
Quotation
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायाँ विषं शिरे।
वृश्रिकस्य विषं पुच्छे सर्वांगे दुनृणाँ विषम्072
—चाणक्य
“साँप के दाँतों में विष रहता है, मक्खी के सिर में माहुर रहता है, बिच्छू की पूँछ में विष रहता है पर दुष्टों के समस्त शरीर में विष रहता है।”
तैयार योजना मिल जाय। मकान बनाने के पूर्व इंजीनियर उसका नक्शा बनाते हैं। योजना बनाने वाले कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं, तैयारी के बाद निर्माण भी आरंभ हो जाता है। कार्ल मार्क्स ने साम्यवाद की रूपरेखा प्रस्तुत की ओर लेनिन ने उन्हें कार्यान्वित किया। स्वामी विरजानन्द की योजना को दयानन्द ने, और रामकृष्ण परमहंस की योजना को विवेकानन्द ने कार्यान्वित किया था। आज युग-निर्माण की योजना कागजी भले ही दिखे इन्हें कार्यान्वित करने वाले समयानुसार सहज ही कार्यान्वित करने लगे। उन कर्मठ युग पुरुषों के अवतरण का यही समय है।
सूक्ष्मदर्शी, सिद्ध पुरुषों के मतानुसार यह निश्चित है कि अगले दिन अत्यंत उच्चकोटि की दिव्य आत्माएँ भारत भूमि पर अवतरित होंगी। व्यास, वशिष्ठ, विश्वामित्र, याज्ञवलक्य, पाराशर, कपिल, कणाद, पातञ्जलि, जैसे योगी, अर्जुन, भीम, हनुमान, अंगद, परशुराम, सहस्रार्जुन जैसे योद्धा, विश्वकर्मा जैसे कलाकार, नागार्जुन जैसे रसायनज्ञ, चरक, सुश्रुत, धन्वन्तरि, अश्विनीकुमार जैसे चिकित्सक, चाणक्य जैसे राजनीतिज्ञ, रावण जैसे वैज्ञानिक, भीष्म, द्रोण जैसे शस्त्र-शास्त्री, भरत, लक्ष्मण, हरिश्चन्द्र, ध्रुव, प्रह्लाद, कर्ण, श्रवणकुमार, शिव, दधीचि जैसे महापुरुष नारद जैसे प्रचारक, जनक, युधिष्ठिर, अशोक, विक्रमादित्य जैसे शासक, प्रताप, शिवाजी, लक्ष्मीबाई, गुरुगोविन्दसिंह, वन्दावैरागी, तिलक, सुभाष जैसे देशभक्त बुद्ध, गान्धी, महावीर, शंकराचार्य जैसे अवतारी, सीता सावित्री, अरुन्धती, अनुसूया, गौतमी, जैसी नारियाँ फिर इस देश में जन्म लेंगी। वे आत्माएं अपनी महान आत्मिक स्थिति के द्वारा युग निर्माण के कार्यों को सफल बना कर रहेंगी। गान्धी जी के स्वराज्य आन्दोलन को पूर्ण करने के लिए कितनी ही उच्च कोटि की आत्माएँ उनके समय में अवतरित हुई थीं। युग-निर्माण का प्रत्यक्ष कार्यक्रम सन् 72 के बाद जब दिखाई देगा और 88 तक पूरा हो लेगा, उस कार्य के लिये जिन महान आत्माओं का प्रमुख हाथ रहने वाला है उनके जन्म का समय काल ठीक यही है।
दशरथ और कौशल्या, स्वयंभू मनु और शत-रूपा देवकी और वसुदेव अर्जुन और द्रौपदी जैसे दम्पत्ति ही इन उच्च स्तर की आत्माओं को जन्म देने में समर्थ हो सकते हैं। इसलिए यह भी प्रयत्न करना होगा कि आदर्श जीवन बिताने वाले, उच्च विचार धाराओं से परिपूर्ण, नर-नारी उन आत्माओं को जन्म देने के लिए उपयुक्त स्थान प्रस्तुत करें। घटिया, तुच्छ, पतित स्वार्थी और हीन मनोभूमि वाले असुर प्रकृति माता-पिता के शरीरों में उच्च आत्माएँ प्रवेश नहीं करतीं, उनके यहाँ उसी श्रेणी की दुष्टात्माएं जन्म लेती हैं। किसी महापुरुष को अपने घर बुलाना होता है तो घर की सफाई और पहुँनाई का प्रबन्ध भी उसकी शान के उपयुक्त ही करना पड़ता है। महापुरुष जिनके घर में जन्में वैसे पति पत्नी का आदर्शवादी होना भी आवश्यक है। अर्जुन-द्रौपदी ने जिस प्रकार गर्भ में ही अभिमन्यु को चक्रव्यूह तोड़ने की शिक्षा दे दी थी, ऐसा ही प्रशिक्षण कर सकने की क्षमता जिन माता पिता में हो वे ही महापुरुषों को जन्म दे सकते हैं। इस प्रकार का महान उत्पादन करने का उत्तरदायित्व उठाने के लिए कठिन तपश्चर्या करने वाले नर−नारी अपने परिवार में से निकलें ऐसी हमारी हार्दिक अभिलाषा है।
