
यह आवश्यक है—उपेक्षणीय नहीं
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युग निर्माण के लिए आवश्यक प्रयत्न करने के लिए आवश्यक है कि जिस दुनिया में हम रहते हैं यदि वह गंदी और दूषित रही तो अपने लिए ही संकट और चिन्ता की स्थिति बनी रहेगी। यदि चारों ओर दुष्टतापूर्ण वातावरण बना हुआ हो तो अपने सत्प्रयत्न भी निरर्थक चले जाते हैं।
चोर, डाकू, दुष्ट, दुराचारी, व्यभिचारी, बेईमान, गुण्डे और शरारती लोगों के बीच रह कर कोई सज्जन व्यक्ति भी अपनी सज्जनता की रक्षा नहीं कर सकता। उसके मार्ग में इतनी अड़चनें उत्पन्न हो जाती हैं कि उन्हें सुलझाने और सँभालने में ही अधिकाँश शक्ति खर्च होती रहती है। प्रगति और आत्म कल्याण की बात सोचने और वैसी व्यवस्था बनाने के लिए मनोबल ही शेष नहीं रह पाता। क्षोभ और सन्ताप से ग्रस्त व्यक्ति प्रतिरोध और प्रत्याक्रमण की बात ही सोच सकता है। उसका मन अशुभ भावनाओं में ही डूबा रहेगा और विवश होकर वह गतिविधि अपनानी पड़ेगी जो उसे कभी भी प्रिय नहीं थी।
आत्मिक प्रगति के लिए उपयुक्त वातावरण बना रहे इसके लिए यह आवश्यक है कि दुष्टता की प्रवृत्तियों का शमन करने के लिए हम प्रयत्नशील रहें। उपेक्षा करने से तो विपत्ति और भी बढ़ेगी। अनीति पर यदि अंकुश न रहे, दुष्टता पर यदि नियंत्रण न रहे तो वह दिन दूरी रात चौगुनी गति से अपना विस्तार करेगी। इसलिए मानव-समाज में बढ़ती जाने वाली दुष्प्रवृत्तियों की ओर से आँखें मूँद कर नहीं बैठे रहना चाहिये। अन्यथा संसार में जो पाप-ताप की ज्वालाएँ बढ़ेगी उनकी चपेट में अपना छप्पर भी आये बिना न रहेगा। दूषित वातावरण में अच्छे व्यक्ति की भी शान्ति सुरक्षित नहीं रहती।
अपनी व्यक्तिगत सुख शान्ति एवं सुरक्षा की दृष्टि से भी विचार करें तो यह आवश्यक प्रतीत होगा कि व्यापक क्षेत्र में फैली हुई बुराइयों के प्रतिरोध के लिए समुचित ध्यान रखा जाय और कुछ काम किया जाय। युग-निर्माण की बात केवल पुण्य-परमार्थ की दृष्टि से नहीं, स्वार्थों की, सुरक्षा की बात ध्यान रख कर भी सोचनी चाहिए। मुहल्ले में व्यापक व्यभिचार फैला हो तो उसकी चर्चा और प्रेरणा से अपने घर के लड़के-लड़कियों पर भी बुरा प्रभाव पड़े बिना न रहेगा। स्कूल में बच्चे गंदी गाली दें तथा दूसरी बुरी आदतों में लिप्त हों तो अपना बच्चा भी वहाँ से उन बुराइयों को सीख कर आवेगा। चोर-उठाईगीरों की संख्या अपने क्षेत्र में बढ़ेगी तो किसी दिन अपने कपड़े, बर्तनों के उठ जाने का भी अवसर आ ही सकता है।
गाँव में पार्टीबन्दी, मुकदमेबाजी का दौर चल रहा हो तो उस खींच-तान में अपने को भी किसी पक्ष की बुराई ओढ़नी पड़ेगी। जिसकी हाँ में हाँ न मिलाई जायगी वही बुरा मानेगा। आस-पास बीमारी फैले तो घर में सफाई आदि का प्रयत्न करते-करते भी उसका प्रकोप अपने यहाँ भी प्रवेश कर सकता है और दूसरों की गन्दगी से उत्पन्न हुई बीमारी की हानि अपने को भी सहनी पड़ सकती है।
