• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • प्रथम अध्याय— युग-सन्धि की प्रसव-पीड़ा और प्रज्ञावतरण
    • इस सुयोग-सौभाग्य को खोयें नहीं
    • स्वयं बदलें—प्रवाह को उलटें
    • युगशिल्पी अहंमन्यता के विष-पान से बचे रहें
    • अध्यात्म क्षेत्र की वरिष्ठता—विनम्रता पर निर्भर
    • प्रज्ञा परिजनों के सप्त महाव्रत
    • सृजन यज्ञ में हमारी श्रद्धांजलियां समर्पित होनी ही चाहिए
    • द्वितीय अध्याय— प्रज्ञा संस्थानों का निर्माण और उनके उत्तरदायित्व
    • प्रज्ञा संस्थानों को प्राणवान रखा जाय
    • कार्यकर्ताओं की नियुक्ति को अनिवार्य प्राथमिकता दी जाए
    • ‘‘ज्ञानरथ’’ समय की महती आवश्यकता
    • झोला पुस्तकालय चलायें—युग चेतना लायें
    • लोकरंजन और लोकमंगल का समन्वय स्लाइड प्रोजेक्टर
    • आदर्श वाक्य—बोलती दीवारें
    • जन्म दिवसोत्सव, देखने में छोटा किन्तु परिणाम में महान
    • एकाकी प्रयत्न से चल पड़ने वाले प्रज्ञा मंदिर
    • इस वर्ष के दो विशेष अभियान
    • तृतीय अध्याय— प्रज्ञा परिवार का पुनर्गठन
    • शोध-संसद— ब्रह्मवर्चस् शोध के लिए मनीषा को युग निमंत्रण
    • युग प्रवक्ता संसद— धर्मतन्त्र की गरिमा समझें और उसे परिष्कृत करें
    • तीर्थ यात्रा की पुण्य प्रक्रिया का पुनर्जीवन
    • युग शिल्पी संसद— युग शिल्पी संसद की कार्य पद्धति का श्रीगणेश
    • युग गायक संसद— वाणी के कलाकार एक कदम आगे आयें
    • उपाध्याय संसद— उपाध्याय वर्ग नई पीढ़ी को युग चेतना से अनुप्राणित करें
    • युग प्रहरी संसद— प्रज्ञा परिजनों के लिए अणुव्रत
    • सम्पर्क संसद— जिन्हें जन सम्पर्क का सुयोग प्राप्त है वे उसमें कुछ और भी जोड़ें
    • भविष्य निर्माता संसद— युवा पराक्रम नव सृजन की दिशाधारा अपनाये
    • चतुर्थ अध्याय— युग शिल्पी प्रशिक्षण का संक्षिप्त पाठ्यक्रम
    • प्रज्ञा योग हृदयंगम करने योग्य तत्वदर्शन
    • प्रज्ञा योग की क्रिया परक साधना पद्धति
    • आसन प्राणायाम से आधि-व्याधि निवारण
    • जड़ी-बूटियों से स्वास्थ्य संरक्षण एकौषधि उपचार पद्धति
    • दिव्य औषधियों द्वारा आध्यात्मिक कायाकल्प
    • देव संस्कृति का पुनरुत्थान और तुलसी अभियान
    • आन्तरिक कायाकल्प हेतु आहार साधना
    • धर्मानुष्ठानों के क्रियाकृत्य उद्देश्यपूर्ण रहें
    • छोटे-बड़े धार्मिक आयोजन की व्यापक व्यवस्था चल पड़े
    • देव दक्षिणा प्रत्येक धर्मानुष्ठान का अविच्छिन्न अंग
    • युग-संगीत उभरे और व्यापक बने
    • प्रज्ञा पुराण कथा—उद्देश्य और स्वरूप
    • प्रज्ञा आयोजनों की तैयारी इस प्रकार करें
    • प्राणवान कार्यकर्ता अपने क्षेत्रों का उत्तरदायित्व संभालें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • प्रथम अध्याय— युग-सन्धि की प्रसव-पीड़ा और प्रज्ञावतरण
