
देव संस्कृति का पुनरुत्थान और तुलसी अभियान
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मनुष्य जीवन के प्रमुख आधार दो हैं—एक जल दूसरा वनस्पति। इन दोनों की गरिमा समझने, उन्हें समुन्नत स्थिति में रखने का उत्साह बनाए रहने की दृष्टि से शास्त्रकारों ने दोनों के प्रति श्रद्धा भक्ति रखने का विधान बनाया है। पवित्र नदी, सरोवरों का सान्निध्य, स्नान, वरुण पूजन, जलकलश, अर्घ्यदान, अभिषेक आदि में जल के प्रति और पीपल, वट, आंवला, बिल्व, तुलसी, जैसे पेड़ पौधों के प्रति श्रद्धा भाव उभारने के लिए उनकी पूजा, परिक्रमा करने, जल चढ़ाने आदि की परम्परा है। इस प्रचलन के साथ-साथ हमें इन दिनों जीवन स्रोतों को स्वच्छ, समृद्ध बनाये रखने, सदुपयोग की बात भी सोचनी चाहिए।
यहां वनस्पति की चर्चा है। उसे प्रत्यक्ष देव मानने और संवर्धन, सदुपयोग की बात सोचते समय भाव जागृति और प्रखर प्रवृत्ति बनाये रखने वाले आधारों को भी अपनाना चाहिए। इस दृष्टि से सर्वसुलभ औ सर्वोपयोगी तुलसी को वनस्पति जगत का प्रतीक प्रतिनिधि माना जा सकता है। इस मान्यता के पीछे शास्त्रीय निर्धारण भी है। सांस्कृतिक परम्पराओं के पुनर्जीवन के सन्दर्भ में हमें जल और वनस्पति के प्रति नये सिरे से श्रद्धा जगानी चाहिए। हर आंगन में तुलसी का बिरवा रोपने के लिए खुले आकाश के नीचे थांवले बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। यह सर्वसुलभ देवालय है। वनस्पति को भगवान का प्रतीक मानने की भावना से प्रतिमा स्थापना एवम् पूजन की तुलना में कोई कमी नहीं है। यह रास्ता है, सुलभ भी, सुन्दर भी और उपयोगी भी। वातावरण में पवित्रता लाने, फैले प्रदूषण का शमन करने, आरोग्य की जड़ें मजबूत करने, श्रद्धा जीवन्त रखने जैसे अनेक लाभ उसके हैं घर आंगन में तुलसी का विरवा रोपकर वनस्पति भगवान के नए सिरे से कृतज्ञता, श्रद्धा प्रकट करने और जिम्मेदारी उभारने को सौम्य आन्दोलन अत्यन्त भावावेश के साथ चलाया जाय।
इसके लिए कुछ उपाय ऐसे हैं जिन्हें तुरन्त काम में लाया जाय। जैसे—
(1) भावनाशील लोग तुलसी के बीज भंडार बनायें, पौध उगायें और घर-घर पहुंचकर तुलसी आरोपण का महत्व समझायें। जो सहमत हों उन्हें पौध उपलब्ध करायें। सुन्दर गमले बनाने के साधन जुटायें। यह कार्य पद्धति जितने उत्साह से की जा सके उतना ही उत्तम है।
(2) दैनिक उपासना के प्रतीक पूजा पक्ष में तुलसी को अर्घ्य चढ़ाने, अगरबत्ती या दीपक जलाने, परिक्रमा करने की न्यूनतम पूजा अर्चा का हर परिवार में प्रचलन कराया जाय। खड़े-खड़े नमन वन्दन की, मानसिक जप, ध्यान, न्यूनतम उपासना इस आधार पर सरलता पूर्वक हर घर में चल सकती है।
