
देव दक्षिणा प्रत्येक धर्मानुष्ठान का अविच्छिन्न अंग
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शाकल्य यज्ञ और ज्ञान यज्ञ दोनों का सम्मिश्रण रहना लोक मानस के परिष्कार के लिए खाद पानी की तरह है। अब देखना यह है कि पौधा फलित हुआ या नहीं। उसकी एक ही कसौटी है—देव दक्षिणा। पुरातन परम्परा में इसे बलिदान कहा गया है। इस शब्द में अनर्थ करके पशुबलि की प्रथा चल पड़ी। वस्तुतः उसमें दुष्प्रवृत्तियों के परित्याग और सत्प्रवृत्तियों के परिपोषण में प्रस्तुत किये जाने वाले, त्याग-बलिदान, अंशदान-समयदान का भाव था। इस भावना को अपने प्रत्येक आयोजन में चरितार्थ करने पर पूरा पूरा ध्यान देना चाहिए। कोई छोटा-बड़ा आयोजन ऐसा न हो जिसमें सम्मिलित होने वालों को देव दक्षिणा प्रस्तुत करने के लिए अनुरोध न किया गया हो। कुछ कदम उठाने के लिए उत्तेजक प्रोत्साहन न दिया गया हो। इस प्रक्रिया को हर आयोजन का अविच्छिन्न अंग माना जाय।
स्मरण रखा जाय देव दक्षिणा के लिए मांग हैं—
(1) अवांछनीयताओं का परित्याग
(2) सत्प्रवृत्तियां अपनाने का संकल्प।
यह अधर्म का नाश और धर्म का संस्थापन है, जिसके लिए भगवान अवतार लेते रहते हैं। इन दिनों वे ही प्रज्ञावतार की तरह व्यापक बन रहे हैं। प्रत्येक जागृत आत्मा को यह दोनों कदम बड़े डग नापते हुए उठाने चाहिए और समर्थकों को, सहयोगियों को भी कुछ न कुछ साहस इन दोनों प्रयोजनों के निमित्त अपनाने के लिए आग्रह करना चाहिए। इसके लिए पूर्ण आवश्यक है कि दुष्प्रवृत्तियों से होने वाली हानियों और छोड़ने पर उपलब्ध होने वाली सुखद सम्भावनाओं की विस्तृत जानकारी करा दी जाय।
देव दक्षिणा संकल्प पत्र उपस्थित लोगों को अपने हाथों से ही लिखने चाहिए। छपे पत्रकों पर हस्ताक्षर कर देने को अब ऐसी ही फर्जी कार्यवाही माना जाने लगा है। इसलिए उसकी गम्भीरता समझने, समझाने के लिए संकल्प कर्ताओं को अपने व्रत धारण की बात अपने हाथ से ही लिखनी चाहिए। अशिक्षित होने पर दूसरों से लिखाकर अपना अंगूठा लगाना चाहिए। इसके लिए नमूने भर के लिए छपे पत्रकों का उपयोग किया जा सकता है। संकल्प लिखा हुआ हाथ का ही होना चाहिए।
परित्याग के लिए प्रमुख दुष्प्रवृत्तियां यह हैं—
(1) नशेबाजी
(2) आलस्य प्रमाद
(3) कटु-भाषण-अशिष्ट व्यवहार
(4) फैशन-फिजूल खर्ची
(5) भाग्यवाद
(6) अन्धविश्वास
(7) मृतक भोज-भिक्षा व्यवसाय जैसी कुप्रथाओं से असहयोग (8) जाति-पांति, ऊंच-नीच और पर्दा प्रथा का परित्याग
(9) सन्तान का सीमाबन्धन
(10) जुआ, चोरी, बेईमानी, बदमाशी जैसे कुकृत्यों को स्वयं न करना और दूसरों को न करने देना।
सत्प्रवृत्तियां अपनाने के अनेकों आधार प्रज्ञा पुत्रों को पंच सूत्री योजना में सुझाये गये हैं। इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:—
(1) उपासना का नियमित उपक्रम
(2) चिन्तन मनन के आधार पर जीवन साधना की समग्रता है। आत्म-शोधन के लिए चार नियमों का परिपालन