अवतारी युगपुरुष न सही, मध्यम श्रेणी के महापुरुष भी उत्कृष्ट श्रेणी के पति पत्नी ही उत्पन्न कर सकते हैं। भविष्य में ऐसे संस्कारवान व्यक्तियों की भारी संख्या में आवश्यकता पड़ेगी। राम के साथ प्राणवान से अनीति उन्मूलन करने वाले रीछ−वानरों की कितनी बड़ी सेना थी? वैसी ही सुसंस्कारी नई पीढ़ी को विनिर्मित करने का कार्य अब आरम्भ कर दिया जाना चाहिए। संस्कारवान तेजस्वी बालक उत्पन्न करने का महाअभियान उनके माता पिता को सुसंस्कृत बनाने के कार्य से ही आरम्भ किया जा सकता है।
आज की पीढ़ी कमजोर मिट्टी की बनी हुई है। माता-पिता ने पूर्व तैयारी का निश्चित लक्ष लेकर उसे पैदा नहीं किया है और न वैसी दीक्षा, वैसी संस्कृति का लाभ ही उसे मिला है। ऐसी दशा में यदि आज की पीढ़ी दुर्बल मनोभूमि की, आदर्शों का भार उठाने में असमर्थ दीखती है तो कुछ आश्चर्य की बात नहीं है। अगली पीढ़ी के लिए हमें ऐसी तैयारी करनी चाहिये जो जन्म के साथ ही उच्च संस्कार साथ लेकर आवे। चिकनी मिट्टी के ही अच्छे खिलौने या बर्तन बन सकते हैं। बालू रेत लेकर कोई चतुर कुम्हार भी कुछ बना नहीं पाता, उसका श्रम निरर्थक ही चला जाता है। खराब लोहे से अच्छी मशीनें नहीं बन सकतीं, इसी प्रकार जन्मजात संस्कारों के बिना वह दृढ़ता नहीं आती जिसके आधार पर युग निर्माण जैसे महान कार्य संपन्न हो सकें।
किन उपायों से सुसंतति उत्पन्न हो सकती है यह एक स्वतन्त्र विषय है। इस पर हम आगे बहुत कुछ-बताने समझाने वाले हैं। पर आवश्यकता इस बात की है कि उसके लिए आत्म-नियंत्रण, आत्म शिक्षण और आत्म विकास के मार्ग पर चलना पति-पत्नी पहले से ही आरंभ कर दें ताकि उनकी निज की मनोभूमि तो उपयुक्त प्रकार की बन जाय। बालकों का निर्माण, आत्म निर्माण के साथ ही आरम्भ होता है दुर्गुणी माता पिता केवल बाहरी प्रशिक्षण के आधार पर सन्तान के उत्कृष्ट मनोभूमि का नहीं बना सकते। नई पीढ़ी की उत्कृष्टता, उनके पिता-माता की उत्कृष्टता पर निर्भर रहती है। इसलिए हममें से जो संतान को उत्तरदायित्व उठाने की स्थिति में हैं उन्हें अपनी धर्म पत्नियों को अपने अनुरूप मनोभूमि का बनाने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण आरंभ करना ही पड़ेगा।
जो व्यक्ति पूर्व संस्कारों के कारण आज धर्म रुचि सम्पन्न दिखाई पड़ते हैं उन्हें खोजना, संबन्ध सूत्र में बाँधना और स्वाध्याय-सत्संग के लाभ से लाभान्वित करना यह प्रथम कार्य है और साथ ही नई पीढ़ी को जन्म देने के लिए तपश्चर्या करने वाले साहसी व्यक्तियों को उपयुक्त तैयारी के लिए प्रेरणा देना दूसरा कार्यक्रम है। इन दोनों को ही उत्साह-पूर्वक अपनाया जाना चाहिये ताकि जल्दी ही परिपक्व मनोभूमि वाले संस्कारी युग-पुरुषों की एक बड़ी सेना सामने प्रस्तुत दिखाई देने लगे।