
लोकरंजन और लोकमंगल का समन्वय स्लाइड प्रोजेक्टर
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
अभ्यास एवं आकर्षण से बाहर की बातें नीरस लगती हैं। उसकी ओर मन नहीं जाता, जाता है तो तुरन्त उचट जाता है। आत्म कल्याण, सत्प्रवृत्ति संवर्धन और सुधार परिवर्तन का विषय भी ऐसा ही है। जो आकर्षक न लगने के कारण उपेक्षा के गर्त में ही गिरा पड़ा रहता है। इस सन्दर्भ में कुछ साहसिक कदम उठाना तो दूर गम्भीर चर्चा तक में उदासी रहती है। ऐसी दशा में जूड़ी, तिजारी के मरीजों को कडुआ चिरायता कैसे पिलाया जाय? यहां एक असमंजस ही रहता है। इसमें प्रायः शक्कर चढ़ी कुनैन की गोलियां बनाने व खिलाने जैसी चतुरता का परिचय देना पड़ता है। लोक रंजन के साथ लोक शिक्षण की प्रक्रिया का समावेश ऐसा ही है जिसे अपनाने पर आदर्शवादिता को सर्वसाधारण के गले उतारने में उत्साहवर्धक सफलता देखी गई है।
उच्चस्तरीय प्रतिपादनों की दार्शनिक चर्चा पूर्वसंचित मनोभूमि न होने के कारण न प्रिय लगती है न तो ठीक तरह समझ में आती है। ऐसी दशा में चिरकाल से एक ही सरल उपाय अपनाया जाता रहा है कि घटनाक्रमों की वर्णनात्मक शैली अपनाई जाय। कथा पुराणों का स्वरूप एवं उद्देश्य यही है, बाजार की कहानी, उपन्यास ही सबसे अधिक बिकते हैं। सिनेमा, नाटक में कथा प्रसंग ही होते हैं। यही है लोकरंजन के साथ लोक शिक्षण की प्रक्रिया, जो व्यवस्थापकों को इच्छानुसार अभीष्ट परिणाम भी प्रस्तुत करती है।
विचार क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत भी इस शैली को अपनाया और आगे बढ़ाया गया है। साधनों के अभाव और अशिक्षित देहाती भारत को कार्यक्षेत्र बढ़ाये जाने के कारण इस सन्दर्भ में सस्ते और सर्वसुलभ माध्यम ही अपनाये जा सकेंगे वे ही अपनाये भी गये है। इस प्रयोजन के लिए एक उपयोगी उपकरण, ‘‘स्लाइड प्रोजेक्टर’’ हस्तगत हुआ है। यह एक प्रकार का घरेलू सिनेमा है जिसमें चित्र बड़े साइज के भी होते हैं रंगीन भी, किन्तु फिल्मों की भांति बोलते चलते नहीं। जितना गुड़ डाला जाएगा उतना मीठा की उक्ति यहां भी लागू होती है। ‘‘न कुछ से कुछ अच्छा’’ कह नीति अपनाते हुए सामयिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए इस माध्यम को काम चलाऊ समझा और प्रज्ञा अभियान की पंचसूत्री योजना में उसे समुचित महत्व दिया गया है और उत्साहपूर्वक अपनाया गया है। अनुभव ने इस प्रयोग परीक्षण को बहुत ही सफल भी पाया है।
स्लाइड प्रोजेक्टर एक छोटा सा प्रकाश चित्र प्रदर्शन यन्त्र है जिसके माध्यम से पर्दे पर इतना बड़ा चित्र आता है जिसे पांच सौ आदमी भली प्रकार देख सकें। इन चित्रों की व्याख्या अधिक श्रोताओं के बीच लाउड स्पीकर के माध्यम से तथा कम उपस्थिति में बिना लाउड स्पीकर के भी की जा सकती है। व्याख्या के अनुरूप चित्र जल्दी-जल्दी हटाये जाते हैं। एक-एक दो-दो मिनट बाद चित्र बदलते रहने से चलते फिरते सिनेमा चित्रों जैसा न सही पर