
युग प्रहरी संसद— प्रज्ञा परिजनों के लिए अणुव्रत
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जागृत आत्माओं का देव परिवार युग परिवर्तन की सामयिक मांग को पूरा करने के लिए, अदृश्य शक्ति की योजना एवं प्रेरणा के अनुरूप गठित हुआ है। प्रज्ञा परिवार के हर सदस्य को युग संधि ही प्रभात वेला में अपने कंधों पर आये उत्तरदायित्वों को निभाना है। ऐसे ऐतिहासिक अवसरों पर अग्रगामी ही सुयोग सौभाग्य को पहचानते, साहस पूर्वक आगे बढ़ते और अपना उदाहरण प्रस्तुत करते हुए असंख्यों में अनुकरण का उत्साह भरते हैं। नव सृजन के युग निमंत्रण को कोई भी जागृत आत्मा अस्वीकार कर करे। जिसे जैसा उत्साह एवं अवसर हो, वह न्यूनाधिक परिमाण में अपने योगदान को सम्मिलित करे ही।
प्रज्ञा परिवार के तीन वर्ग है:—
एक प्रज्ञा पुंज जो केन्द्र के बढ़ते हुए उत्तरदायित्व को सम्भालते हैं। जड़ को सींचते हैं और ध्यान रखते हैं कि घड़ी के फिनर को चाबी भर कर कसा न गया तो उसका समूचा तंत्र ही लड़खड़ा जायेगा।
दूसरा प्रज्ञा पुत्र हैं जिनने युग धर्म की आपत्तिकालीन आवश्यकताओं को समझा है और निजी इच्छा आवश्यकताओं में कटौती करके उस बचत को समयदान-अंशदान के रूप में युग देवता के चरणों पर रखा है। युगान्तर चेतना को जन-जन के मन-मन में उतारने और घर-घर अलख जगाने की बहुमुखी प्रवृत्तियों में इन्हीं की प्रधान भूमिका है।
तीसरा वर्ग सामान्य प्रज्ञा परिजनों का है। सामान्य इस अर्थ में कि वे वर्तमान परिस्थितियों में, घर से बाहर जाने, कार्य क्षेत्र में उतरने या कोई बड़ा योगदान करने की स्थिति में तो नहीं हैं। पर समय की पुकार सुनने और जो संभव है उसे करने में पीछे नहीं रहना चाहते। यह समुदाय ही सबसे बड़ा है। उसे न उपेक्षित रखा जायेगा और न निष्क्रिय ही रहने दिया जाएगा। उनके लिए न्यूनतम सप्तसूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत किया है। वह ऐसा है जिसे आत्म निर्माण, परिवार निर्माण के क्षेत्र में इन्हीं परिस्थितियों के रहते बड़े अंशों में चरितार्थ किया जा सकता है। समाज निर्माण के लिए ही प्रायः जन सम्पर्क साधने के लिए बाहर जाना और अधिक त्याग साहस का परिचय देना पड़ता है। वह बड़े परिमाण में न बन पड़े तो भी घर कुटुम्ब में आदर्शवादी प्रचलनों के लिए प्रयास करने से भी प्रकारान्तर से समाज कल्याण की दिशा में बहुत कुछ बन पड़ने की संभावना बनती है। आत्म निर्माण और परिवार निर्माण को भी समाज निर्माण का ही एक छोटा किन्तु महत्वपूर्ण अंश माना जा सकता है। इस प्रकार सामान्य प्रज्ञा परिजन भी प्रस्तुत सप्तसूत्री योजना को अपनाकर वह गर्व-गौरव प्राप्त कर सकते हैं जिसमें युग निमन्त्रण को स्वीकार करने वालों को मिलने वाले आत्म सन्तोष, लोक सम्मान और श्रेय जैसे अनेकों श्रेय सम्पादित करने की श्रृंखला जुड़ी है।
कितने ही व्यक्ति सचमुच ही ऐसी परिस्थितियों में होते हैं जो घर से बहुत दूर जाने, अधिक समय देने की स्थिति में हैं ही नहीं। वृद्ध जन, रुग्ण, घर परिवार के साथ जकड़ी हुई महिलाएं, रोज कुंआ खोदने, रोज पानी पीने वाले व्यस्त, चिन्ताओं समस्याओं से उलझे हुए व्यक्तियों की कमी नहीं। ऐसे लोग भी इन दिनों सर्वथा मूक दर्शक बनकर हाथ पर हाथ रखे बैठे नहीं रह सकते। इन्हीं के लिए न्यूनतम कार्यक्रम की सप्त सूत्री योजना प्रस्तुत की गई है। सप्तसूत्री योजना की जानकारी इसी पुस्तक में सृजन यज्ञ में हमारी श्रद्धांजलियां समर्पित होनी ही चाहिये, शीर्षक के अन्तर्गत दी गई है। वह हर किसी के लिये नितान्त सरल है। जिन घरों में इन महाव्रतों का प्रचलन प्रारम्भ होना वहां महानता विकसित होकर रहेगी। स्वर्गीय परिस्थितियों का अनुकरणीय अवतरण वहीं देखा जा सकेगा।