समाज में कुरीतियाँ फैली हों और हम उन्हें अविवेकपूर्ण समझ कर न मानें तो बहुमत का विरोध सहना पड़ेगा। अपनी कन्या विवाह योग्य हो जाय और समाज में दहेज की दुष्प्रवृत्ति जड़ जमाये रहे तो विवश होकर हमें दहेज देने के लिए कष्ट सह कर प्रबन्ध करना होगा। बेईमान दुकानदारों के बीच रहते हुए हमें बिना मिलावट की शुद्ध सामग्री कहाँ उपलब्ध होगी? हृदयहीन चिकित्सकों का लक्ष्य यदि लूट खसोट ही हो तो वहाँ गरीब आदमी की जीवन-रक्षा कैसे सम्भव होगी? कचहरी और पुलिस में यदि रिश्वतखोरी का बाहुल्य हो जाय तो न्याय की रक्षा और अपराधों की रोक कहाँ से हो सकेगी?
नशेबाजी का प्रचलन बढ़ जाय तो अपने स्वजन संबन्धी भी कहीं न कहीं से उस लत को सीख आवेंगे और इसका प्रभाव अपने घर पर भी पड़ेगा। सिनेमा की गन्दी फिल्मों की गन्दी हवा चुपके-चुपके हर घर में प्रवेश करती चली आ रही है। जिस फैशन का प्रचलन बाजार में सब ओर दीखता है उसके लिये अपने स्वजन-संबन्धी ललचाने लगते हैं और अनुपयुक्त समझने पर भी हम उसे रोक नहीं पाते।
वातावरण में फैली हुई विचारधाराएँ और बुराइयाँ हवा और सर्दी-गर्मी की तरह अपने ऊपर भी आक्रमण करती हैं इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि बुराइयों से अपने बचाव का मोर्चा छोटा न रखा जाय। घर में ही सब कुछ बचाव नहीं हो सकता, बाहरी परिस्थितियों को बिगड़ने न देने के लिए भी प्रयत्न करना आवश्यक है। युग-निर्माण योजना के अंतर्गत समाज-सुधार पर जो अधिक जोर दिया जाता है इसका कारण परमार्थ तो है ही—विश्व शांति जन-कल्याण और सामूहिक प्रगति का लक्ष तो है ही, पर साथ ही यह तथ्य भी सन्निहित है कि हमारे व्यक्तिगत स्वार्थ भी तभी सुरक्षित रह सकेंगे जब समाज का वातावरण उत्कृष्ट विचारधाराओं से प्रभावित हो।
यदि निष्ठुरता की ही प्रधानता फैली रहे तो हमारी बीमारी मुसीबत में भला कौन मदद देने आयेगा? जिस व्यक्ति को मुसीबत के वक्त उधार दिया है यदि वह बेईमान होगा तो अपना उधार कब लौटेगा? डाकुओं और लुटेरों के क्षेत्र में रास्ता चलना भी कठिन हो जाता है। मेले में अपना बच्चा खो जाय और उस भीड़ में सहृदय लोग न हों तो वह बालक कहीं भटक-भटक कर ही मर सकता है। होटल वाले और हलवाई यदि खराब चीजें ही बनाते हैं तो आवश्यकता पड़ने पर जब भी वहाँ से कुछ खरीदना पड़ेगा तभी स्वास्थ्य के लिए संकट उत्पन्न होगा। कुमार्ग पर चलने चलाने वाले लोगों का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव अपने परिवार पर भी पड़ता है और बचाव का ध्यान रखते हुए भी अनिष्ट की सम्भावना रहती है।