
जन्म दिवसोत्सव, देखने में छोटा किन्तु परिणाम में महान
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मनुष्य का सबसे बड़े सौभाग्य का दिन वह है जिसमें कि उसे यह सुर दुर्लभ मानव जीवन प्राप्त हुआ। यह भगवान का सबसे बड़ा उपहार है। इससे बड़ा अनुदान उसके भंडार में और कोई है भी नहीं इसे कल्पवृक्ष कहा गया है। आत्मा को मनुष्य—जन्म के सहारे हर क्षेत्र की भौतिक प्रगति और आध्यात्मिक क्षेत्र में स्वर्ग, मुक्ति, सरलता पूर्वक उपलब्ध हो सकती है। इसे सुर दुर्लभ कहा गया है। सृष्टि के अन्य किसी प्राणी को ऐसी विशिष्ट सम्पदा हस्तगत नहीं हुई है। इस सुयोग्य सौभाग्य पर मोद मनाने और गौरव अनुभव करने का हर किसी को अधिकार है। इसलिए सभ्य समाज में सभी अपना अपने कुटुम्बी हितैषियों का जन्म दिन उत्साहपूर्वक मनाते हैं।
इस प्रचलन का बहुत बड़ा लाभ यह है कि जन्म दिन का ही नहीं, उस सुयोग के साथ जुड़ी हुई महान संभावनाओं और सघन जिम्मेदारियों का भी स्मरण हो आता है। ईश्वर ने यह अनुपम अनुदान किसलिये दिया—उसका किस प्रकार सदुपयोग कर किस स्तर की सफलता अर्जित की जा सकती है? कैसे इस सौभाग्य को सार्थक बनाया जा सकता है? आदि प्रश्नों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने का अवसर मिलता है। जीवन सौभाग्य की गरिमा एवं सम्भावना अनुभव करने का यह विशिष्ट अनुभव करने का यह एक विशिष्ट अवसर है। उस दिन हर्षोत्सव मनाया जाय तो सहज ही उन तथ्यों की ओर ध्यान जाता है, जिन्हें यदि गम्भीरता पूर्वक अपनाया जा सके तो उसकी परिणति उज्ज्वल भविष्य का पथ प्रशस्त कर सकती है। जन्म दिवसोत्सव यों एक अवसर विशेष का मनोरंजन उपक्रम लगता है किन्तु उसको यदि थोड़ी गंभीरता मिल सके, धार्मिक वातावरण के साथ जुड़ी रहने वाली भाव श्रद्धा उमड़ सके और प्रेरणा प्रद मार्गदर्शन आत्म चिन्तन का सुयोग बैठ सके तो निश्चय ही उस मुहूर्त में मनुष्य को अपनी गतिविधियों एवं परिस्थितियों में काया कल्प जैसा उच्च स्तरीय परिवर्तन का द्वार खुल सकता है।
युग निर्माण योजना द्वारा सभी प्रज्ञा परिजनों के जन्म दिवसोत्सव मनाने के अभियान को अत्यधिक महत्व दिया गया है और उसकी व्यापक व्यवस्था बनाने के लिए अपने समूचे प्रभाव क्षेत्र पर पूरा दबाव डाला है। उसके पीछे कितने ही ऐसे प्रयोजन छिपे हुए हैं जिससे न केवल उस व्यक्ति के उज्ज्वल भविष्य का पथ प्रशस्त हो वरन् युग सृजन की संभावना में भी महत्वपूर्ण योगदान मिले। इन लाभों में प्रथम व्यक्ति निर्माण की चर्चा व्यक्ति निर्माण के रूप में ऊपर की जा चुकी है। दूसरा है परिवार निर्माण। जिस घर में यह आयोजन होगा उसके परिजनों को एक नई चेतना से जुड़ने का अवसर प्राप्त होगा। परिवार को सुसंस्कृत एवं समुन्नत बनाने के लिए जिन उपायों का अवलम्बन करना होता है वे सभी इन आयोजनों के सहारे प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से उभरते हैं। उनमें यदि थोड़े से भी कार्यान्वित किये जा सकें तो समझना चाहिए कि न केवल जन्मदिन मनाने वाले का वरन् उसके परिवार का भी भाग्योदय बन पड़ा। यह आयोजन मात्र हर्षोत्सव नहीं है, उनके साथ ऐसी परोक्ष प्रेरणाओं का भी समन्वय है जिसके कारण उस घर के निवासियों को ही नहीं पास पड़ोस से एकत्रित होने वाली मित्र मंडली को भी आत्म निर्माण एवं परिवार निर्माण की नयी दिशा, नयी चेतना एवं नयी हिम्मत उपलब्ध होती है।