(3) तुलसी की कृषि की जाय, नर्सरी लगा दी जाय, घरेलू चिकित्सा के रूप में उसका उपयोग करने की विधि से जन-जन को अवगत कराया जाय। तुलसी सेनेटोरियम, तुलसी कानन, तुलसी चिकित्सालय, तुलसी अनुसन्धान जैसे तन्त्र भी खड़े करने का प्रयत्न किया जाय। चाय के स्थान पर तुलसी के क्वाथ का प्रचलन किया जाय। कुछ लोग तुलसीदास बनें और हजारी किसान ने जिस प्रकार हजारी बाग जिले को हजार आम्र उद्यानों से भर दिया था। उसी प्रकार यह परमार्थी तुलसीदास भी तुलसी मय वातावरण बनाने के लिए प्राणपण से प्रयत्न करें।
(4) इस अभियान में प्रज्ञा परिजन अग्रणी रहें। प्रभाव क्षेत्र में उत्साह भरें। सहयोग प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहें। हममें से प्रत्येक के घर तुलसी देवालय सर्वप्रथम बनने चाहिए। तुलसी आन्दोलन को प्राथमिकता देते हुए अगला कदम घरेलू शाक वाटिका का तथा वृक्षारोपण का उठना चाहिए। व्यापक प्रदूषण एवं कुपोषण का समाधान करने की दृष्टि से यह सरल सौम्य दीखते हुए भी सामयिक सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
तुलसी की उपयोगिता के सम्बन्ध में कुछ संक्षिप्त जानकारी नीचे प्रस्तुत है:—
जहां तुलसी उगी होती है उसके समीपवर्ती वातावरण में शारीरिक रोगों और मानसिक पापों को दूर करने वाले तत्वों की अभिवृद्धि होती है। तुलसी में जहां रासायनिक विशेषतायें हैं वहां ‘‘सूक्ष्म’’ ‘‘कारण’’ शक्ति भी ऐसी है जो मानसिक एवं भावनात्मक क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है। इन्हीं विशेषताओं के कारण उसे देव तुल्य मानकर स्थापना से लेकर पूजा अर्चा तक का विस्तृत माहात्म्य बताया गया है। प्रत्यक्षतः आरोग्य रक्षा और रोग निवारण के दोनों ही गुण तुलसी में है। प्रचलित औषधियों में से अधिकांश में मारक गुण अधिक होता है। वे रोग कीटाणुओं के साथ शरीर के संरक्षक कोषों और जीवाणुओं को भी मारती हैं। इस प्रकार जहां एक हाथ से लाभ मिलता है दूसरे हाथ में वह छिन जाता है। तुलसी में यह दोष नहीं है। वह आरोग्य बढ़ाने की दृष्टि से उपयोगी टॉनिक भी है। साथ ही रोगों का शमन करते समय शरीर को तनिक भी हानि नहीं पहुंचाती। इसके अतिरिक्त उसमें ऐसा कोई दोष नहीं है जिसमें सेवन सम्बन्धी छोटी-मोटी भूल के कारण किसी संकट में पड़ना पड़े। लाभ धीमे हो यह हो सकता है किन्तु साथ ही चिकित्सा उपचार के साथ साथ जो खतरे जुड़े रहते हैं उसकी आशंका तनिक भी नहीं है। तुलसी अपने आप में पूर्ण है। वह समग्र औषधि की तरह, हर किसी के लिए, लाभदायक ही सिद्ध होती है।
तुलसी की सूक्ष्म शक्ति सौम्य, सात्विक, पवित्र, कोमल एवं भावुक मानी जाती है। इसकी समीपता में यह गुण प्राप्त होते हैं। तुलसी की माला पहनने से हृदयगत दुर्भावनाएं शान्त होती अनिद्रा, दुःस्वप्न, धड़कन, स्वप्नदोष आदि का शमन होता है। उसकी गन्ध से मच्दर आदि भागते हैं। जल या दूध में तुलसीपत्र डालकर, पंचामृत प्रसाद रूप में दिया जाता है। यह आत्मोन्नति का पथ-प्रशस्त करता है। मरणासन्न के मुख में तुलसीपत्र डालकर उसकी सद्गति की कामना की जाती है।