कोई ऊबता भी नहीं। चित्रों का विषय घटनात्मक एवं वर्णनात्मक होने के कारण वह हर स्तर के व्यक्ति की समझा में भी आता है और किसी को यह अनुभव नहीं होता है कि युग सृजन की पृष्ठभूमि समझाने की बात नीरस या कठिन है। व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण, समाज निर्माण, सत्प्रवृत्ति सम्वर्धन, दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन, जनमानस का परिष्कार, मनुष्य में देवत्व का उदय और धरती पर स्वर्ग का अवतरण जैसे प्रसंग जनसाधारण के लिए अभ्यास एवं आकर्षण के विषय नहीं हैं। इसलिए उस चर्चा में आमतौर से सुनने वालों की संख्या बहुत ही स्वल्प रहते देखी गई है। इस कठिनाई का सरल हल स्लाइड प्रोजेक्टर ने निकाल दिया है। इस मुफ्त के सिनेमा को देखने के लिए किसी भी गली मुहल्ले के लोगों को सन्तोषजनक संख्या में एकत्रित किया जा सकता है और उपकरण के माध्यम से युगान्तरीय चेतना का जन-जन को हृदयंगम कराने का उद्देश्य, उत्साहपूर्वक मात्रा में पूरा होने लगता है।
मिशन ने जो स्लाइड प्रोजेक्टर बनाया है उसका प्रयोग, उपयोग अति सरल है। जहां बिजली है वहां उसे बिना किसी कठिनाई के दिखाया जा सकता है। एक स्लाइड दो मिनट दिखाये जाने के हिसाब से 36-36 स्लाइडों के सात सैट प्रसंगों के अनुसार बनाये गये हैं। भविष्य में नये-नये विषयां पर लगातार बनते भी रहेंगे ताकि नवीनता बनी रहे। इनकी व्याख्या प्रत्येक सेट पर 12 मिनट में नपे तुले शब्दों में हो सकती है। थोड़ा और बढ़ाकर कहना हो तो इसी को दो घंटे या अधिक समय में भी कहा जा सकता है। इस प्रकार एक स्थान पर सात दिन तक नया प्रसंग करते हुए दिखाया जाता रह सकता है। एक गांव का मुहल्ला समाप्त होने पर दूसरे में इन आयोजनों का सिलसिला चलाया जा सकता है। हर स्लाइड सेट के साथ एक छपी पुस्तक रहती है जिसके आधार पर हर चित्र की व्याख्या करने का सिलसिला तनिक से अभ्यास में चल पड़ता है।
स्लाइड प्रोजेक्टर उपकरण का मूल्य 250 रुपया है। 36 स्लाइडों का एक सेट 45 रुपये का है। इस प्रकार सात सेटों की लागत 315 रुपये बैठती है। कुल मिलाकर यह सारा सरंजाम 565 रुपये में बन जाता है। स्लाइडें रखने का 25 का डिब्बा लेना हो तो लागत 590 रुपये हो जाती है। सात स्लाइड सेट न लेने हों तो कुछ कम लेने हों तो उतनी ही लागत भी घट सकती है। अधिक उपस्थिति और ऊंची आवाज में सुनाना हो तो छोटे लाउड स्पीकर की भी आवश्यकता पड़ेगी। इसके लिए छोटी अटैची की तरह कहीं भी साथ ले जाया जाने वाला—बिजली तथा बैटरी से चलने वाला लाउड स्पीकर इन्हीं दिनों बना है और बाजार में 800 रुपये के लगभग प्राप्त होगा।
प्रज्ञा अभियान की पंचसूत्री योजना स्लाइड प्रोजेक्टर के सहारे युगांतरीय चेतना को व्यापक बनाने का प्रावधान रखा गया है और सभी समर्थ शाखाओं से कहा गया है कि वे इसकी व्यवस्था बनाने और इस माध्यम से लोक मानस को युग धर्म अपनाने के लिए प्रशिक्षित करने में जुट जायें।