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Books - प्रज्ञा अभियान का दर्शन स्वरूप और कार्यक्रम

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Language: HINDI
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प्राणवान कार्यकर्ता अपने क्षेत्रों का उत्तरदायित्व संभालें

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First 41 43 Last

प्रज्ञा अभियान की युग प्रवर्तन योजना अब हर दिन व्यापक अग्रगामी बनती चली जा रही हे। समय आ गया है कि एक कोना भी अलख जगायें बिना न बचे। एक जन भी ऐसा न रहे जिसे युग चेतना से अवगत न किया गया हो।
नव सृजन के मोर्चे पर कोटि-कोटि मानवों को लगाने की पृष्ठभूमि इसी प्रकार बनेगी। तमिस्री के पलायन और उषाकाल में आगमन वाले तथ्य से हर किसी को परिचित कराया जाय। जागृतों के आगे आने से प्रसुप्तों को प्रेरणा मिलेगी। सांचे पकेंगे तो ही खिलौने ढलेंगे। मुर्गा बांग लगाता है तो घड़ी न रहने पर भी प्रभात के आगमन का पता चलता हे। मन्दिर में आरती का शंखनाद होने, घंटे बजने पर समूचा मुहल्ला जाग पड़ता है। इन दिनों नव जागरण को ऐसा ही माहौल बन रहा है। जामवन्त, हनुमान आगे चले तो रीछ वानरों का अनगढ़ समुदाय भी उमंगों से भरा और शौर्य पराक्रम में किसी से पीछे नहीं रहा। नव प्रभात की प्राण ऊर्जा अपने अदृश्य विकिरण-वितरण से जब कण-कण को उमंगने उछलने के लिए विवश करे तो चिड़ियों के चहकने से लेकर कलियों के मुस्काने की विधा किसी के रोके रुकेगी नहीं। यह युग सन्धि का बसन्त है। इसमें पतझड़ से बने ठूंठ भी कोपलों से लदते, फूलते और फलते दृष्टिगोचर होंगे।
समय की मांग पूरी करने के लिए युग संधि के इस तीसरे वर्ष में जन जागरण की व्यापक योजना बनी है। सभी संस्थानों से कहा गया है कि वे प्रज्ञा आयोजन का प्रबन्ध तत्काल करें। जहां पहले से ही संगठन, उत्साह एवं आधार मौजूद हैं वहां इसमें कोई कठिनाई होनी भी नहीं चाहिए। हो भी नहीं रही है। शान्तिकुंज के देश व्यापी प्रज्ञा आयोजनों की श्रृंखला बनाई और तिथियां निर्धारित की गयी हैं। यह केन्द्रीय निर्धारण तो तत्काल लागू होना है। उसके बाद शेष लोगों की अपनी अतिरिक्त मांगें होंगी तो उनके लिए प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का तथा वाहन साधनों का प्रबन्ध होते ही उनके यहां भी छोटे-बड़े आयोजनों का प्रबन्ध किया जायेगा। योजना यह है कि जहां मिशन की जड़ें जम चुकी हैं वहां अनिवार्य रूप से और जहां उन्हें जमाना हे वहां सुविधानुसार ऐसा प्रबन्ध किया जाय कि कोटि-कोटि जन समुदाय को युग चेतना से परिचित अनुप्राणित होने का अवसर मिले। यह प्रयोजन हर क्षेत्र में छोटे बड़े प्रज्ञा आयोजनों की व्यवस्था बनाने से ही संभव हो सकता है। वही किया भी जा रहा है।