तुलसी की कई जातियां हैं इनमें से सर्वप्रथम वह है जिसे रामा कहा जाता है। जो घरों में लगती है। सामान्य स्वाद और गन्ध की होती है। जिसके साथ तुलसी शालिग्राम विवाह की एक पौराणिक परम्परा जुड़ी हुई है उसे ‘रामा’ कहते हैं।
दूसरी जाति कृष्णा है। इसके पत्ते अपेक्षाकृत तथा छोटे होते हैं। गन्ध तीव्र होती है। यह विषनाशक एवम् रक्त शोधक है। तीसरी बर्वरी है जिसे वन तुलसी भी कहते हैं। जिसके बीजों को बलवर्धक, वीर्य वर्धक माना जाता है। चौथे किस्म की अधिक बड़े आकार की तथा अत्यधिक गन्ध वाली होती है। उसे फोड़ों पर लेप करने तथा दाद, खाज, छाजन आदि कामों में लाया जाता है। उसे ‘मरुआ’ भी कहते हैं। इनमें प्रधानता ‘रामा’ तुलसी की है। मालाएं भी उसी की बनती हैं।
तुलसी भारत के हर प्रदेश में उगती है। किसी भी ऋतु में लगाई जा सकती है। फूलती फलती सितम्बर, अक्टूबर में है। जाड़े में बीज पकते हैं। बारहों महीने हरा-भरा रहता है। तीन वर्ष में बुढ़ापा घेरता है तो पत्ते कम और छोटे हो जाते हैं। सूखे डण्ठल बढ़ जाते हैं तब उन्हें हटाकर नया लगाना पड़ता है। न हटाया जाय तो वह दस वर्ष भी जीवित रह सकती है। बोने लगाने, खाद-पानी देने में उन्हीं बातों का ध्यान रखना पड़ता है जो इस स्तर के अन्य पौधों के लिए रखा जाता है।
धन्वन्तरि, निघण्टु, राज निघण्टु, राजवल्लभ निघण्टु, भाव प्रकाश, चरक, सुश्रुत आदि आयुर्वेद ग्रन्थों में तुलसी के अमृतोपम गुणों की प्रशस्ति भरी पड़ी है। धर्मग्रन्थों में प्रायः सभी पुराणों में तुलसी के आध्यात्मिक प्रभाव का वर्णन है। पद्म पुराण में उस महिमा का अधिक विस्तार है।
ईसाई धर्मग्रन्थों में उल्लेख है कि ईसा की कब्र पर तुलसी का पौधा उग आया तो शिष्यों ने उसे ईश्वर पुत्र का मूर्तिमान आशीर्वाद माना और प्रसाद की तरह ग्रहण किया। पूर्वी योरोप के गिरजों में अभी भी तुलसी की पूजा होती है और उसका जन्म दिवसोत्सव मानता है। अंग्रेजी में इसे हाली बेसिल कहते हैं अर्थात् ‘‘पवित्र तुलसी’’। बेसिल का अर्थ अंग्रेजी, फ्रेंच और ग्रीक में दैवी या शाही है। उसे पवित्र वनस्पति सम्राट या ‘‘सन्तजनों का शाही पौधा’’ समझा जाता है। यहूदी लोग अपने धर्मकृत्यों में इसका उपयोग करते हैं। बौद्ध धर्म के कर्मकाण्डों में भी इसका आदरपूर्वक उपयोग किया जाता है। गुणों की दृष्टि से उसे संजीवनी बूटी कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति न होगी।
घरेलू चिकित्सा उपचार में तुलसी का उपयोग इस भांति किया जा सकता है—
