीवनचर्या के साथ जुड़े हुए घटनाक्रमों को भी जानने की इच्छा...

हमारी वसीयत और विरासत (भाग 1)
इस जीवनयात्रा के गंभीरतापूर्वक पर्यवेक्षण की आवश्यकता
जिन्हें भले या बुरे क्षेत्रों में विशिष्ट व्यक्ति समझा जाता है, उनकी जीवनचर्या के साथ जुड़े हुए घटनाक्रमों को भी जानने की इच्छा हो...

गहना कर्मणोगति: (अन्तिम भाग)
दुःख का कारण पाप ही नहीं है
दूसरे लोग अनीति और अत्याचार करके किसी निर्दोष व्यक्ति को सता सकते हैं। शोषण, उत्पीड़ित...

युवा प्रकोष्ठ कौशाम्बी के माध्यम से विद्यालय में एक दिवसीय कार्यशाला का हुआ आयोजन
अखिल विश्व गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार के तत्वावधान में युवा प्रकोष्ठ कौशाम्बी की टीम ने कौशाम्बी जनपद के एन डी कॉन्वेंट स्कूल एंड स्वर्गीय श्री समाधि महाराज बाबा सूरजपाल दास इंटर कॉलेज, नसीर...

भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा में उत्कृष्ट प्रतिभागियों के सम्मान के साथ गायत्री चेतना केंद्र का हुआ शुभारंभ
कौशाम्बी जनपद के भरवारी नगर में नव निर्मित गायत्री चेतना केंद्र भरवारी में सोमवार को भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के उत्कृष्ट प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया। जनपद के अनेक विद्यालयों के बच्चों न...

पचपेड़वा में प. पू. गु. का आध्यात्मिक जन्म दिवस/बसंत पंचमी पर्व मनाया गया
आज *बसंत पंचमी* (गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्म दिवस) के पावन पर्व पर गायत्री शक्तिपीठ पचपेड़वा में यज्ञ हवन के साथ सरस्वती पूजन उल्लास पूर्ण/बासंती वातावरण में संपन्न हुआ. श...

प्रयागराज महाकुम्भ में 13 जनवरी से प्रारंभ हो रहा है गायत्री परिवार का शिविर
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से प्रारंभ हो रहे विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक आयोजन महाकुंभ में गायत्री परिवार द्वारा शिविर 13 जनवरी से प्रारंभ होकर 26 फरवरी 2025 तक रहेगा। महाकुम्भ क्...

वीर बाल दिवस के अवसर पर साहिबजादे क्विज प्रतियोगिता का हुआ आयोजन
कौशाम्बी: उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद में भरवारी नगर पालिका के सिंधिया में गुरुवार 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के अवसर पर बाल संस्कारशाला सिंघिया द्वारा सामूहिक प्रश्नोत्तरी (क्विज) प्रतियोगिता का ...