    • इस सुयोग-सौभाग्य को खोयें नहीं
    • स्वयं बदलें—प्रवाह को उलटें
    • युगशिल्पी अहंमन्यता के विष-पान से बचे रहें
    • अध्यात्म क्षेत्र की वरिष्ठता—विनम्रता पर निर्भर
    • प्रज्ञा परिजनों के सप्त महाव्रत
    • सृजन यज्ञ में हमारी श्रद्धांजलियां समर्पित होनी ही चाहिए
    • द्वितीय अध्याय— प्रज्ञा संस्थानों का निर्माण और उनके उत्तरदायित्व
    • प्रज्ञा संस्थानों को प्राणवान रखा जाय
    • कार्यकर्ताओं की नियुक्ति को अनिवार्य प्राथमिकता दी जाए
    • ‘‘ज्ञानरथ’’ समय की महती आवश्यकता
    • झोला पुस्तकालय चलायें—युग चेतना लायें
    • लोकरंजन और लोकमंगल का समन्वय स्लाइड प्रोजेक्टर
    • आदर्श वाक्य—बोलती दीवारें
    • जन्म दिवसोत्सव, देखने में छोटा किन्तु परिणाम में महान
    • एकाकी प्रयत्न से चल पड़ने वाले प्रज्ञा मंदिर
    • इस वर्ष के दो विशेष अभियान
    • तृतीय अध्याय— प्रज्ञा परिवार का पुनर्गठन
    • शोध-संसद— ब्रह्मवर्चस् शोध के लिए मनीषा को युग निमंत्रण
    • युग प्रवक्ता संसद— धर्मतन्त्र की गरिमा समझें और उसे परिष्कृत करें
    • तीर्थ यात्रा की पुण्य प्रक्रिया का पुनर्जीवन
    • युग शिल्पी संसद— युग शिल्पी संसद की कार्य पद्धति का श्रीगणेश
    • युग गायक संसद— वाणी के कलाकार एक कदम आगे आयें
    • उपाध्याय संसद— उपाध्याय वर्ग नई पीढ़ी को युग चेतना से अनुप्राणित करें
    • युग प्रहरी संसद— प्रज्ञा परिजनों के लिए अणुव्रत
    • सम्पर्क संसद— जिन्हें जन सम्पर्क का सुयोग प्राप्त है वे उसमें कुछ और भी जोड़ें
    • भविष्य निर्माता संसद— युवा पराक्रम नव सृजन की दिशाधारा अपनाये
    • चतुर्थ अध्याय— युग शिल्पी प्रशिक्षण का संक्षिप्त पाठ्यक्रम
    • प्रज्ञा योग हृदयंगम करने योग्य तत्वदर्शन
    • प्रज्ञा योग की क्रिया परक साधना पद्धति
    • आसन प्राणायाम से आधि-व्याधि निवारण
    • जड़ी-बूटियों से स्वास्थ्य संरक्षण एकौषधि उपचार पद्धति
    • दिव्य औषधियों द्वारा आध्यात्मिक कायाकल्प
    • देव संस्कृति का पुनरुत्थान और तुलसी अभियान
    • आन्तरिक कायाकल्प हेतु आहार साधना
    • धर्मानुष्ठानों के क्रियाकृत्य उद्देश्यपूर्ण रहें
    • छोटे-बड़े धार्मिक आयोजन की व्यापक व्यवस्था चल पड़े
    • देव दक्षिणा प्रत्येक धर्मानुष्ठान का अविच्छिन्न अंग
    • युग-संगीत उभरे और व्यापक बने
    • प्रज्ञा पुराण कथा—उद्देश्य और स्वरूप
    • प्रज्ञा आयोजनों की तैयारी इस प्रकार करें
    • प्राणवान कार्यकर्ता अपने क्षेत्रों का उत्तरदायित्व संभालें
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Books - प्रज्ञा अभियान का दर्शन स्वरूप और कार्यक्रम