(1) सभी प्रकार के ज्वरों में बीस तुलसी के पत्ते और दस काली मिर्च का क्वाथ बनाकर पिलाने से लाभ मिलता है।
(2) दस्त लगने पर तुलसी पत्र 10, भुना जीरा 1 मासे मिलाकर शहद के साथ दिन में तीन बार चाटें।
(3) मोती क्षरा ज्वर में, तुलसी पत्र 10, जावित्री 1 माशे पानी में पीसकर शहद के साथ दिन में चार बार दें।
(4) जोड़ों के दर्द में तुलसी का पंचांग (जड़, पत्ते, डण्ठल, फूल, बीज) समान मात्रा में पीसकर रख लें। इस चूर्ण की चार माशे मात्रा बकरी के दूध और
गुड़ के साथ प्रातः, सायंकाल लें।
(5) सांस फूलने में तुलसी के पत्ते काले नमक के साथ सुपाड़ी की तरह मुंह में पड़े रहने दें।
(6) वीर्य की कमी या दुर्बलता में तुलसी के बीज एक मासे गाय के दूध के साथ प्रातःकाल एवं रात्रि सोते समय लें।
(7) बिच्छू, बर्रे ततैया आदि के काटने पर तुलसी के पत्ते सेंधा नमक के साथ पीसकर लेप करें।
(8) जख्म एवं फोड़ों को तुलसी के पत्तों का क्वाथ बनाकर धोयें।
(9) दांत के दर्द में तुलसी की जड़ का क्वाथ बनाकर कुल्ला करें।
(10) गला बैठने पर तुलसी की जड़ सुपाड़ी की तरह चूसते रहें।
(11) सिरदर्द में तुलसी के पत्तों का रस, कपूर मिलाकर लेप करें।
(12) रक्त विकारों में तुलसी और गिलोय का तीन-तीन मासे क्वाथ बनायें और प्रातः सायं मिश्री के साथ लें।
(13) दाद, खाज, छाजन में तुलसी नीबू के रस में मिलाकर लेप करें।
(14) जुकाम में तुलसी का पंचांग तथा अदरक समान भाग लेकर क्वाथ बनायें और दिन में तीन बार लें।
(15) उठते हुए फोड़ों पर तुलसी के पत्ते और अजवाइन की टिकिया बांधने से या तो बैठ जायेगा या जल्दी फूटेगा।
(16) स्वप्न दोष में तुलसी के बीज एक माशा, गुलाब के फूल दो पीसकर ठण्डाई की तरह पियें।
(17) महिलाओं के प्रदर रोग में तुलसी का रस एक मासे, अशोक के एक पत्ते का रस मिलाकर गाय के दूध में प्रातः सायं लें।
(18) मासिक धर्म के समय की पीड़ा में तुलसी का पंचांग एक तोला लेकर क्वाथ मिलाकर तीन बार दें।
(19) पेशाब की जलन में तुलसी का रस तीन मासे, पान का रस तीन मासे मिलाकर तीन बार दें।
(20) उल्टी होने पर तुलसी के पत्ते और छोटी इलायची के बीज अदरक के रस में मिलाकर दो-दो घंटे बाद दें।
(21) खांसी में तुलसी की मंजरी और पीपल का क्वाथ बनाकर देना चाहिए।
(22) अपच में तुलसी की मंजरी और काला नमक पीसकर भोजन के उपरान्त पाचक चूर्ण की तरह देना चाहिए।
(23) पित्ती निकलने पर तुलसी की मंजरी, पुनर्नवा की पत्ती समान भाग लेकर क्वाथ बनाकर पियें।
(24) पसली के दर्द में तुलसी का पंचांग, हल्दी मिलाकर लेप करें।
(25) चेहरे के मुंहासे में तुलसी के पत्ते और संतरे का रस मिलाकर लेप करें।
बड़ों की तुलना में बच्चों को आधी मात्रा देनी चाहिए। हरी तुलसी न मिलने पर ही सूखी का उपयोग करना चाहिए।