प्रायः दो हजार आयोजन इसी मास निश्चित कर दिये गए हैं। इनमें अधिकांश ढाई-ढाई दिन वाले छोटे एवं स्थानीय स्तर के हैं। कुछ सौ ऐसे भी हैं जिन्हें क्षेत्रीय या बड़ा कहा जा सकता है इन्हें साढ़े तीन दिन से सम्पन्न किया जायेगा। क्योंकि उनमें न केवल उपस्थित जन समुदाय की, युग परिवर्तन के कारणों, विधानों, समाधानों एवं प्रयासों की रूपरेखा समझाई जानी है वरन् उस क्षेत्र के समीपवर्ती सभी कार्यकर्ताओं को एकत्रित करके एक छोटा काम काजी शिविर भी चलाया जाना है। उनका विषय होगा जागृत आत्माओं की युग धर्म अपनाने के लिए वर्तमान परिस्थितियों में क्या एवं किस प्रकार करना है? इन दिनों घोर व्यस्त एवं जन सम्पर्क से अनभ्यस्त प्रज्ञा परिजनों को भी न्यूनतम कार्यक्रम आत्म निर्माण एवं परिवार निर्माण के छोटे क्षेत्र में कुछ न कुछ करते रहने के लिए बाधित किया गया है। ऐसे लोग भी सरलतम सप्तसूत्री योजना के अन्तर्गत बहुत कुछ कर रहे हैं। इस विषम वेला में हममें से कोई भी ‘‘मूक दर्शक’’ कहलाने का कलंक वहन न करेगा। नौ संसदों में परिवार बंटा है और हर बिरादरी ने अपनी परिस्थिति के अनुरूप कीर्तिमान स्थापित करने का उछलता प्रयास आरम्भ कर दिया है। इस स्तर के लोग हरिद्वार पहुंचें और प्रशिक्षण प्राप्त करें, इसकी प्रतीक्षा न करके काम चलाऊ निर्देशन इन सत्रों में ही कर दिया जायेगा। जिन्हें क्षेत्रीय आयोजन के रूप में बड़ा कहा जा रहा है और साढ़े चार दिन का समय लगाया जा रहा है।
निर्धारित प्रज्ञा आयोजनों में से सभी में शान्तिकुंज की जीप गाड़ियां पहुंचेगी। प्रत्येक में एक केन्द्रीय प्रतिनिधि मंडली रहेगी। एक-एक चित्र प्रदर्शनी भी प्रत्येक जीप के साथ चलेगी। उस मंडली में दो वक्ता, एक प्रदर्शनी एक ड्राइवर छै का जत्था रहेगा। जो निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अपना काम करेगा। छोटे आयोजनों में जीप अथवा लगभग 48 घंटे और बड़े आयोजनों में लगभग 72 घंटे रुकेगा। उसके पहले और पीछे के दिनों में आयोजन के अनुरूप वातावरण बनाने तथा उत्पन्न ऊर्जा का लाभ उठाने का काम स्थानीय क्षेत्रीय लोग ही मिल जुलकर सम्पन्न करेंगे।
सर्व विदित है कि स्टेज प्रवचन का काम अति सरल और व्यवस्था बनाने साधन जुटाने, विज्ञ समुदाय का सहयोग एकत्रित करने तथा उत्तरदायित्व वहन करने में तत्पर रखे रहना कितना कठिन होता है। इन कठिन कार्यों को संभालना की वास्तविक एवं आधार भूत काम है। प्रवचन की तोता रटंत तो कोई भी सिखाया, सधाया आदमी कर सकता है। प्रज्ञा आयोजनों को हर दृष्टि से सफल एवं सार्थक बनाया जाना चाहिए। वे अस्त-व्यस्त, अव्यवस्थित रहे और आदमी उपेक्षा के वातावरण में लकीर पीटने की तरह सम्पन्न हुए तो समझना चाहिए कि प्रतिष्ठा और लक्ष्य पूर्ति की बाजी से एक प्रकार से हार ही हुई। ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने देने में न केवल स्थानीय लोगों की वरन् उस समूचे क्षेत्र के प्राणवान कार्यकर्ताओं की अप्रतिष्ठा है।
ऐसा न होने पाये। यह आशंका यही सिद्ध न हो इसके लिए जहां-जहां छोटे-बड़े आयोजन होने जा रहे हैं वहां के सभी क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं से अनुरोध किया गया है कि वे अपने समयदान की प्रतिज्ञा इन अवसरों पर तो कार्यान्वित करें ही। आयोजनों से पूर्व कई बार बिना बुलाये पहुंचें और देखें कि कितनी तैयारी होनी शेष है। उन्हें जो करना है उसके सम्बन्ध में परामर्श से लेकर श्रम, सहयोग देने के लिए अपनी उत्सुकता प्रकट करनी चाहिए। छोटी-बड़ी सभी सेवायें समान हैं जो काम वहां रुके पड़े हों उन्हें गतिशील बनाने के लिए एक श्रमजीवी, स्वयं सेवी की तरह कंधा लगाना चाहिए। नेतागिरी बघारने, हुक्म चलाने, कमियों के लिए भर्त्सना करने, अपने को बुद्धिमान और उन लोगों को मूर्ख बताने के लिए कहीं जाने से तो न जाना अच्छा। हुक्म चलाने, गलतियां बताने भर से तो उल्टी चिढ़ पैदा होती है। समीपवर्ती क्षेत्रों के कार्यकर्ताओं की उसी प्रकार दौड़ना चाहिये जैसे कि रंज-खुशी के आने पर पड़ोसी सम्बन्धी अपनी भी कुछ जिम्मेदारी समझते हाथ बंटाने के लिए दौड़ते हैं।
इन पंक्तियों के माध्यम से, प्राणवानों से यह निवेदन किया जा रहा है कि वे यदि अपने यहां आयोजन है तो उसे पूर्ण करने के साथ-साथ अपने क्षेत्र में जहां कहीं भी अन्य आयोजन हो रहे हैं वहां पहुंचें और नम्रता के साथ उनका हाथ बटायें, समय दें और जितना संभव हो परिश्रम करते हुए आयोजन को सफल बनाने में कोर कसर न रहने दें।
कौन कहां-कहां जाये? यह पूछने से पहले यह बताना होगा कि अपनी भागदौड़ पूर्व परिचय के नाते किस क्षेत्र तक विस्तृत है। उनका एक साधारण सा नक्शा बना दिया जाय, उनमें जो परिचित, शाखायें, प्रज्ञा पीठें आती हैं, उनका उल्लेख कर दिया जाय। मीलों की दूरी तथा रेल, सड़क के रास्ते भी अंकित कर दिये जायें। इस जानकारी के आधार पर ही यह बताया जाना संभव होगा कि किन कार्यकर्ताओं को कहां, कब पहुंचना चाहिए। केन्द्र को अपने कार्यकर्ताओं के परिचय क्षेत्र की जानकारी नहीं। अपरिचित क्षेत्रों में, अपरिचित लोगों के साथ सहयोग करने एवं तालमेल बिठाने की बात बनती नहीं। ऐसी दशा में यदि बिना उपयुक्त जानकारी के ऐसे ही जहां तहां पहुंचने के अटकल पच्चू निर्देश दे दिये जायें तो बात कुछ बनेगी नहीं। समय और शक्ति की बर्बादी ही होगी। अतएव जो कार्यकर्ता उन दिनों जितना समय बाहर जाने के लिए दे सकें वे इस जानकारी के साथ-साथ अपने प्रभाव परिचय वाले क्षेत्र का नक्शा भी भेजें। आयोजन कुछ बन चुके हैं। कुछ आगे बनेंगे। उसका स्थान, समय, भेजते रहने की बात तभी बनती है जब कितना, कब, समय किस क्षेत्र में, कौन दे सकेगा इसका विवरण विदित हो। ऐसे निर्देशन व्यर्थ है, जिनका परिपालन समय के अभाव एवं आयोजन स्थानों का, वहां के कार्यकर्ताओं का पूर्ण परिचय न होने के कारण कुछ ठोस काम कर सकना संभव न हो। अपने सभी जीवन्त कार्यकर्ताओं का क्षेत्र एवं सेवा-समय केन्द्र के कागजों में नोट रहे तो न केवल आयोजनों में वरन् उस क्षेत्र की अन्यान्य रचनात्मक प्रवृत्तियों में उस योगदान का उपयोग किया जा सकता है। प्रस्तुत पूछताछ का महत्व समझा जाय और जिनके पास यह सन्देश पहुंचे वे अपनी स्थिति का स्पष्टीकरण तत्काल शान्तिकुंज भेजें ताकि उनके लिए कार्य तथा स्थान, आयोजन आदि की जानकारी भेजते हुए कुछ सुनिश्चित कार्य एवं उत्तरदायित्व सौंपे जा सकें।