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT


उपाध्याय संसद— उपाध्याय वर्ग नई पीढ़ी को युग चेतना से अनुप्राणित करें

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 23 25 Last
 अध्ययन को ज्ञान नेत्र कहा है। उसके न खुलने पर मनुष्य पशु-पक्षियों की भांति बौद्धिक दृष्टि से निर्वाह ज्ञान तक ही सीमाबद्ध रह जाता है। घर बैठे संसार भर की परिस्थितियों, समस्याओं और विधि-व्यवस्थाओं से परिचित कराने और बौद्धिक क्षमता से सुसम्पन्न करने की सामर्थ्य मात्र शिक्षा से ही है और उसे जो उपलब्ध कराते हैं वे गुरु, अध्यापक कहे जाते हैं। जब उसी प्रसंग में व्यक्तित्व को प्रखर, परिष्कृत करने वाले सद्ज्ञान का भी समावेश होता है तो उसे विद्या कहते हैं। विद्या देने वाले को आचार्य या उपाध्याय कहते हैं। पूजनीय अभिनन्दनीय तो गुरु, अध्यापक भी हैं, पर वे व्यक्तित्व को विकसित, अन्तःकरण को परिष्कृत करने वाली विद्या का अमृत पिलाते हैं तो उनकी अनुकम्पा का कोई ठिकाना नहीं रहता। इस दैवी सम्पदा का अनुदान देने वाले के प्रति न केवल शिष्य की वरन् समूचे समाज की अन्तरात्मा कृत-कृत्य होती और चिरकाल तक शत-शत नमन करती है।
उपयोगी तो भौतिक जानकारी, व्यावहारिक सम्पदा और उपार्जन की क्षमता देने वाली शिक्षा भी है, पर उससे भी कहीं अधिक महिमा विद्या की है, जो गुण, कर्म, स्वभाव में शालीनता, दृष्टिकोण में उत्कृष्टता और चरित्र में प्रखरता का समावेश करके नर को नारायण, पुरुष को पुरुषोत्तम, क्षुद्र को महान बना देती है। विद्यावान मनीषियों को धरती का देवता कहा जाता है।
सरकारी स्कूलों में प्रायः बहिरंग जानकारियों के ही पाठ्यक्रम होते हैं। विवेकवान दूरदर्शिता, मानवी गरिमा से अलंकृत करने वाली शालीनता और व्यक्तित्व को तेजस्वी बनाने वाली, प्रखरता उत्पन्न करने वाली सद्ज्ञान-सम्पदा जिनसे उपलब्ध होती है उन सद्गुरुओं को समुदाय धीरे-धीरे लुप्त ही होता चला जा रहा है। इनके अभाव में समूची मानवता को बहुत कष्ट सहन करना पड़ रहा है। जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है पर नर रत्नों की संख्या बर्बर शेरों की तरह तेजी से घट रही है। कारण एक ही है, सद्गुरुओं के सांचे ही जब समाप्त होते जाते हैं तो महामानवों की ढलाई कैसे हो? उसके बिना समाज को दिशा-धारा कौन दे? आदर्शवादी अग्रगामी ही संसार की प्रगति और शान्ति के सृजनकर्ता और संरक्षक माने जाते हैं। उन्हीं के पुण्य प्रयासों से समाज समुन्नत और सुसंस्कृत रहता है। कहना न होगा कि यह दिव्य अनुदान उपाध्यायों की उच्चस्तरीय उदारता ही विनिर्मित, विकसित करता है। वे ही अनगढ़ नर-वानरों को महामानवों में परिणति कर सकने की कल्प विद्या में प्रवीण पारंगत होते हैं।