(3) सप्ताह में एक दिन ब्रह्मचर्य, उपवास का परिपालन
(4) परिवार में पंचशीलों का प्रचलन
(5) आलोक वितरण के लिए नियमित समय दान, अंशदान
(6) सादगी अपनाना, सज्जनोचित जीवन चर्या अपनाना
(7) शिक्षा विस्तार—वृक्षारोपण जैसे रचनात्मक कार्यों में अग्रगमन, सहयोग
(8) सज्जनों के सहयोग के लिए प्रज्ञा परिवार का गठन, अभिवर्धन
(9) गृह उद्योगों का प्रचलन प्रोत्साहन, स्वयं वैसे ही निर्माण का संकल्प
(10) दुष्प्रवृत्तियों के विरोध, असहयोग के लिए सामूहिक प्रयत्न एवम् साहस का संवर्धन।
यह दस निषेधात्मक तथा दस विधेयात्मक कुल बीस प्रकार की देव दक्षिणायें सर्व साधारण के लिए हैं। जागृत आत्माओं, प्रज्ञा परिजनों युग शिल्पियों को अपना स्तर असामान्य मानना चाहिए उन्हें इस वर्ष के लिए तीन विशेष साहस प्रदर्शन करने के लिए कहा गया है। उसे अपनाने का अनुकरणीय आदर्श उपस्थित चाहिए।
तीन विशेष अनुबन्ध इस प्रकार है:—
(1) गत वर्ष की तुलना में अपने समयदान, अंशदान की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए। विशिष्ट लोगों को उस संकल्प का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए।
(2) अपने प्रभाव क्षेत्र के, घर के लड़कों की शादियां बिना प्रदर्शन एवम् दहेज के करने के लिए संकल्प लेना चाहिए। इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाना चाहिए। अभिभावकों और लड़के-लड़कियों से इसके लिए लिखित प्रतिज्ञायें करानी चाहिए। यों यह प्रतिज्ञा लड़की पक्ष को भी करनी चाहिए, पर प्राथमिकता, प्रमुखता इन दिनों लड़का पक्ष को दी गई है क्योंकि प्रत्यक्षतः दोष उसी का अधिक है। प्रायश्चित भी उसी को पहले करना चाहिए। खर्चीली शादियों में हम स्वयं सम्मिलित न हों इस प्रकार अपना विरोध असहयोग प्रखर करें।
(3) अपने घर में तुलसी का बिरवा लगायें। शाक-वाटिका उगायें तथा बीज, पौधा, खाद, मिट्टी, गमले आदि का प्रबन्ध करके इस प्रवृत्ति को व्यापक एवम् सुलभ बनाना चाहिए। हरीतिमा संवर्धन की रचनात्मक प्रवृत्ति में हजारी किसान का अनुकरण करते हुए हम में से प्रत्येक को कुछ न कुछ करना ही चाहिए। तुलसी की पौध शान्तिकुंज में मिल जाती है।
सामान्य जनों की बीस, प्रज्ञापुत्रों की तीन प्रतिज्ञायें घोषित हैं। 24 वीं एक प्रतिज्ञा स्वेच्छा संकल्प के लिए छोड़ दी गई है। इस प्रकार गायत्री के 24 अक्षरों के प्रति 24 स्तर की देव दक्षिणाओं को उच्चस्तरीय उपहार समझा जाना चाहिए।
हाथ से लिखी प्रतिज्ञा के नीचे
(क) अपना पूरा नाम पता (ख) आयु
(ग) शिक्षा
(घ) व्यवसाय
(ङ) जन्मजाति
(च) घटित जीवनक्रम की महत्वपूर्ण स्मृतियां,
इन छः बातों का भी उल्लेख करना चाहिए। ऊपर की पंक्ति में प्रतिज्ञायें नीचे की पंक्ति में अपना परिचय लिखा जाय। संकल्पों की एक प्रति स्थानीय संगठन के पास रहे और उसकी दूसरी प्रतिलिपि शान्तिकुंज भिजवाई जाय। प्रतिलिपि आयोजनकर्ता तैयार करें। संकल्प पत्र देव दक्षिणा देने वाले लिखें।