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आरम्भ गुर्वी क्षयिणी क्रमेण।
लध्वी पुरा बुद्धिमती च पश्चात्॥
दिनस्य पूर्वार्धं परार्ध्यं भिन्ना।
छायेव मैत्री खल सज्जनानाम्॥
—पंच तंत्र
“दुष्टों की मित्रता सूर्योदय के समय की तरह आरम्भ में लंबी चौड़ी होती है फिर क्रमशः घटती चली जाती है और सज्जनों की मित्रता दोपहर के पश्चात् की छाया के समान पहले छोटी होती है और फिर क्रमशः बढ़ती जाती है।
होता। जिस प्रकार अपने ऊपर झुँझलाकर या लम्बी चौड़ी योजना बनाकर एक दिन में अपना सुधार नहीं हो सकता, उसी प्रकार परिवार की बहुत दिन की जमी हुई भली-बुरी स्थिति उतावली में नहीं बदली जा सकती। बन्दर को तमाशा करना सिखाने वाले कलन्दर जिस धैर्य, अध्यवसाय और सतत प्रयत्न से काम लेते हैं वही रास्ता हमें भी अपनाना पड़ेगा। तोड़-फोड़ सरल होती है पर निर्माण कार्य कठिन है। मनुष्य की योग्यता और प्रतिभा उसकी रचना शक्ति को देखकर ही आँकी जाती है। परिवार के निर्माण में बड़ी चतुरता, कुशलता, धैर्य, प्रेम, सहिष्णुता एवं आत्मीयता से काम लेना होता है। समय-समय पर साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपनानी पड़ती है, तब कहीं शनैः-शनैः अभीष्ट परिणाम सामने आता है।
इसके लिए घरेलू पाठशाला एवं सत्संग गोष्ठी के रूप में दैनिक शिक्षण क्रम का एक कार्यक्रम निर्धारित करना चाहिए। सुविधा के समय परिवार के सब लोग मिल जुल कर बैठा करें और प्रेरणाप्रद प्रसंगों को लेकर वार्तालाप किया करें। दैनिक समाचार पत्रों में छपने वाली कुछ भली या बुरी खबरों को लेकर उनकी आलोचना इस ढंग से की जा सकती है कि सुनने वालों पर भलाई के प्रति निष्ठा और बुराई के प्रति घृणा भाव पैदा हो। नई खबरें सुनने की सबकी इच्छा रहती है। आकर्षक, मनोरंजक और विवेचनात्मक ढंग से खबरें सुनाने का कार्य घर के सभी लोग पसंद करेंगे। उनका मनोरंजन भी होगा शिक्षा भी मिलेगी। इसी प्रकार महापुरुषों के जीवन चरित्रों के कोई अंश, व्रत पर्वों के इतिहास, पौराणिक उपाख्यान, कथा-गाथाएँ कहने का कार्यक्रम चलाया जाता रहे तो घर में सबका मनोरंजन भी होगा और अप्रत्यक्ष रूप में वे सब शिक्षाएँ भी मिलने लगेंगी जो परिजनों को सुसंस्कृत बनाने के लिए आवश्यक हैं।
कभी-कभी घर की समस्याओं पर विचार विनिमय भी करते रहना चाहिए। किसे क्या कठिनाई और क्या शिकायत है इसकी जानकारी परस्पर सब लोग रखे रहें और उसका हल खोजते रहें तो निश्चय ही वे बढ़ेंगी नहीं, घटेंगी ही। कड़ा प्रतिबंध लगा कर व्यक्तित्व की स्वतंत्रता को एक दम अवरुद्ध कर देना तो ठीक नहीं, पर प्रयत्न यह करना चाहिए कि सब लोग अपनी भूलों के समझने और सुधारने को आवश्यकता अनुभव करने लगें।
“अखण्ड-ज्योति” के लेखों को पढ़कर सब लोगों को सुनाना, परिवार-निर्माण की दृष्टि से बहुत उपयोगी हो सकता है। उस उद्देश्य के लिए जो कुछ कहना समझाना आवश्यक है वह सब कुछ अब इस पत्रिका के पृष्ठों पर रहा करेगा, युग-निर्माण के संदेशवाहक के रूप में यदि इन लेखों को सुनाया जायगा तो सुनाने वाले को उपदेशक बनने का व्यय भी न सहना पड़ेगा और अभीष्ट उद्देश्य भी पूरा होता रहेगा।
अशिक्षा के विरुद्ध व्यापक अभियान आरम्भ करने की जो अपनी योजना है, उसका आरंभ अपनी घरेलू ज्ञान-गोष्ठी ही से हमें आरम्भ करना चाहिए। घर में जो बिना पढ़े हैं उन्हें पढ़ाना चाहिए। प्रयत्न यह करना चाहिए कि कोई भी निरक्षर न रहे। निरक्षरता मानव-जीवन का एक कलंक है। इस कलंक से अपने घर के सभी सदस्यों को मुक्त कर लेना चाहिए। “अखण्ड-ज्योति” का एक भी सदस्य ऐसा न हो जिसकी स्त्री बिना पढ़ी रह जाय। घूँघट और संकोच की मूर्खता को इस पुनीत कार्य में जरा भी आड़े नहीं आने देना चाहिए। घर के बड़े-बूढ़ों को इस कार्य में अपनी सहमति देने के लिए रजामंद करना चाहिए। एकान्त समय में तो उनकी बिना सहमति के भी शिक्षण चल सकता है। जो स्त्रियाँ बड़ी आयु की हो चुकीं या जिन घरों में पर्दा नहीं होता वहाँ तो यह कठिनाई भी नहीं आती। कई बार बड़ी आयु की स्त्रियाँ इसे व्यर्थ समझती हैं, कहती हैं “हमें कोई नौकरी थोड़े ही करनी है जो पढ़ें।” उन्हें समझाना चाहिए कि पढ़ना, ज्ञान के नेत्र खोलने के लिए होता है, नौकरी के लिए नहीं। शिक्षा की उपयोगिता समझा कर तरुण, अधेड़ और बूढ़ों को भी इस कार्य के लिए तैयार किया जा सकता है। यदि अपना स्वभाव मधुर और उत्साह पक्का है तो आज नहीं तो कल, घर के निरक्षर लोग साक्षर बनने को उद्यत हो ही जावेंगे।
सामूहिक अथवा व्यक्तिगत रूप में ईश्वर उपासना, (2) शरीर और वस्त्रों की सफाई (3) वस्तुओं को यथास्थान सुव्यवस्थित रूप से रखना (4) बड़ों को नित्य अभिवादन करना, माता पिता एवं वृद्धों के चरण छूना (5) शृंगार एवं विलासिता के उपकरणों को छोड़कर सादगी अपनाना (6) रात को जल्दी सोना और प्रातः जल्दी उठना (7) निर्धारित दिनचर्या बना कर निरन्तर व्यस्त रहना, आलस्य को पास भी न फटकने देना (8) गाली देना या ‘तू’ का संबोधन तथा कटु भाषण छोड़कर मधुर वाणी से विनम्र संभाषण करना (9) आमदनी और खर्च का लिखित हिसाब रखना (10) टूटी-फूटी वस्तुओं की मरम्मत करके उन्हें पूर्ण निरुपयोगी होने तक काम में लेना (11) भोजन को सात्विक रखना, आहार संबंधी नियमों का पालन करना और भगवान को भोग लगाकर खाना (12) श्रम एवं व्यायाम की व्यवस्था रखना (13) हँसमुख