जब सूर्य, चन्द्र ने कार्तिक की अमावस्या के सघन अन्धकार को दूर करने के अनुरोध को स्वीकारने में असमर्थता प्रकट कर दी तो निराशा में आशा उत्पन्न करने के लिए छोटे दीपकों ने अपनी अकिंचन क्षमता को समय की मांग पूरी करने के लिये उपस्थित किया। फलतः दीपावली जल उठी और दीप पर्व अमर हो गया। आज ऋषि-मनीषियों की परम्परा समय की उद्दंडता ने निगल ली। उस अभाव की पूर्ति प्रस्तुत अध्यापक वर्ग को करनी होगी। क्योंकि उनका वंश, वेश, कार्य प्रवाह उसी के अनुरूप है। वे अभाव की पूर्ति का पूरा-अधूरा कुछ तो उत्तरदायित्व वहन कर ही सकते हैं।
आज का अध्यापक वर्ग स्कूल-कालेजों से सम्बन्धित है। उन्हें निर्धारित पाठ्यक्रम के अनुसार शिक्षा देनी होती है। उससे छात्रों को बौद्धिक क्षमता एवं व्यवहार कुशलता बढ़ती है, पर उस विद्या की आवश्यकता अधूरी ही रह जाती है जिस पर मनुष्य का स्तर और संसार का भविष्य पूरी तरह निर्भर रहता है। इस पुनीत कार्य को वर्तमान अध्यापक भी एक सीमा तक पूरा कर सकते हैं। यों व्यक्तित्व के निर्माण में वातावरण आवश्यक है। प्राचीनकाल में गुरुकुलों का वातावरण ही छात्रों को ढालता था। पाठ्यक्रम की तो उस ढलाई में सामान्य-सी ही भूमिका रहती थी। इन दिनों छात्र कुछ घंटे के लिये पाठ पढ़ने स्कूलों में जाते हैं। शेष सारा समय तो दूसरे प्रकार के वातावरण में ही बिताते हैं। ऐसी दशा में शिक्षकों की मनीषा कदाचित् उच्चस्तरीय हो तो भी वैसी बात नहीं बनती, जैसी कि ऋषि कुलों में संभव थी। गुरुजनों का स्तर भी वैसा कहां है। इसलिए वैसे प्रतिफल की आशा न करते हुए भी ऐसे आधार मौजूद हैं जिनके सहारे उन परम्परा का आंशिक निर्वाह हो सकता है। जो हो सकता है उसे भी न किया जाय तो यह उस महान परम्परा के प्रति विश्वासघात होगा जिसके कारण विद्या को नव-जीवन, द्वितीय जन्म प्रदान करने की गौरव-गरिमा प्राप्त थी।
योजना यह है कि अध्यापक बन्धु अपने छात्रों को प्रज्ञा साहित्य पढ़ने का चस्का लगायें। उनका महत्व और परिणाम बताकर रुचि जगायें, आकर्षण उत्पन्न करें, साथ ही अपने पास से इन छोटी-छोटी पुस्तिकाओं को अवकाश के समय पढ़ने और सुविधानुसार वापिस कर देने की बात समझा दें। यह उपक्रम चलाने से आरम्भ में स्वाध्याय की अभिरुचि न होने उसका महत्व विदित न होने के कारण उपेक्षा दिखाई जा सकती है किन्तु जैसे ही एक दो पुस्तिकायें पढ़ ली गई वैसे ही उनके प्रति सहज आकर्षण होने लगेगा। एक के बाद दूसरी की मांग होगी और आरम्भ जैसा आग्रह बार-बार न करना पड़ेगा। पहले पढ़ने का चस्का लगाने के लिए तरह-तरह की फलश्रुतियां, सम्भावनाएं बतानी, आशायें दिलानी पड़ती हैं, पर पीछे यह झंझट नहीं रहता। फिर एक दिन में एक पढ़ने की बात नहीं रहती। घंटे दो घंटे में ही कई पढ़ डालने पर भी उत्सुकता तृप्त नहीं होती और अधिक संख्या में एक साथ पाने का आग्रह होने लगता है। आदर्शवादिता को दैनिक जीवन की सामयिक समस्याओं के साथ गूंथकर जैसा समाधानकारक प्रतिपादन इन पच्चीस पैसा जितने लागत से भी कम, स्वल्प मूल्य में प्रस्तुतीकरण किया गया है उसे अद्भुतया अनुपम ही कहा जा सकता है। इस नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्रान्ति के, व्यक्ति, परिवार और समाज निर्माण के दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन और सत्प्रवृत्ति संवर्धन के सारे तत्व ऐसी प्राणवान शैली में प्रस्तुत किये गये हैं कि उसे कुछ ही समय पढ़ने के उपरान्त अनास्था, नीति मर्यादा में बदलने लगती है। यह पढ़ने ही योग्य है। इसमें न सम्प्रदायवाद है न राजनीति। इसमें मात्र प्रतिगामिता का विरोध और प्रगतिशीलता का समर्थन है। यही कारण है कि उसका सरकारी गैर सरकारी क्षेत्रों में बिना किसी विरोध असमंजस के समान रूप से स्वागत हुआ है। सराहा गया है। इसलिए पढ़ने-पढ़ाने पर कोई रोकथाम होगी ऐसा तनिक भी भय नहीं है। फिर स्कूली समय के अतिरिक्त अवकाश के क्षणों में उच्चस्तरीय स्वाध्याय अपनाना तो हर किसी के लिये श्रेयस्कर हो ही सकता है।
प्राथमिक शाला के छोटे बच्चों की बात दूसरी है। इसके आगे की कक्षाओं के विकसित बालक इन्हें पढ़कर अपना साहित्य और सामान्य ज्ञान भी बढ़ा सकते हैं। इसलिए यह उन्हीं के हित में है कि चावपूर्वक पढ़ें और अपने चरित्र का स्तर ऊंचा उठायें। अध्यापक इस सन्दर्भ में प्रेरणा देने और साधन जुटाने का सरलतम, बिना किसी झंझट का कार्य अपने जिम्मे ले लें तो वे अपनी सहज गुरु गरिमा का ही पृष्ठ पोषण करेंगे।
दस पैसा या पच्चीस पैसा प्रतिदिन ज्ञानघट में जमा करते रहने से इतनी राशि जमा हो जाती है कि उससे हर महीने नई-नई पुस्तकें खरीदी जाती रहें और नई जिज्ञासा की नई तृप्ति का साधन जुटता रहे। आरम्भ में 360 पुस्तिकाओं का सेट खरीदने में पच्चीस पैसा प्रति के हिसाब से 90 रुपये अवश्य खर्च हो जाते हैं पर वह राशि इतनी भारी नहीं कि मित्रों की सहायता से या अपनी जेब से जुट न सके। यह दान नहीं पूंजी है जो सदा हाथ में है। इच्छा हो तो पुरानी होने पर भी वे इतने ही मूल्य पर बिक सकती हैं।
360 पुस्तकें हाथ में हों तो उन्हें 360 छात्रों में एक-एक करके पढ़ने के लिये वितरित किया जा सकता है। दूसरे दिन पढ़ लेने पर उन्हें वापिस लेकर एक ही दूसरे को—दूसरे की तीसरे को—तीसरे की चौथे को देखकर नई स्वाध्याय सामग्री प्राप्त की जा सकती है। यह क्रम पूरे 360 दिन तक चलता रह सकता है। 360 छात्रों को 360 दिन तक हर दिन नई पुस्तक बिना मूल्य पढ़ाने पर जो प्रतिफल निकलेगा उसे कोई भी कहीं भी अनुभव कर सकता है और उस अप्रत्यक्ष सेवा साधना की परिणति को देखते हुए हर्ष गर्व एवं सन्तोष अनुभव कर सकता है। जो इतना पढ़ लेगा उसके चिन्तन में उत्कृष्टता और चरित्र में आदर्शवादिता का समावेश पूर्व की अपेक्षा कहीं अधिक दृष्टिगोचर होना निश्चित है। स्वयं प्रशिक्षण न कर सके तो क्या प्रज्ञा साहित्य के माध्यम से वे ही प्रेरणायें भरी जा सकती हैं जो प्राचीन काल के मनीषियों द्वारा हृदयंगम कराई जाती हैं।