व्यक्ति और परिवार में उपयोगी परिष्कार होने का नाम ही समाज की अभिनव संरचना है। दुष्प्रवृत्तियों का उन्मूलन एवं सत्प्रवृत्तियों का संवर्धन क्रम जब सामूहिक रूप से चल पड़ता है, तो उसी को समाज संरचना कहा जायेगा। इन आयोजनों में जन्म दिन मनाने वाले तथा उनके कुटुम्बियों को कुछ न कुछ दुर्गुण छोड़ने, कोई सामाजिक सत्प्रवृत्ति अपनाने के लिए सहमत किया जाता है। यह नव निर्धारण समाज की अभिनव संरचना में निश्चित रूप से सहायक होता है। इस प्रकार प्रज्ञा अभियान को व्यक्ति निर्माण परिवार निर्माण और समाज निर्माण की तीनों प्रतिज्ञाओं में किसी न किसी प्रकार जन्मदिवसोत्सवों में योगदान मिलता है।
जन्म दिवसोत्सवों की प्रक्रिया अति सरल है। न उनमें कुछ खर्च पड़ता है और न किसी दौड़ धूप का सिरदर्द उठाने की आवश्यकता होती है। जिस दिन वह सुयोग हो उस दिन प्रातः या रात्रि का सुविधाजनक समय नियत कर लेते हैं। महिला मण्डली के लिए तीसरे प्रहर सुविधा होती है। उस आयोजन में उपस्थिति होने के लिए पड़ोसियों को आमन्त्रित किया जाता है। ऐसे अवसर पर वे उपस्थित होने में चूकते भी नहीं। खर्चीले आतिथ्य की रोक है। सौंफ सुपाड़ी के अतिरिक्त और कुछ खर्चीला स्वागत सत्कार करने पर प्रतिबन्ध लगाया है जिससे गरीबों को भी संकोच न करना पड़े।
गायत्री यज्ञ, विशिष्ट देव पूजन, पुष्प वर्षा, दीप प्रज्वलन, अभिवादन, आशीर्वाद, संगीत, प्रवचन तथा नये जन्म पर किसी नयी सत्प्रवृत्ति का व्रत धारण संक्षेप में यही हैं वे विधि विधान जिनसे प्रज्ञा परिवार के सभी वरिष्ठ सदस्य पहले से विदित अभ्यस्त हैं। पूजा उपचार की सज्जा की सभी वस्तुएं शाखा कार्यालय में उपलब्ध हो सकती हैं। पूर्व सूचना होने पर वे लोग भी व्यवस्था यथा समय कर देते हैं।
जन्म दिवसोत्सव ऐसे प्रेरक आकर्षक एवं श्रद्धासिक्त होते हैं कि उपस्थित लोगों में से हर किसी का मन उसी प्रकार का आयोजन अपने यहां भी करने का होता है। छोटे बच्चों का या मिशन से बाहर के लिए व्यवस्था बना सकना तो शाखाओं के लिए कठिन होगा किन्तु जो मिशन के सहयोगी समर्थक हैं उनके यहां आयोजन किये जाने का प्रबन्ध तो हो ही सकता है।
जिस घर में यह आयोजन होते हैं उसमें पुरुष ज्ञान घट और स्त्रियां धर्म घट स्थापित करती हैं। यही आयोजन की दक्षिणा है, जिसे वे प्रसन्नता पूर्वक प्रस्तुत करते हैं। दस पैसा नित्य एवं एक मुट्ठी अन्न नियमित रूप से मिलते रहने पर स्थानीय प्रज्ञा संगठन को पोषण मिलने से उसके कार्य विस्तार में महत्वपूर्ण सहायता भी मिलती है।