
Quotation
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
दोषाः प्रभवन्ति रागिणाँ।
गृहेषु पंचेन्द्रिय निग्रहस्तपः॥
अकुत्सिते कर्मणि यः प्रवर्तते।
निवृत्तरागस्य गृहं तपेवनम्॥
“विषयानुरागी मनुष्य वन में जाकर भी दोषों से मुक्त नहीं हो सकते और संयमी जन घर में रहकर भी इन्द्रिय निग्रह कर लेते हैं। इसलिये शुभ कर्मों में प्रवृत्त होने वाले वीतराग पुरुषों के लिये उनका घर भी तपोवन के सदृश्य है।”
प्रेरणा देने वाले आदर्शों की आवश्यकता होती है। अभ्यास में अच्छाइयाँ तब आती हैं जब प्रभावित करने के लिए वैसा वातावरण भी प्रस्तुत हो। इस प्रकार की व्यवस्था घर में रहे तो ही यह संभव है कि बच्चों पर जीवन की श्रेष्ठता के ढाँचे में ढालने वाली छाप पड़े।
परिवार की सबसे बड़ी सेवा एक ही हो सकती है कि घर के हर व्यक्ति को सुसंस्कृत बनाने का प्रयत्न किया जाय। जिस प्रकार अपनी त्रुटियों और बुराइयों को घटाने और हटाने की उपयोगिता है। उसी प्रकार “परिवार-शरीर” के प्रत्येक अंग को-प्रत्येक परिजन को सुधरा हुआ एवं सुसंस्कृत बनाना आवश्यक है। यह कार्य दूसरे लोग नहीं कर सकते, स्वयं किये बिना यह उद्देश्य पूरा नहीं होगा। क्योंकि घर वालों पर जितना अपना प्रभाव एवं अपनत्व है उतना दूसरों का नहीं हो सकता, घर के प्रभावशाली व्यक्तियों को ही यह कार्य अपने हाथ में लेना चाहिए।
डाँटने-फटकारने, व भला-बुरा कहने, दोषारोपण एवं झुँझलाहट से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं