
आदर्श वाक्य—बोलती दीवारें
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रास्ते में पड़ने वाली दीवारों पर बड़े अक्षरों में आदर्श वाक्य लिखने से वहां से निकलने वालों की दृष्टि अनायास की पड़ती है और अनायास ही उनका मस्तिष्क उन प्रतिपादनों को अपनाने लगता है। लोक शिक्षण का यह तरीका व्यवसायी लोग बहुत दिनों से अपना रहे हैं और इस मद में खर्च करने की तुलना में कहीं अधिक लाभ उठा रहे हैं। यही बात घरों में, कमरों में सचित्र कलेण्डर टांगने के सम्बन्ध में है। नये वर्ष के उपहार में व्यापारी अपने आप माल का विज्ञापन इस माध्यम से करते हैं। लोग चित्र सज्जा के लालच में व्यापारियों के माल पर दृष्टि जमाते हैं। फलतः उपहार देने वाले उसे प्रक्रिया के द्वारा प्रकारांतर अनेक गुना लाभ उठाते हैं।
लोक मानस को प्रशिक्षित करने के लिए रास्ते में पड़ने वाली दीवारों पर आदर्शवाक्य लिखा जाना एक अच्छा प्रचार माध्यम है। इसके लिए लिखने वाले को अपनी लिपि सुधारनी चाहिए। सौन्दर्य सर्वत्र आकर्षक होता है। लिपि के सम्बन्ध में भी यही बात है। स्याही सस्ती, गहरी और टिकाऊ होनी चाहिए। इस दृष्टि से काला और लाल रंग ही उपयुक्त पड़ता है। लाल रंग का काम गेरू से भी लिया जा सकता है। गोंद या सरेस मिला देने से वह अधिक टिकाऊ हो जाती है। लिखने में ब्रुश की काम आते हैं। जहां उपयुक्त स्थान जंचे वहां उसी साइज में फिट होने वाले अक्षर लिखने चाहिए। टीन या प्लास्टिक के बने स्टेन्सिल भी इस काम के लिए उपयुक्त रहते हैं। उनसे जल्दी भी होती है और अक्षर भी सुन्दर लिखे जात सकते हैं।
घरों में टांगने के लिए आदर्श वाक्यों का सेट उपयुक्त रहता है। कमरे की चार दीवारों में से लम्बाई वाले भाग में चार-चार और चौड़ाई वाले भाग में तीन-तीन लगा देने से कुछ चौदह वाक्यों में कमरा बोलती दीवार का काम दें जाता है। घर में रहने वालों की तो दृष्टि उन पर पड़ती ही रहती है। मेहमानों आगन्तुकों के मस्तिष्क को भी झकझोरते और नये ढंग से सोचने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। स्त्रियों बच्चों के लिए प्रयुक्त होने वाले कमरों में उनके लिए जो उपयुक्त हो उसे प्रेरणाप्रद वाक्य टांगे जा सकते हैं। हैंडबैगों, अटैचियों, अलमारियों पर लगाने के लिए प्लास्टिक के बने स्टीकर चिपकाये जा सकते हैं। इस प्रकार के आदर्श वाक्य छोटे बड़े साइजों से युग निर्माण योजना मथुरा के प्राप्त हो सकते हैं।
आदर्श वाक्यों की रबड़ मुहरें भी बनाई गई हैं। इन्हें लैटर पैड, कार्ड लिफाफे, बिल, पर्चे, पढ़ने की पुस्तकों आदि पर लगाया जाता रहें तो वे अनायास ही अनेकों की दृष्टि से गुजरते और प्रभाव छोड़ते हैं। इन्हें मथुरा से मंगाया या अपने यहां बनवाया जा सकता है।
अपनी आवश्यकता एवं रुचि के अनुरूप वाक्यों का चयन और उपयोग इच्छानुसार किया जा सकता है। निर्धारित आदर्श वाक्यों में कुछ का उल्लेख नीचे किया जा रहा है। इनमें से जहां जो उपयोगी प्रतीत हो वहां उनका उपयोग किया जाय। इस प्रचार माध्यम को युग चेतना के विस्तार का महत्वपूर्ण अंडमान कर उसके उपयोग का पूरा-पूरा प्रयत्न किया जाय।
छोटे वाक्य:—
(1) हम बदलेंगे, युग बदलेगा-हम सुधरेंगे, युग सुधरेगा
(2) नर और नारी एक समान, जाति वंश सब एक समान
(3) बनें सुसंस्कृत सभ्य कहायें, हिल मिल रहें बांट कर खायें
(4) श्रम से बचें न समय गंवाये, कर्तव्यों से जी न चुरायें।
बड़े वाक्य:—
(1) जो अपनी सहायता आप करने को तत्पर है, ईश्वर केवल उन्हीं की सहायता करता है।
(2) परमेश्वर का प्यार केवल सदाचारी और कर्तव्य परायणों के लिए सुरक्षित है।
(3) नास्तिकता का अर्थ है, नैतिक और सामाजिक अनुशासन की अवज्ञा, अवहेलना।
(4) दूसरों के साथ वैसी ही उदारता बरतो जैसे ईश्वर ने तुम्हारे साथ बरती है।
(5) जिसने जीवन में स्नेह सौजन्य का समुचित समावेश किया, सचमुच वही सच्चा कलाकार है।
(6) शालीनता बिना मोल नहीं मिलती, पर उससे सब कुछ खरीदा जा सकता है।
(7) मनुष्य जन्म सहज है, पर मनुष्यता कठिन प्रयत्न करके कमानी पड़ती है।
(8) सभ्यता का स्वरूप है—सादगी, अपने लिए कठोरता और दूसरों के लिए उदारता।
(9) विपरीत परिस्थितियों में भी जो ईमान, साहस और धैर्य अपनाये रहे वही सच्चा शूरवीर है।
(10) मुस्कान बिखेरें, सहानुभूति दर्शायें और हाथ बंटायें, देखेंगे कि विराने भी अपने हो चले।
(11) बड़प्पन अमीरी में नहीं ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है।
(12) सज्जन अमीरी में गरीब जैसे नम्र और गरीबी में अमीर जैसे उदार रहते हैं।
(13) गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
(14) प्यार और सहकार से भरा पूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग है।
(15) धन से ज्ञान बड़ा है, क्योंकि धन हम रखाते हैं और ज्ञान हमारी रखवाली करता है।
(16) अनजान होना उतनी लज्जा की बात नहीं, जितनी सीखने के लिए तैयार ही न होना।
(17) प्रसन्न रहने के दो उपाय हैं, आवश्यकताएं कम करें और परिस्थितियों से तालमेल बिठायें। (18) अच्छी पुस्तकें जीवन्त देव प्रतिमाएं हैं। उनकी साधना से तत्काल प्रकाश मिलता है।
(19) आलस्य से बढ़कर अधिक घातक और अधिक समीपवर्ती शत्रु दूसरा नहीं।
(20) कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को एक दिन ही मरना पड़ता है।
(21) उन्हें मत सराहो जिन्होंने अनीति पूर्वक सफलता पाई और सम्पत्ति कमाई।
(22) असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नहीं हुआ।
(23) कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं क्योंकि विपत्ति में उनका कोई साथी नहीं रहता।
(24) मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं, वह उनका नियामक, परिवर्तनकर्त्ता और स्वामी है।