अध्यापकों का—छात्रों के अभिभावकों, भाई-बहनों परिवार वालों से भी सम्पर्क रहता है। एक बार उनके पास भी जाया जा सकता है और प्रज्ञा साहित्य पढ़ाने का सत्परिणाम विश्वासपूर्वक समझाया जा सकता है। उन्हें भी पढ़ने के लिए प्रोत्साहित, सहमत करने में किसी को कहीं कोई कठिनाई न होगी। छात्रों के माध्यम से उस घर के हर शिक्षित के लिये अलग पुस्तकें भेजी जा सकती हैं। वे आपस में अदल-बदल कर उन्हें पढ़ सकते हैं और नियत दिन उन्हें वापस कर सकते हैं। यह सिलसिला चल पड़े और औसतन हर घर में चार शिक्षित सदस्य उसे पढ़ने लगे तो 360 छात्रों के घर परिवार वाले 360×4=1440 की संख्या में उस स्वाध्याय मंडल के सदस्य हो सकते हैं। ऐसी दशा में एक सेट से काम नहीं चलेगा, चार सेट चाहिये। इसके लिये आरम्भिक पूंजी 90×4=360 की आवश्यकता पड़ सकती है। इसे उदार सहयोग से संचित किया जा सकता है। चार मित्रों के यहां ज्ञानघट रखाकर उसकी मानसिक आय से भविष्य का नया साहित्य सदा सर्वदा नियमित रूप से खरीदते, पढ़ते-पढ़ाते रहा जा सकता है।
योजना आर्थिक दृष्टि से तनिक भी भारी नहीं हे और न उसके लिए अतिरिक्त समय, श्रम लगाने की आवश्यकता है। मात्र थोड़ी-सी रुचि लेने और तनिक सी प्रयास चेष्टा भर करने से काम चल जाता है। अपने जैसे यदि दो चार अध्यापक भी इसी प्रयास का अनुसरण करने के लिए तत्पर बना लिये जायें तो एक ही स्कूल कॉलेज के अध्यापक मिल-जुलकर हजारों तक नियमित रूप से युगान्तरीय चेतना का आलोक हर दिन नियमित रूप से पहुंचाने का वह पुण्य फल, श्रद्धा-सम्मान अर्जित करते रह सकते हैं जो प्राचीन काल के उपाध्यायों द्वारा उस समय की परिस्थितियों, उस समय के साधन, उपक्रमों द्वारा सम्पन्न किया जाता था।
अध्यापकों की भांति अध्यापिकायें भी अपने विद्यालयों में ठीक इसी उपक्रम को अपना सकती हैं और नारी समुदाय में रचनात्मक सत्प्रवृत्तियों का अभिनव बीजारोपण कर सकती हैं।
प्रज्ञा परिवार बहुत बड़ा है। उसमें हजारों की संख्या में अध्यापक, अध्यापिकायें हैं। वे उपरोक्त योजना क्रम को अपनायें और प्राचीन काल के अध्यापकों द्वारा वितरण किये जाने वाले विद्या दान का यह सामयिक उपक्रम अपनायें। गुरु गरिमा को जीवन्त रखने और उपाध्यायों के प्रति परम्परागत श्रद्धा को पुनर्जीवित करने में यह छोटी-सी कार्यपद्धति कितनी सार्थक होती है, इसका प्रयोग परीक्षण अध्यापक वृन्द करके देखें—यही अनुरोध इन पंक्तियों में किया जा रहा है।