आयोजन सम्बन्धी तात्कालिक आवश्यकता के अतिरिक्त कुछ और भी सुझाव परामर्श प्राणवान कार्यकर्ताओं के पास भेजे जा रहे हैं। उनमें से प्रमुख है—अपने-अपने क्षेत्रों में धर्म प्रचार की पदयात्रा करने की योजना बनाना। पदयात्रा का अर्थ अब साइकिल यात्रा भी है। क्योंकि इस सस्ते वाहन के सहारे न केवल थकान कम पड़ती है, जल्दी होती है वरन् आवश्यक सामान भी लाद कर चलने में सुविधा रहती है। तीर्थ यात्रा योजना, प्रज्ञा अभियान के जुलाई अंक में विस्तार पूर्वक छपी है। इसे हर क्षेत्र में कार्यान्वित किया जाय। जहां ऐसा हो सकेगा वहां साइकिल प्रचार यात्री भी छोटे देहातों में नये स्तर के प्रज्ञा आयोजन सम्पन्न करने के लिए आगे आ सकते हैं और अपनी यात्रा परिधि में नव जीवन का संचार कर सकते हैं। साइकिल पदयात्री प्रवचन के स्थान पर ढपली, घुंघरू के माध्यम से भजन, कीर्तन गाते हुए अधिक सफल आयोजन सम्पन्न कर सकते हैं जिनके कंठ मीठे और पैने हैं उनके लिए युग गायन और ढपली मंजीरे का संगीत शिक्षण भी एक महीने के युग शिल्पी सत्रों में रखा गया है। साइकिल प्रचार यात्रा में जिनको रुचि हो वे उस शिक्षण को प्राप्त कर लें और दो या अधिक साथियों का जत्था बनाकर अपने क्षेत्र में प्रज्ञा आयोजनों की एक स्वतन्त्र श्रृंखला आरम्भ कर दें। अगले दिनों जन-जागरण के लिए युग गायन एवं सुगम वादन का विशेष रूप से उपयोग किया जाना है। इसलिए उसकी पौध उगाने की तैयारी पूरे उत्साह के साथ आरम्भ कर दी गई है। सभी प्राणवान कार्यकर्ता इस नई प्रक्रिया का महत्व समझें उसे सफल बनाने में पूरा-पूरा योगदान दें।
बात संगीत की ही चली तो एक बात और ध्यान में रहनी चाहिए कि जो जीप जत्थे केन्द्र से प्रज्ञा आयोजनों से भेजे जा रहे हैं। उन सब में दो संगीतज्ञ भी रहेंगे। एक तबला दूसरा हारमोनियम बजायेगा। दोनों साथ-साथ गायेंगे। जीपें वर्षा के दिन छोड़कर नौ महीने व्यापक दौरे पर रहेंगी। इन्हीं में युग गायक भी भेजे जायेंगे। इस स्तर के लोग अपने ही लोगों में से तलाश किये जाने चाहिए और यदि बाहर रह सकने की स्थिति वाले पैने कंठ स्वर वाले कोई मिलें तो उन्हें शान्तिकुंज के साथ सम्पर्क जोड़ने की बात कहना चाहिए।
सभी प्राणवान कार्यकर्ताओं को युग-सन्धि के प्रथम चरण में अनिवार्य रूप से कार्यान्वित की जाने वाली पंचसूत्री योजना का फिर स्मरण दिलाया जा रहा है। (1) स्वाध्याय के लिए ज्ञानरथ (2) मुहल्ले-मुहल्ले सत्संग के लिए स्लाइड प्रोजेक्टर (3) सद्विचार बीजारोपण के लिए दीवारों और घरों में आदर्श वाक्य (4) परिवार गोष्ठियों के रूप में जन्म दिवसोत्सव (5) मिशन की स्थानीय गतिविधियों के लिए एक स्थायी कार्यकर्ता की नियुक्ति और निर्वाह व्यवस्था के लिए ज्ञानघटों, धर्मघटों, का संस्थापन। इन पांच सूत्रों के सहारे जन सम्पर्क जहां भी सधेगा वहां भरपूर जन समर्थन और जन सहयोग मिलेगा। अभीष्ट लक्ष्य की पूर्ति के लिए इन पंच सूत्री प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा उत्साह दांव पर लगाकर क्रियान्वित करना ही चाहिए।
***
*समाप्त*
 
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