First 23 25 Last


Other Version of this book



प्रज्ञा अभियान का दर्शन स्वरूप और कार्यक्रम
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books



21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

21st Century The Dawn Of The Era Of Divine Descent On Earth
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

The Absolute Law of Karma
Type: SCAN
Language: ENGLISH
...

संत विनोबा भावे
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

त्योहार और व्रत
Type: SCAN
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान -1
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

युगसंधि महापुरश्चरण और संकट निवारण
Type: TEXT
Language: HINDI
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

गर पूछे कोई मुझसे तो मैं कहूँ कि स्वर्ग बस यहीं है
Type: TEXT
Language: EN
...

आध्यात्मिक कायाकल्प का विधि- विधान-२
Type: TEXT
Language: HINDI
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

ऋगवेद भाग 2-A
Type: SCAN
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

भगवान को मत बहकाइए
Type: TEXT
Language: EN
...

गहना कर्मणोगतिः
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Articles of Books

  • प्रथम अध्याय— युग-सन्धि की प्रसव-पीड़ा और प्रज्ञावतरण
  • इस सुयोग-सौभाग्य को खोयें नहीं
  • स्वयं बदलें—प्रवाह को उलटें
  • युगशिल्पी अहंमन्यता के विष-पान से बचे रहें
  • अध्यात्म क्षेत्र की वरिष्ठता—विनम्रता पर निर्भर
  • प्रज्ञा परिजनों के सप्त महाव्रत
  • सृजन यज्ञ में हमारी श्रद्धांजलियां समर्पित होनी ही चाहिए
  • द्वितीय अध्याय— प्रज्ञा संस्थानों का निर्माण और उनके उत्तरदायित्व
  • प्रज्ञा संस्थानों को प्राणवान रखा जाय
  • कार्यकर्ताओं की नियुक्ति को अनिवार्य प्राथमिकता दी जाए
  • ‘‘ज्ञानरथ’’ समय की महती आवश्यकता
  • झोला पुस्तकालय चलायें—युग चेतना लायें
  • लोकरंजन और लोकमंगल का समन्वय स्लाइड प्रोजेक्टर
  • आदर्श वाक्य—बोलती दीवारें
  • जन्म दिवसोत्सव, देखने में छोटा किन्तु परिणाम में महान
  • एकाकी प्रयत्न से चल पड़ने वाले प्रज्ञा मंदिर
  • इस वर्ष के दो विशेष अभियान
  • तृतीय अध्याय— प्रज्ञा परिवार का पुनर्गठन
  • शोध-संसद— ब्रह्मवर्चस् शोध के लिए मनीषा को युग निमंत्रण
  • युग प्रवक्ता संसद— धर्मतन्त्र की गरिमा समझें और उसे परिष्कृत करें
  • तीर्थ यात्रा की पुण्य प्रक्रिया का पुनर्जीवन
  • युग शिल्पी संसद— युग शिल्पी संसद की कार्य पद्धति का श्रीगणेश
  • युग गायक संसद— वाणी के कलाकार एक कदम आगे आयें
  • उपाध्याय संसद— उपाध्याय वर्ग नई पीढ़ी को युग चेतना से अनुप्राणित करें
  • युग प्रहरी संसद— प्रज्ञा परिजनों के लिए अणुव्रत
  • सम्पर्क संसद— जिन्हें जन सम्पर्क का सुयोग प्राप्त है वे उसमें कुछ और भी जोड़ें
  • भविष्य निर्माता संसद— युवा पराक्रम नव सृजन की दिशाधारा अपनाये
  • चतुर्थ अध्याय— युग शिल्पी प्रशिक्षण का संक्षिप्त पाठ्यक्रम
  • प्रज्ञा योग हृदयंगम करने योग्य तत्वदर्शन
  • प्रज्ञा योग की क्रिया परक साधना पद्धति
  • आसन प्राणायाम से आधि-व्याधि निवारण
  • जड़ी-बूटियों से स्वास्थ्य संरक्षण एकौषधि उपचार पद्धति
  • दिव्य औषधियों द्वारा आध्यात्मिक कायाकल्प
  • देव संस्कृति का पुनरुत्थान और तुलसी अभियान
  • आन्तरिक कायाकल्प हेतु आहार साधना
  • धर्मानुष्ठानों के क्रियाकृत्य उद्देश्यपूर्ण रहें
  • छोटे-बड़े धार्मिक आयोजन की व्यापक व्यवस्था चल पड़े
  • देव दक्षिणा प्रत्येक धर्मानुष्ठान का अविच्छिन्न अंग
  • युग-संगीत उभरे और व्यापक बने
  • प्रज्ञा पुराण कथा—उद्देश्य और स्वरूप
  • प्रज्ञा आयोजनों की तैयारी इस प्रकार करें
  • प्राणवान कार्यकर्ता अपने क्षेत्रों का उत्तरदायित्व संभालें
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj